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बिहार का पहला प्लास्टिक मुक्त परिसर बना नालंदा विश्वविद्यालय, बायोगैस का भी करेगा उत्पादन

नालंदा विश्वविद्यालय प्रशासन ने कैंपस के प्लास्टिक के इस्तेमाल पर पूरी तरह से रोक लगा दिया है. विश्वविद्यालय में पानी भी अब प्लास्टिक की बोतल की जगह कांच की बोतल में मिल रही है. इसके साथ ही विश्वविद्यालय ऊर्जा के चैत्र में भी बायोगैस बनाकर अग्रसर हो रहा है.

बिहार के नालंदा विश्वविद्यालय का कैंपस अब प्लास्टिक फ्री बन चुका है. विश्वविद्यालय परिसर में पानी की प्लास्टिक बोतल ( बोतल बंद पानी) पर अंतरिम कुलपति प्रो अभय कुमार सिंह ने प्रतिबंध लगा दिया है. देशी- विदेशी छात्र- छात्राओं, शोधार्थियों से लेकर विश्वविद्यालय के कार्यालयों, छात्रावासों तथा कुलसचिव और कुलपति के चैम्बर तक प्लास्टिक बोतल के पानी पर पूरी तरह से रोक लगा दी गयी है. प्लास्टिक पानी बोतल की जगह अब कांच (शीशे) के बोतल में पानी रखी जा रही है. वहीं अब प्लास्टिक रहित परिसर बनाने के बाद नालंदा विश्वविद्यालय को कार्बन मुक्त बनाने की कवायद भी आरंभ हो गयी है.

कांच की बोतल में मिल रहा पानी

विश्वविद्यालय के प्रशासनिक भवनों के अलावा सभी संकाय स्कूलों और विभागों में भी प्लास्टिक की पानी बोतल की जगह कांच ( शीशा) की बोतल में पानी की व्यवस्था उपलब्ध कराई जा रही है. विश्वविद्यालय के डाइनिंग हॉल, हॉस्टलों, कैंटीन में भी प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगा दिया गया है.

प्लास्टिक फ्री होने से उत्पन्न हुई समस्या

प्लास्टिक फ्री परिसर घोषित करने के बाद विश्वविद्यालय प्रशासन के सामने अब एक समस्या खड़ी हो गई है कि परिसर में होने वाले छोटे – बड़े आयोजनों में आये अतिथियों को पानी पिलाने की वैकल्पिक व्यवस्था कैसे की जाये. नालंदा विश्वविद्यालय अब तक खुद के पानी का इस्तेमाल करता रहा है.

ग्लोबल कंसेप्ट के आधार पर विश्वविद्यालय को बनाया गया नेट जीरो

नेट जीरो पर आधारित इस विश्वविद्यालय में 13 तालाब हैं. वे सभी एक दूसरे से जुड़े हैं. प्राकृतिक और वर्षा का जल इन तालाबों में संग्रह होते हैं. इस वर्ष औसत से बहुत कम वर्षा होने के कारण इन तालाबों में पानी का संकट है. यह चिंता का विषय है. विश्वविद्यालय परिसर को ग्लोबल कंसेप्ट के आधार पर नेट जीरो बनाया गया है.

क्या है नेट जीरो कैंपस

नेट जीरो कैंपस का अर्थ है- वाटर जीरो, एनर्जी जीरो, वेस्ट कार्बन जीरो. विश्वविद्यालय को कार्बन मुक्त और कचरा मुक्त बनाने की दिशा में भी बड़े कदम उठाये गये हैं. इसको अमलीजामा पहनाने के लिए कार्यों का तेजी से क्रियान्वयन कराया जा रहा है. इस योजना के तहत विश्वविद्यालय द्वारा खुद कचरा से बिजली बनायी जायेगी. दिसंबर तक नालंदा विश्वविद्यालय में बिजली उत्पादन की संभावना बतायी जा रही है. विश्वविद्यालय द्वारा 1.2 मेगावाट बिजली उत्पादन का लक्ष्य पहले चरण में निर्धारित है. कचरा से बिजली तैयार होगी तब विश्वविद्यालय परिसर कचरा मुक्त होगा.

