हिंदी दिवस की पूर्व संध्या पर शुक्रवार को प्रभात खबर की ओर से मगध महिला कॉलेज के आइक्यूएसी व हिंदी विभाग में संवाद कार्यक्रम का आयोजन किया गया. जिसका विषय ‘21वीं सदी के युवा और हिंदी’ था. कार्यक्रम में मुख्य वक्ता कवि व मनोचिकित्सक डॉ विनय कुमार रहें, जिन्होंने छात्राओं को संबोधित किया. संवाद में उन्होंने कहा, यह सच है कि हिंदी दिवस अब मात्र एक औपचारिक आयोजन होकर रह गया है. आज हिंदी अखबारों की बीस करोड़ प्रतियां बिकती हैं, जबकि अंग्रेजी की सिर्फ चार करोड़. आज सभी चैनल और विदेशी टीवी कार्यक्रम हिंदी में उपलब्ध हैं. हिंदी जानना और ठीक से हिंदी जानना दोनों में अंतर है. हिंदी आपको रोजगार दिला सकता है, क्योंकि वैश्वीकरण ने भाषा के सारे समीकरण बदल दिये हैं. संवाद कार्यक्रम में कॉलेज की प्राचार्या प्रो नमिता कुमारी, आइक्यूएसी की कॉर्डिनेटर डॉ पुष्पलता कुमारी, हिंदी विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ शिप्रा प्रभा, प्रभात खबर के स्थानीय संपादक रंजीत प्रसाद सिंह और ब्यूरो चीफ मिथिलेश कुमार मौजूद रहे.
मैंने हिंदी माध्यम से ही विज्ञान की पढ़ाई की
डॉ विनय ने कहा कि मैंने हिंदी माध्यम से ही विज्ञान की पढ़ाई की है. पर मुझे कभी परेशानी नहीं हुई. सबसे बड़ी मुश्किल है कि हम पढ़ते ही नहीं है, जिससे की उसे जाना जाये. कभी पटना में हिंदी साहित्य सम्मेलन, राष्ट्रभाषा परिषद और हिंदी ग्रंथ अकादमी जैसी संस्थाएं सक्रिय थीं. अब सब मृतप्राय हैं. मैंने सत्तर के दशक में इनकी सक्रियता देखी थी. अपने स्कूल से एक अधिवेशन के दौरान आया था. उस वक्त केसरी कुमार, राम दयाल पांडे, प्रकाश वीर शास्त्री, पी वी नरसिंहराव, आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री आचार्य देवेंद्रनाथ शर्मा जैसे लोगों के भाषण सुने थे. स्मरण रहे कि हम जब कोई भाषा पढ़ते हैं, तो वह हमारे अंदर बोलती रहती है. समस्या है कि आपके पास बोलने के लिए क्या है और ज्ञान क्या है? अगर आपके पास कहने के लिए है, तो किसी भी भाषा में वह अभिव्यक्त हो जायेगी. सबसे जरूरी है पढ़ने के साथ ज्ञान का होना.
ज्ञान होगा, तो रास्ते बनते चले जाते हैं
आज हम सभी ग्लोबल प्लेटफॉर्म पर खड़े हैं. देश की भाषा समस्या त्रिभाषा फार्मूला से खत्म हो सकती है. अज्ञेय जी ने एक मॉडल सुझाया था – हिंदी, अंग्रेजी और किसी अन्य राज्य की भाषा. अगर हम दक्षिण के राज्यों की भाषा सीखें, तो उन्हें हिंदी सिखाएं तो पूरे देश में बेहतर समन्वय हो सकता है. इससे पूरे देश में लोग हिंदी बोलने के साथ अन्य भाषा भी समझ सकेंगे. यह हिंदी के विकास के लिए जरूरी है. जहां तक रोजगार की बात है, तो ज्ञान होगा तो रास्ते बनते चले जाते हैं. आज के समय में हिंदी डबिंग, हिंदी कंटेंट राइटिंग जैसे कई रोजगार के साधन हैं.
मातृभाषा में शिक्षा देना मानसिक विकास के लिए जरूरी
कवि व मनोचिकित्सक डॉ विनय कुमार ने कहा कि एक अहम बात यह भी है कि मातृभाषा में शिक्षा देना बौद्धिक व मानसिक विकास के लिए जरूरी है. इसके पक्ष में काफी शोध सामग्री है. जब आप मातृभाषा में पढ़ते हैं, तो परंपरा और मां से जुड़ते हैं और आपके व्यक्तित्व का बेहतर विकास होता है, लेकिन उस ग्लोबल दुनिया में केवल मां के संगीत से काम नहीं चलेगा और अपनी भाषा में पिता द्वारा बोले गये शब्दों से भी नहीं. एक और भाषा जरूरी है. हिंदी पर अधिकार हो तो दूसरी भाषा, मसलन अंग्रेजी आसानी से सीख जायेंगे. मेरी संस्थानों से अपील है कि बच्चों को कम से कम दो भाषाओं पर अधिकार की तैयारी कराएं.
