बिहार की राजनीति में बड़ा उथल पुथल चल रहा है. शनिवार को आरसीपी सिंह के इस्तीफे के साथ शुरू हुआ तनाव अब एनडीए में टूट का रूप लेकर सामने आ रहा है. नीतीश कुमार के आवास पर हुई बैठक में फैसला ले लिया गया है कि जदयू एनडीए से अगल हो रही है. अब इसकी औपचारिक घोषणा बाकि है. हालांकि बिहार में दिख रही राजनीतिक द्वंद की शुरूआत महीनों पहले हो गयी थी. जाति आधारित जनगणना के मुद्दे पर भी नीतीश कुमार भाजपा के विचार से काफी अलग दिखे. वो केंद्र सरकार की कई अहम बैठक से मौजूद नहीं दिखे थे.
बिहार में कुल विधानसभा सीटों की संख्या 243 है. इसमें एक सीट खाली है. ऐसे में पूरा समीकरण 242 सीटों पर होगी. सरकार बनाने के लिए 122 विधायकों का साथ चाहिए. ऐसे में राज्य में राजद के पास 79, बीजेपी के पास 77, जदयू के पास 45, कांग्रेस के पास 19, सीपीआईएमएल के पास 12, एआईएमआईएम के पास एक, सीपीआई के पास 2, सीपीआई के पास एक और हम के पास चार विधायक हैं.
वर्तमान में जदयू के पास अपने 45 विधायक हैं. ऐसे में उसे सरकार बनाने के लिए 77 और विधायकों की जरूरत पड़ेगी. अब चूकी नीतीश कुमार ने भाजपा का साथ छोड़ दिया है. ऐसे में कांग्रेस का पूरा साथ मिलेगा. इसके 19 विधायक भी नीतीश कुमार झोली में चले गए. सीपीआई ने भी नीतीश कुमार को समर्थन देने की घोषणा की है. ऐसे में दो विधायकों का साथ मिलेगा. कांग्रेस महागठबंधन की संयोजक पार्टी है. ऐसे में उसके हाथ बढ़ाने से महागठबंधन की अन्य पार्टियों के हाथ भी नीतीश कुमार की तरफ बढ़ सकते हैं. ऐसे में केवल जदयू और कांग्रेस के 19 विधायको को मिलाकर 64 विधायकों का समर्थन मिल जाएगा. हालांकि फिर भी नीतीश की सरकार नहीं बनेगी. ऐसे में राजद का कद बिहार में बढ़ जाएगा.
वर्तमान राजनीतिक परिस्थिति में राजद राज्य की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है. राजद के पास बीजेपी से ज्यादा यानि 79 विधायक हैं. ऐसे में केवल जदयू और राजद भी मिलती है तो आंकड़ा 122 तक पहुंच जाता है. फिर कांग्रेस के 19 विधायकों के साथ 141 का आंकड़ा मिलता है. इन आंकड़ों में 12 कम्यूनिस्ट पार्टी और 4 हम के विधायकों का समर्थन मिले तो नीतीश कुमार के पास 157 विधायकों का समर्थन होगा. जो वर्तमान की सरकार को प्राप्त बहुमत से ज्यादा है.