भारत में सफेदा की मुख्य रूप से 6 प्रजातियां पाई जाती हैं. इस पेंड़ की अधिकतम उंचाई 80 मीटर तक होती है. इन किस्मों में नीलगिरी डेलीगेटेंसिस,नीलगिरी डायवर्सीकलर,नीलगिरी निटेंस, नीलगिरी ग्लोब्युल्स और नीलगिरी ऑब्लिव्का प्रमुख हैं. भारत में नीलगिरी की खेती मुख्य रूप से आंध्र प्रदेश, बिहार,पंजाब, हरियाणा,गोआ, गुजरात मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र,केरल, पश्चिमी बंगाल उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु,और कर्नाटक में होती है.बढ़ती उपयोगिता के कारण नीलगिरी की खेती अब अमरीका, यूरोप, अफ्रीका और भारत में ज्यादा मात्रा में उगाया जा रहा है.
यूकेलिप्टस का इस्तेमाल ईंधन से लेकर कागज, चमड़ा और तेल बनाने में किया जाता है. नीलगिरी के लकड़ी का इस्तमाल इमारत और फर्नीचर को बनाने में किया जाता है. दुनियाभर में नीलगिरी की 600 प्रजातियां पाई जाती हैं. नीलगिरी यानी सफेदा की खेती करना बेहद आसान है. इसके बीज या कलम की बुवाई से 20 दिन पहले खेत की तैयारी की जाती है. मानसून के दौरान इसकी बुवाई करने पर पौधें तेजी से बढ़ते हैं. नीलगिरी के पौधे सामान्य मिट्टी और जलवायु में उगते हैं.नीलगिरी या सफेदा की खेती के लिए अच्छे जल निकास वाली भूमि की आवश्कता होती है.पौधे के उचित विकास के लिए इन्हें पर्याप्त मात्रा में सूर्य का प्रकाश, हवा और पानी की आवश्यकता होती है.
नीलगिरी के पौधे सामान्य मिट्टी और जलवायु में उगते हैं. इसके लिए 30-35 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है.जैविक तत्वों से भरपूर दोमट मिट्टी में इसके लिए सबसे ज्यादा उपयुक्त मानी जाती है.विशेषज्ञों की मानें तो नीलगिरी के पेड़ में अकसर दीमक का प्रकोप बढ़ जाता है, जिनका नियंत्रण जैविक तरीकों से भी कर सकते हैं.यदि सही तरीके से इसकी खेती की जाए तो इसकी खेती से पांच साल में करीब 50 से 60लाख रुपए की कमाई की जा सकती है. नीलगिरी की खेती का उचित समय जून से अक्टूबर तक का होता है.
नीलगिरी की खेती में ज्यादा खर्च नहीं आता है. लेकिन अच्छी देखभाल किया जाए तो आमदनी भी अच्छी हो जाएगी. एक हेक्टेयर में इसके करीब 3 हजार पौधे लगाए जा सकते हैं.हर पौधे पर 7-8 रुपये का खर्च आता है.नीलगिरी के पौधों को खरीदने में लगभग 21 हजार रुपए का खर्च आता है.और अन्य खर्चों को जोड़ लिया जाए तो करीब 25 हजार रुपए का खर्च आएगा. देखा जाए तो 4 से 5 साल बाद हर पेड़ से करीब 400 किलो लकड़ी मिलती है यानि 3000 पेड़ों से लगभग 12,00,000 किलो लकड़ी मिलेगी. यह लकड़ी बजार में 6 रुपए प्रति किलो के भाव से बिकती है. यदी लगे हुए खर्च को निकाल दिया जाए तो नीलगिरी की खेती से कम-से-कम 60 लाख रुपए 4 से 5 साल में कमा सकते हैं.