किताब का ज्ञान व इंटरैक्टिव सेशन दोनों महत्वपूर्ण
कॉलेज की प्राचार्या प्रो नमिता कुमारी ने कहा कि छात्राओं को मैं हमेशा कहती हूं, किताबों में सबकुछ लिखा रहता है, लेकिन शिक्षकों की नियुक्ति इसलिए होती कि जब वह आपको पढ़ाएं तो वह विषय आपके स्मृति में रहे. किताब का ज्ञान और इंटरैक्टिव सेशन दोनों का अपना-अपना महत्व है. 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने यह निर्णय लिया कि हिंदी केंद्र सरकार की आधिकारिक भाषा होगी. इसलिए 14 सितंबर को प्रतिवर्ष हिंदी-दिवस मनाया जाता है. वहीं प्रभात खबर के ब्यूरो चीफ मिथिलेश कुमार ने कहा कि हमें अपने राष्ट्र भाषा का सम्मान करना चाहिए. आप सभी को साहित्य पढ़ना चाहिए, इससे आपकी हिंदी बेहतर होगी और आपको कई विषयों की जानकारी होगी. स्थानीय संपादक रंजीत प्रसाद सिंह ने कहा कि हिंदी पर चर्चा की जरूरत क्यों है? यह विमर्श एक विषय बना हुआ है. कोई भी भाषा तभी हमारे जीवन में आगे बढ़ती है, जब वह हमें रोजगार से जोड़ती है. हिंदी हमारे कामकाज की भाषा बनें, रोजगार की भाषा बनें और बोलचाल की भाषा बनें. कार्यक्रम में मंच संचालन डॉ आशा कुमारी ने किया. इस दौरान हिंदी विभाग के टीचर्स, छात्राएं और अन्य विभाग के टीचर्स और छात्राएं मौजूद रहीं. इस अवसर पर प्रभात खबर की ओर से हिंदी विभाग को कई तरह के पौधे दिये गये.
छात्राओं ने कहा- प्रभात खबर संवाद ने मातृभाषा से लगाव की दी प्रेरणा
- मैं इतिहास की छात्रा हूं. परंतु, हिंदी से मुझे विशेष लगाव है. व्याख्यान में भाग लेकर बहुत अच्छा लगा. वक्ताओं ने हिंदी की समृद्धि और उसके संरक्षण की आवश्यकता पर जोर दिया. यह हमें अपनी मातृभाषा की गरिमा को बनाए रखने का प्रेरणा देता है. हिंदी में विद्वान रहे हैं, जिनकी कृतियों को पढ़कर काफी कुछ सीखने को मिलता है. मुझे हिंदी भाषी लेखकों की जीवनी को भी पढ़ना अच्छा लगता है.
- रूसा कुमारी, छात्रा
- हिंदी दिवस पर ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन हमारे भाषा प्रेम को और प्रोत्साहित करता है और हमें हिंदी के प्रति हमारी जिम्मेदारियों की याद दिलाता है. मैं महादेवी वर्मा व सुभद्रा कुमारी चौहान की के कविता व कहानियां काफी पसंद करती है. मैं भी कवयित्री बनना चाहती हूं. मैं अच्छी कविताएं व कहानियां लिखना चाहती हूं. ताकि, एनसीईआरटी पुस्तक में प्रकाशित हो सके.
- अनुष्का वर्मा, छात्रा
- प्रभात खबर द्वारा आयोजित यह संवाद हिंदी के प्रति हमारे प्रेम और समर्पण को और बढ़ाने वाला था. वक्ताओं ने हिंदी भाषा के महत्व और उसके विकास के लिए हमारी जिम्मेदारियों पर जोर दिया. इस कार्यक्रम ने हमें अपनी मातृभाषा की समृद्धि को बनाए रखने की प्रेरणा दी है. हमें गर्व है कि हम हिंदी का हिस्सा हैं. मैं आइएएस ऑफिसर बनना चाहती हूं. इस यात्रा में भी मुझे इस भाषा से काफी मदद मिलेगी. मैं विकास दिव्यकीर्ति से प्रभावित होती हूं.
- सुरूति कुमारी, छात्रा
- वर्तमान में अधिकतर लोग हिंदी का महत्व कम दे रहे हैं. जबकि, भारतीय संस्कृति में इसका उच्च स्थान है. इसे आगे बढ़ाने के लिए मैं योगदान देना चाहती हूं. इस भाषा से इंसान एक-दूसरे से कनेक्ट कर पाता है. वक्ता से भी भाषा के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पहलुओं को जानने का मौका मिला.
- मानसी, छात्रा
- मैं प्रशासनिक सेवा में अपना योगदान देना चाहती हूं. अभी हिंदी में स्नातक कर रही हूं. मुझे महादेवी वर्मा, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, सुमित्रानंदन पंत आदि की कृतियां काफी प्रभावित करती हैं. प्रेमचंद की ‘बड़े घर की बेटी’ व ‘दो बैलों की कथा’ से भी मैं काफी प्रभावित होती हूं. मैं हिंदी को संजोने और प्रचारित करने के लिए तत्पर रहूंगी.
- अभिलाषा, छात्रा
- जिस भाषा को लोग देशभर में बोलते हैं. आज इसे लोग प्रमुखता नहीं दे रहे हैं. आज भी कई सरकारी दस्तावेजों में सिर्फ अंग्रेजी भाषा का प्रयोग देखने को मिलता है. इसे वक्ताओं ने भी अपनी बात में रखी. उनकी बातों ने हमें यह समझाया कि हमारी मातृभाषा को संरक्षित और सम्मानित रखना कितना आवश्यक है मैं मानती हूं कि जितना हिंदी में विकल्प है, उतना किसी और में नहीं.
- अमृता कुमारी, छात्रा
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