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बिहार के अनुकूल है समावेशी विकास का मॉडल

दो दिवसीय संगोष्ठी का समापन शुक्रवार को भिखारी ठाकुर के नाटक गबरघिचोर के मंचन और उनके सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार के संदेश के साथ हुआ.

-डीएमआइ के 11वें स्थापना दिवस पर विकसित बिहार की परिकल्पना पर आयोजित दो दिवसीय संगोष्ठी का समापन भिखारी ठाकुर के नाटक के मंचन के साथ हुआ

संवाददाता, पटना

विकास प्रबंधन संस्थान (डीएमआइ) के 11वें स्थापना दिवस पर विकसित बिहार की परिकल्पना पर आयोजित दो दिवसीय संगोष्ठी का समापन शुक्रवार को भिखारी ठाकुर के नाटक गबरघिचोर के मंचन और उनके सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार के संदेश के साथ हुआ. डीन एकेडमिक प्रो शंकर पूर्वे ने नागरिक समाज के मायने सत्र का संचालन करते हुए कहा कि बिहार की हकीकत और उसकी छवि में काफी अंतर है. बिहार आर्थिक के मामले में जरूर अन्य से पिछड़ गया है. लेकिन, कई क्षेत्र हैं, जिनमें हम बेहतर हैं. आज के बदलते बिहार में सामाजिक कार्यों में भी पेशेवर विशेषज्ञों से जुड़ाव बढ़ता जा रहा है. बाल श्रमिक से जेएनयू, यूएनओ और हार्वर्ड तक सफर तय करने वाले सतेंद्र कुमार सत्या महादलित समाज के विकास में योगदान दे रहे हैं. उन्होंने कहा कि संसाधन हमारे पास हैं, लेकिन गुणवत्ता की कमी लक्ष्य में बाधा है.

हैपी होराइजन के क्षितिज आनंद ने कहा कि बिहार का विकास मॉडल समावेशी है. यहां सभी के लिए अवसर युक्त विकास की संस्कृति रही है. छवि हकीकत से परे बना दी गयी है. ग्रामीण क्षेत्रों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए प्रयासरत श्रवण झा ने कहा कि किसी भी राज्य या देश का विकास बगैर निजी क्षेत्र की सहभागिता के नहीं हो सका है. बिहार में निजी संगठनों को लेकर नजरिया बदलने की जरूरत है. जेएनयू की शोधार्थी रहीं डॉ नुजहत नाजनीन ने कहा कि समय बदलाव के साथ बढ़ता है. आज भी हमारे शिक्षण संस्थानों में वैसे कोर्स पढ़ाये जा रहे हैं, जिनकी प्रासंगिकता कम हो चली है. युवा पीढ़ी को वर्तमान समय के साथ कदमताल और भविष्य में बेहतर करने वाले कोर्स की जरूरत है. सवाल जवाब सत्र में बिहार के चहुंमुखी विकास के विविध आयामों पर गहन चर्चा हुई. सभी विशेषज्ञ बिहार डेवलपमेंट कलेक्टिव से जुड़े हुए हैं.

गबरघिचोर से दर्शाया महिला का मर्म

भिखारी ठाकुर ट्रेनिंग और रिसर्च सेंटर के कलाकारों ने गबरघिचोर का मंचन कर महिला का मर्म और पलायन की पीड़ा को दर्शाया. जेएनयू के छात्र रहे डॉ जैनेंद्र दोस्त के निर्देशन में कलाकारों ने जीवंत प्रस्तुति से अतिथि, शिक्षक और विद्यार्थियों को सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध जागरूक किया. कार्यक्रम समन्वयक प्रो सूर्यभूषण ने सभी कलाकारों को अंगवस्त्र और स्मृति चिह्न देकर सम्मानित किया. कलाकारों ने निदेशक प्रो देबीप्रसाद मिश्रा को भिखारी ठाकुर की मूर्ति भेंट कर लोक संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए आभार जताया.

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