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जमीन सर्वे::: ””चिरकुट””अप्लाई पर लिख दिया खाता नुकसान, अब कहां से लाए जमीन का कागज

भूमि सर्वे के बाद कई तरह की समस्याओं से जूझ रहे लोग

उपमुख्य संवाददाता, मुजफ्फरपुर

भूमि सर्वे के बाद से लोगों की समस्याएं बढ़ती जा रही हैं. दिल्ली, मुंबई, गुजरात जैसे शहरों से रोज सैकड़ों की संख्या में लोग ट्रेन और बस से अपने गांव आ रहे हैं. लेकिन आने के बाद भी उनकी परेशानी कम नहीं हो रही है. रजिस्ट्री कार्यालय में जमीन के कागजात निकालने के लिए उन्हें चक्कर काटना पड़ रहा है. कार्यालय में काफी संख्या में लोगों की भीड़ जुट रही है. अधिकतर लोगों का काम नहीं हो रहा है, उन्हें रोज वापस होना पड़ रहा है. रजिस्ट्री कार्यालय पहुंचे बंदरा के संजीत कुमार ने बताया कि वह गुजरात के एक कंपनी में सुपरवाइजर है. कंपनी से दस दिन की छुट्टी लेकर आये थे. नकल निकालने के लिए फार्म भर कर जमा कर दिए हैं, आठ दिनों के बाद बुलाया गया, जब आए हैं तो कहा जा रहा है कि रजिस्टर नहीं मिला है. इस काम के लिए कितना चक्कर लगाएंगे और इसके लिए पैसा कहां से लाएंगे. सरकार के पास न मैसेंजर है और न व्यवस्था है. जनता को क्या कष्ट हो रहा है. यह जानने की कोशिश नहीं की जा रही है. यहां के दफ्तर में जो लोग हैं, उन्हें भी समझदारी नहीं है और न ही काम का अनुभव है. मीनापुर के नंद किशोर कहा कि हमलोग जमीन को जोत रहे हैं, उसका पेपर नहीं मिल रहा है .चिरकुट अप्लाई किए हैं, लिख कर दिया है कि खाता नुकसान है. अब हमलोग क्या करें.

नकल के लिए एक हफ्ते से लगा रहे हैं चक्कर

सकरा से आये मनोज ठाकुर ने बताया कि नकल और केवाला के चालान के लिए आये हैं, बैंक बंद हो गया, चालान नहीं हो पाया. कहा जा रहा है कि बैंक मना कर दिया कि चालान नहीं काटना है. हर तरफ खर्चा देना पड़ रहा है. कुछ न कुछ सब ले रहा है. ऑनलाइन भुगतान करने में पैसा भी फंस रहा है. बोचहां के मनोज कुमार सहनी ने कहा कि 50 वर्षों का लेखाजोखा व्यवस्थित तरीके से नहीं है. कर्मचारी दस गुना रुपया लोगों से ले रहा है. हम जमीन जोत रहे हैं. आज तक हमारे कब्जे में है. सरकार के पास तो पेपर है. जमाबंदी, खतियान और चौकीदारी पर्चा सब उपलब्ध है. तब वह हमसे जमीन का कागज क्यों मांग रही है. मोतीपुर से आये सुभाष कुमार ने कहा कि बहुत दिनों से नकल के लिए दौड़ रहे हैं, फाइल किए हुए हैं, लेकिन नकल नहीं मिल रहा है. सुभाष कुमार ने कहा कि चाचा जमीन का कागज रख लिए हैं. यहां साल पूछा जा रहा है. कहा जा रहा है साल याद नहीं है तो कागज नहीं मिलेगा. अब हमलोगों की जमीन का क्या होगा. समझ में नहीं आ रहा है.

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