पटना. मोदी कैबिनेट विस्तार के बाद बिहार में सियासी घमासान तेज हो गई है. चाचा और भतीजे के जंग एनडीए और महागठबंधन भी कूद पड़े हैं. इधर, आर्शिवाद यात्रा में मिली सफलता ने चिराग के हौसले को बुलंद कर दिया है. यही कारण है लोजपा (चिराग गुट) के प्रवक्ता अशरफ अंसारी कहते हैं कि अब हम बंधन मुक्त हो गए हैं. अब हमारे लिए पूरा मैदान खाली है, राजद- कांग्रेस ही नहीं हम किसी से भी समर्थन और गठबंधन कर सकते हैं. लेकिन, इससे पहले हम संगठन को मजबूत करने में लगे हैं.
महागठबंधन के साथ आते तो बनेगा बड़ा वोट बैंक
तेजस्वी यादव के पास यादवों और मुसलमानों का पहले से ही 16-16 फीसदी वोट बैंक हैं. चिराग पासवान के साथ आने पर दलितों का भी महागठबंधन के साथ 16 फीसदी वोट आ जायेगा. ऐसा हुआ तो महागठबंधन के पास 48 फीसदी वोट बैंक हो जाएगा. इससे तेजस्वी और चिराग दोनों को ताकत मिल सकती है. चिराग का साथ लेने की राजनीतिक तैयारी भी तेजस्वी यादव ने कर रखी है. एक तरफ नीतीश कुमार ने दलितों के राष्ट्रीय स्तर के नेता रामविलास पासवान की जयंती पर कोई ट्वीट तक नहीं की, न उनकी पार्टी जेडीयू ने कोई श्रद्धांजलि सभा की, वहीं दूसरी तरफ तेजस्वी यादव ने राष्ट्रीय जनता दल की स्थापना के दिन रामविलास पासवान की जयंती भी मनाई और उनकी तस्वीर पर पुष्पांजलि की. लालू प्रसाद ने भी वर्चुअली रामविलास पासवान को याद कर श्रद्धांजलि दी थी.
बताते चलें कि लोजपा में रामविलास पासवान की विरासत की जंग में पशुपति पारस सहित पांच सांसदों ने अलग गुट बना लिया है, जिसे लोकसभा में बतौर लोजपा को मान्यता भी मिल चुकी है. इधर, चिराग पासवान ने उन सभी सांसदों को पार्टी से निकालते हुए पार्टी संविधान का हवाला देकर लोकसभा अध्यक्ष से आग्रह किया था कि वे पशुपति पारस गुट से लोजपा की मान्यता वापस लें. लेकिन, जब लोकसभा अध्यक्ष ने इसे नजरअंदाज किया तो वे खफा हो गए अब अपनी गुहार कोर्ट में लगायी है. इधर, चिराग ने अपने कार्यकर्ताओं को अगले विधानसभा चुनाव की तैयारियों में अकेले जुट जाने को कहा है. उन्होंने महागठबंधन में जाने की बात से भी इंकार नहीं कर बिहार में एक नई राजनीतिक सरगर्मी तेज कर दी है.
JDU के दबाव में चिराग को नहीं मिली एंट्री
लोजपा (चिराग गुट) के नेताओं ने गुरुवार को सीएम नीतीश कुमार पर आरोप लगाया है कि उनके दबाव में चिराग को मंत्रिमंडल में एंट्री नहीं मिली है.उनका आरोप है कि JDU किसी भी हाल में चिराग पासवान की केंद्रीय मंत्रिमंडल में एंट्री नहीं होने देना चाहती थी. इसी वजह से मंत्रिमंडल विस्तार से पहले ऑपरेशन LJP तोड़ो और चिराग पासवान को अकेला छोड़ा.