Bihar News: पटना. फिल्म इंडस्ट्री में खास मुकाम हासिल करने की कहानियां अक्सर प्रेरणादायक होती हैं, लेकिन अभिनव ठाकुर की यात्रा ने इस क्षेत्र में कई नयी ऊंचाई हासिल की है. बैंक की नौकरी करते हुए दोस्तों से पैसे लेकर फिल्म निर्माण का साहसिक कदम उठाने वाले अभिनव ने कई चुनौतियों का सामना किया. उनकी कहानी उनके जुनून और समर्पण को ही नहीं, बल्कि यह भी दर्शाती है कि कैसे दृढ़ संकल्प से किसी भी सपने को साकार किया जा सकता है. 8वीं कक्षा में बेगुसराय छोड़कर मुंबई आये अभिनव ने वहीं अपनी पढ़ाई पूरी की. उन्होंने पहली फीचर फिल्म ‘ये सुहागरात इम्पॉसिबल’ बनायी, जिसे लोगों ने खूब सराहा. सोमवार को वे प्रभात खबर दफ्तर पहुंचे, जहां उन्होंने अपनी फिल्म मेकिंग करियर से जुड़ी कई बातें साझा की. पेश है अभिनव ठाकुर की हिमांशु देव से हुई बातचीत के प्रमुख अंश.
Q. बेगूसराय से मुंबई और फिर बैंकिंग से फिल्म मेकिंग की यात्रा कैसी रही?
- बचपन में घरवाले मेरी पढ़ाई को लेकर गंभीर थे, इसलिए समस्तीपुर के आदर्श विद्या निकेतन में हॉस्टल में रहकर पढ़ाई की. लेकिन, पारिवारिक परिस्थितियों के कारण मुझे ननिहाल मुंबई जाना पड़ा. वहां बैंकिंग का माहौल था. तब मैंने वहीं से ग्रेजुएशन पूरा किया और फिर एमबीए. इस दौरान कैंपस प्लेसमेंट में बैंक में नौकरी मिल गयी. दो साल यहां काम किया. इसी दौरान दो शॉर्ट फिल्में ‘रामकली’ व ‘रेडियो’ बनाया. तब इसे बनाने के लिए मेरे पास पैसे तक नहीं थे. पर मेरे दोस्तों ने उधार दिया. फिल्म बना, तो रिस्पांस अच्छा मिला. इसके बाद मैं एफटीआइआइ पुणे में दाखिला ले लिया और नौकरी छोड़ पूरी तरह से फिल्म मेकिंग में आ गया.
Q. ‘द लिपस्टिक ब्वॉय’ को खूब सराहा गया, इसे बनाने का ख्याल कैसे आया?
होली के दिनों में गांव में ‘पागल कहेले ना..’ गीत गाकर पुरुष महिला बन घर-घर जाकर पैसे मांगते थे. वह दृश्य मेरे जेहन में बसा था. लेकिन, साल 2016 में मेरी फिल्म दहलीज: एक कहानी मेरी भी की स्क्रीनिंग हो रही थी. वहां, बिहार के कलाकार उदय कुमार सिंह मुझसे मिले, जिनके इर्द-गिर्द कहानी घूमती है. उन्होंने अपनी कहानी सुनायी व सोसाइटी की समस्या को बताया. जिसके बाद मैं कई लोगों से मिला. इसे 2016 में बनाने की सोची. 2018 में स्क्रिप्ट तैयार कर लिया और 2019 से शूटिंग शुरू कर दी.
Q. आज के युवा अभिनेता और फिल्म निर्देशक कैसे बन सकते हैं?
किसी भी काम में सफलता पाने के लिए धैर्य और समर्पण बहुत जरूरी है. सबसे पहले यह तय करें कि आप क्या बनना चाहते हैं. फिर, अपने पसंदीदा अभिनेता को फॉलो करें, उनके काम को समझें और डायलॉग की प्रैक्टिस करें. यह धैर्य और निरंतरता की मांग करता है, चाहे अभिनय हो या निर्देशन. आज के डिजिटल युग में, स्मार्टफोन का उपयोग करके आप अपने करियर की शुरुआत कर सकते हैं. रील्स और शॉर्ट वीडियो से शुरू करें और धीरे-धीरे बड़े प्रोजेक्ट्स पर ध्यान केंद्रित करें. धैर्य और लगन के साथ काम करें, सफलता खुद-ब-खुद आयेगी.
Q. लोग फिल्म के बजट व बॉक्स ऑफिस कलेक्शन देख फिल्म देखने जाते हैं, इसे लेकर आप क्या सोचते हैं?
फिल्मों को देखने के लिए केवल उनके बजट और बॉक्स ऑफिस कलेक्शन के आधार पर सिनेमाघर जाना सही नहीं है. इन आंकड़ों के चलते अच्छी फिल्में पीछे रह जाती हैं. हाल ही में कई ऐसी फिल्में रिलीज हुई हैं, जिनका बजट कम था लेकिन, वे ब्लॉकबस्टर रही. इसके विपरीत, कुछ कम बजट वाली फिल्में असफल रहीं, लेकिन उन्हें आज भी पसंद किया जाता है. इसलिए, दर्शकों से आग्रह है कि वे फिल्में देखने से पहले उसकी कहानी पर ध्यान दें और इसी आधार पर निर्णय लें.
Q. आपकी अपकमिंग फिल्म कौन सी है और उन्हें लोगों को क्यों देखना चाहिए?
अच्छी फिल्में बनाने के लिए मैं रिसर्च करता हूं और पूरी जानकारी हासिल करने के बाद ही कहानी को अंतिम रूप देता हूं. फिलहाल, मेरे पास दो प्रोजेक्ट है: ‘बिसाही’ और ‘द लीगल बाबा’. बिसाही एक हॉरर सोशल ड्रामा फिल्म है, जो डायन प्रथा की उत्पत्ति और महिलाओं पर उसके प्रभाव को दर्शाती है. इसमें डर के साथ शिक्षा भी मिलेगी. वहीं, द लीगल बाबा सोशल कॉमेडी ड्रामा फिल्म है जो चाय वालों के जीवन पर आधारित है. इसमें चाय की सामाजिक भूमिका, चाय पर चुनावी चर्चा आदि देखने को मिलेगी. बहुत जल्द दोनों फिल्में सिनेमाघरों में रिलीज होगी. इसमें बड़े-बड़े कलाकार दिखेंगे.