50th anniversary of samporn kranti : संंपूर्ण क्रांति, गांधी मैदान, पांच जून 1974…
बिहार प्रदेश छात्र संघर्ष समिति के मेरे युवक साथियो, बिहार प्रदेश के असंख्य नागरिक भाइयो और बहनो!
अभी-अभी रेणु जी ने जो कविता पढ़ी, अनुरोध तो वास्तव में उनका था, सुनाना तो वह चाहते थे, मुझसे पूछा गया कि वह कविता सुना दें या नहीं, मैंने स्वीकार किया. लेकिन उसने बहुत सारी स्मृतियों, और अभी हाल की बहुत दुखद स्मृति को जागृत कर दिया है. इससे हृदय भर उठा है. आपको शायद मालूम न होगा कि जब मैं वेल्लौर अस्पताल के लिए रवाना हुआ था, तो जाते समय मद्रास में दो दिन अपने मित्र श्री ईश्वर अय्यर के साथ रुका था. वहां दिनकर जी, गंगाबाबू मिलने आये थे. बल्कि गंगाबाबू तो साथ ही रहते थे. और दिनकर जी बड़े प्रसन्न दिखे. उन्होंने अभी हाल की अपनी कुछ कविताएं सुनायीं. और मुझसे कहा कि आपने जो कुछ आंदोलन शुरू किया है, जितनी मेरी आशाएं आपसे लगी थीं, उन सबकी पूर्ति, आपके इस आंदोलन में, इस नये आह्वान में, देश के तरुणों का आपने जो किया है, मैं देखता हूं. (तालियां) तालियां हरगिज न बजाइये, मेरी बात चुपचाप सुनिये.
दूर जाना है…बहुत दूर जाना है
अब मेरे मुंह से हुंकार नहीं सुनेंगे. लेकिन जो कुछ विचार मैं आपसे कहूंगा वे विचार हुंकारों से भरे होंगे. क्रांतिकारी वे विचार होंगे, जिन पर अमल करना आसान नहीं होगा. अमल करने के लिए बलिदान करना होगा, कष्ट सहना होगा, गोली और लाठियों का सामना करना होगा, जेलों को भरना होगा. जमीनों की कुर्कियां होंगी. यह सब होगा. यह क्रांति है मित्रो, और संपूर्ण क्रांति है. यह कोई विधानसभा के विघटन का ही आंदोलन नहीं है. वह तो एक मंजिल है जो रास्ते में है. दूर जाना है, दूर जाना है. जवाहरलाल नेहरू के शब्दों में -अभी न जाने कितने मीलों इस देश की जनता को जाना है उस स्वराज्य को प्राप्त करने के लिए, जिसके लिए देश के हजारों-लाखों जवानों ने कुर्बानियां की हैं, जिसके लिए सरदार भगत सिंह, उनके साथी, बंगाल के सारे क्रांतिकारी साथी, महाराष्ट्र के साथी, देशभर के क्रांतिकारी साथी गोली के निशाना बने, या तो फांसियों पर लटकाये गये, जिस पर स्वराज्य के लिए लाखों-लाख देश की जनता बार-बार जेलों को भरती रही है. लेकिन आज सत्ताइस-अट्ठाइस वर्ष के बाद का जो स्वराज्य है, (उसमें) जनता कराह रही है! भूख है, महंगाई है, भ्रष्टाचार है, कोई काम नहीं जनता का निकलता है बगैर रिश्वत दिये.
(लंबे भाषण का छोटा अंश. बिहार आंदोलन 1974-खंड एक, सिंहासन खाली करो-से साभार)
आंदोलन ऐसे शुरू हुआ: 18 03 1974
शिक्षा में सुधार, महंगाई, भ्रष्टाचार के विरोध में छात्र-नौजवानों ने बिहार विधानमंडल के सामने प्रदर्शन किया. पुलिस ने लाठी चलायी, फिर गोली. छात्रों का गुस्सा फूट पड़ा. सर्चलाइट और इंडियन नेशन में आगजनी हुई. उसी दिन पटना में कर्फ्यू लगा.