6.5 मेगावाट बिजली का उत्पादन नालंदा विश्वविद्यालय में होगा

बिजली उत्पादन में कितने कचरे की आवश्यकता होगी. कितना कचरा विश्वविद्यालय परिसर में प्रतिदिन उपलब्ध होगा. इसका आकलन किया जा रहा है. बायोगैस से बिजली उत्पादन और सोलर पावर मिलाकर 6.5 मेगावाट बिजली का उत्पादन नालंदा विश्वविद्यालय में होगा. खुद विश्वविद्यालय को केवल 0 2 मेगावाट बिजली की फिलहाल जरूरत है. शेष बचे बिजली को विश्वविद्यालय द्वारा बिहार सरकार को आपूर्ति किया जाएगा.

कार्बन मुक्त बनेगा विश्वविद्यालय

आने वाले समय में नालंदा विश्वविद्यालय कार्बन मुक्त परिसर बनेगा. इसकी योजना भी विश्वविद्यालय द्वारा तैयार की गयी है. विश्वविद्यालय परिसर में पेट्रोल और डीजल से चलने वाली गाड़ियों का प्रवेश और परिचालन वर्जित किया जाएगा. उन गाड़ियों की जगह सीएनजी और इलेक्ट्रॉनिक गाड़ियों का प्रवेश परिसर में अनिवार्य किया जाएगा. विश्वविद्यालय के पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए और इको फ्रेंडली बनाने के लिए यह पहल किया गया है. इससे यहां के शिक्षकों, छात्र-छात्राओं के अलावे पेड़ पौधों को भी अनुकूल पर्यावरण मिलेंगे.

प्रदूषण फैलाने में प्लास्टिक का महत्वपूर्ण योगदान

प्लास्टिक जरूरत से अधिक खतरनाक दुश्मन बन गया है. यह पर्यावरण प्रदूषण के सबसे बड़े कारकों में एक है. गांव से लेकर शहर तक और मैदान से लेकर पहाड़ तक सभी जगह प्लास्टिक का बोलबाला है. प्लास्टिक पर्यावरण को प्रदूषित कर नुकसान पहुंचा रहा है. पृथ्वी पर प्रदूषण फैलाने में प्लास्टिक का महत्वपूर्ण योगदान है. यह एक गंभीर समस्या है. प्लास्टिक के बढ़ते उपयोग को रोककर इस भयावह समस्या पर काबू पाया जा सकता है. इस समस्या के समाधान के लिए बुद्धिजीवियों और छात्र- नौजवानों को आगे आकर इस दिशा में जरूरी कदम उठाने होंगे.

स्वास्थ्य और स्वच्छ पर्यावरण के लिए प्लास्टिक खतरनाक

प्लास्टिक के कंटेनर में रखे सामान स्वास्थ्य और स्वच्छ पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा है. फल, सब्जी, चावल, दाल, मसाला, दूध, घी, पनीर और मांस – मछली आदि पालिथीन में लेकर जा रहे हैं. प्लास्टिक बैग में रखा खाद्य पदार्थ भी जल्दी खराब हो जाता है. सैकड़ों सालों तक प्लास्टिक विघटित नहीं होता है. प्रत्येक नागरिक न केवल ‘प्लास्टिक को ना कहें’ , बल्कि प्रदूषण को रोकने तथा हरा-भरा और प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए जागरूकता की जरूरत है. प्लास्टिक बैग के बदले कपड़ा बैग, पेपर बैग को अपनाना चाहिये. मिनरल वाॅटर बनाने वाली कंपनियों को प्लास्टिक की जगह पेपर वॉटर बोतल में पानी आपूर्ति की व्यवस्था करनी चाहिए.

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