बिहार की राजनीति में सारे समीकरण बदल चुके हैं. बदले हालात में नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू ने बीजेपी का साथ छोड़कर आरजेडी-कांग्रेस और लेफ्ट के महागठबंधन का दामन थाम लिया है. नीतीश कुमार के एका-एक एनडीए छोड़ने से बीजेपी सकते में हैं. बिहार बीजेपी से लेकर केंद्रीय नेतृत्व तक को नीतीश के इस कदम ने सोचने पर मजबूर कर दिया है कि बिना जेडीयू का सहारा लिए बीजेपी सत्ता पर कैसे काबिज हो सकती है.
बता दें कि अभी तक बीजेपी जेडीयू के साथ मिलकर चुनाव लड़ती आई है. 2015 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी अकेले दम पर चुनाव लड़ी थी, लेकिन बिना नीतीश के पार्टी किसी तरह का कोई कमाल नहीं दिखा पाई थी. 2020 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर नीतीश के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और सत्ता में आ गई, लेकिन नीतीश के जाने से अब फिर सत्ता से बाहर हो गई है. ऐसे में यह माना जा रहा है कि बिहार के सियासी मैदान में अकेले पड़ी बीजेपी अब लोजपा( रामविलास) के नेता और पुराने सहयोगी चिराग पासवान के साथ जा सकती है.
बता दें कि नीतीश कुमार के अचानक महागठबंधन के साथ सरकार बनाने के बाद बिहार में बीजेपी के सामने फिर से नई चुनौती आ गई है. पूरे बिहार में पार्टी को अब जमीनी कार्यकर्ताओं को फिर से खड़ा करना होगा. अभी तक जेडीयू के साथ चुनाव लड़ने से पार्टी को उतनी मेहनत नहीं करनी पड़ती थी, लेकिन अब सभी 243 विधानसभाओं में अपना दबदाब कायम करने के लिए बीजेपी कार्यकर्ताओं को जमीन पर उतरना पड़ेगा. जनता के मन अपने प्रति विश्वास जिताना पड़ेगा. ये बीजेपी के लिए इतना आसान नहीं होगा. क्योंकि बिहार में बीजेपी का पाला नीतीश और तेजस्वी यादव से पड़ना है. दोनों ही पार्टियों का अपना मजबूत संगठन है. इसके अलावे जातिय समीकरणों के हिसाब से भी बीजेपी लालू-नीतीश की दोस्ती के सामने पस्त हो जाती है.
बिहार की राजनीति में एनडीए टूटने के बाद महागठबंधन मजबूत हुआ है. नीतीश कुमार मुख्यमंत्री पहले भी थे और अब भी हैं. बिहार में 6 प्रतिशत पासवान वोटर हैं. इस वोट बैंक पर सभी पार्टियों की नजर हैं. बदले परिवेश में जब नीतीश कुमार ने बीजपी का दामन छोड़ दिया है. तो बिहार में बीजेपी लगभग अकेले हो गई है. राजनीतिक जानकार बताते हैं कि 2024 के लोकसभा चुनाव आने तक बीजेपी चिराग को अपने साथ लेकर ही आगे बढ़ेगी.
पूर्व केंद्रीय मंत्री स्व. रामविलास पासवान के पुत्र और जमुई से सांसद चिराग पासवान ने 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था और जदयू के सभी उम्मीदवारों के खिलाफ उम्मीदवार उतारे थे, जिनमें से कई भाजपा के बागी थे. माना जाता है कि चिराग के चलते ही जदयू बिहार में तीसरे नंबर की पार्टी बन गई थी.
साल 2020 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए को बहुमत हासिल हुआ था. इस गठबंधन में सबसे ज्यादा 74 सीटें बीजेपी को मिली थीं, जबकि नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू को 43 सीटों से ही संतोष करना पड़ा था. एनडीए में शामिल विकासशील इंसान पार्टी और हिंदुस्तान अवाम पार्टी (सेकुलर) को 4-4 सीटें मिली थीं. इस तरह एनडीए का कुल आंकड़ा 125 पर जा पहुंचा. बिहार विधानसभा में कुल 243 विधायक होते हैं. लिहाजा यह संख्या बहुमत के लिए जरूरी 122 से कुछ अधिक थी.