- गोलीकांड में 81 छात्र-नौजवान घायल हुए. सात की जान गयी.
- बिहार राज्य छात्र संघर्ष समिति ने राज्य में 25 मार्च से दो अप्रैल तक प्रतिदिन शोकसभा, प्रदर्शन और मौन जुलूस निकालने का कार्यक्रम पेश किया.
- 30 मार्च को जयप्रकाश नारायण ने सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि भ्रष्ट और गलत सरकारों को सहने के लिए हमने आजादी की लड़ाई नहीं लड़ी थी.
- 8 अप्रैल 1974: जेपी के नेतृत्व में पटना के कदमकुआं स्थित कांग्रेस मैदान से मौन जुलूस निकला. गांधी मैदान में सभा हुई.
तारीख 12- 04-1974
गया में सत्याग्रहियों के साथ ज्यादती शुरू की. छात्रों के विरोध के बाद पुलिस ने पहले लाठी चलायी और उसके बाद गोली. एक अज्ञात बच्ची सहित नौ लोग मारे गये और 28 घायल हुए. 7 जून से 12 जुलाई के बीच 3407 सत्याग्रही गिरफ्तार किये गये.
…आंदोलन के क्या थे मुद्दे
- शिक्षा नीति में व्यापक बदलाव हो.
- सरकार बेरोजगारी दूर करने के उपाय करे.
- महंगाई पर अंकुश लगे.
- भ्रष्टाचार पर रोक लगायी जाए.
- हर हाल में लोकतंत्र की रक्षा हो.
चौहत्तर आंदोलन के चर्चित नारे
- संपूर्ण क्रांति अब नारा है, भावी इतिहास हमारा है.
- हमला चाहे जैसा होगा, हाथ हमारा नहीं उठेगा.
- लोक व्यवस्था जाग रही है, भ्रष्ट व्यवस्था कांप रही है.
- जनता खुद ही जाग उठेगी, भ्रष्ट व्यवस्था तभी मिटेगी.
- दक्षिण हो या होवे बाम, जनता को रोटी से काम.
- क्षुब्ध हृदय है, बंद जुबान, जुल्म करो मत-जुल्म सहो मत.
5 जून 1974 को जेपी ने जन- संघर्ष को आगे बढ़ाने के लिए कुल 6 कार्यक्रम तय किये थे
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- विधानसभा को भंग करना
- सरकार को ठप करना
- लगान और कर न देना
- महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों को एक साल बंद रखना
- जनता की शक्ति संगठित करना, गरीबों और कमजोरों की समस्याओं पर पहले ध्यान देना
- जीवन में नैतिक मूल्यों की स्थापना करना.
आंदोलन का सांस्कृतिक असर
बड़ी संख्या में छात्र-युवाओं ने दहेज मुक्त शादियां कीं.
जाति के बंधन तोड़ डाले.
बड़ी संख्या में युवाओं ने जनेऊ को उतार दिया.
अपने नाम के आगे-पीछे जाति सूचक टाइटल को हटा दिया.
जीवन में नैतिक मूल्यों को उतारने का संकल्प लिया.
आंदोलन का ध्येय
केवल मंत्रियों और विधायकों के बदल जाने से काम पूरा नहीं होगा. आज की राजनीति बदलनी चाहिए और साथ-साथ विकास, शिक्षा, न्याय, प्रशासन आदि की नीति-रीति सब बदलनी चाहिए. इतना होगा तो हम सब एक नये समाज में जीयेंगे, जिसमें नये साधन होंगे, नये संबंध होंगे तथा जीवन के नये मूल्य होंगे.
संयुक्त बिहार में आंदोलन वाले इलाके
पटना, आरा, देवघर, मधुपुर, जशेदपुर, बोकारो, धनबाद, मुंगेर, बेतिया, मोतिहारी, मुजफ्फरपुर, सहरसा, गया, औरंगाबाद, नवादा, कोडरमा, हजारीबाग, औरंगाबाद, सासाराम, नालंदा, बक्सर, रांची, सारण, सीवान, दरभंगा, मधुबनी..