कैमूर से विकास कुमार की रिपोर्ट
Kaimur Picnic Spot नये साल को आने में अब महज कुछ दिन बचे हैं. अगर आप भी नये साल में पिकनिक मनाने का मन बना रहे हैं तो एक बार कैमूर आए. यहां आप पहाड़ के साथ साथ प्रकृति के वादियां के बीच अपना नया साल मना सकते हैं. प्रकृति की गोद में बसे कैमूर के पहाड़ी को भी अब पर्यटन स्थल के रुप में पर्यटन विभाग विकसित कर रहा है. यहां इको टूरिज्म को लेकर तमाम संभावनाएं मौजूद हैं. सरकार स्तर से भी इसे इको टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिये भरपूर प्रयास भी किया जा रहा है.
करकटगढ़ जलप्रपात
कैमूर के मनोरम पहाड़ी वादियों में कर्मनाशा नदी के पानी को लपेट जिले का करकट गढ़ जलप्रपात देखने वालों को प्रकृति के जीवंत सौंदर्य का एहसास करा जाता है. यह मुख्यालय से 55 किलोमीटर दूर चैनपुर प्रखंड में अवस्थित है और करकटगढ़ जल प्रपात इको टूरिज्म के लिहाज से एक बेहतर जगह है. यहां इको पार्क सहित झूला पुल भी बनाया गया है. यहां पर दर्शकों को सैकड़ों फीट नीचे गिरते हुये जलप्रपात के सफेद जलधारा के बीच जाड़े की दोपहर में चट्टानों पर धूप सेंकते मगरमच्छ के बच्चों की अठखेलियां प्राकृतिक सौंदर्य का एक अनोखा बोध कराती हैं. वन प्रमंडल का प्रयास इस इको सेंसेटिव जोन काे पूरी तरह प्रदूषण मुक्त बनाने का है.
मुंडेश्वरी धाम
भगवानपुर प्रखंड के त्रिकूट पर्वत पर बसा मां मुंडेश्वरी का निवास स्थल मुंडेश्वरी धाम सूबे के अति प्राचीन शक्ति पीठ और स्थापत्य कला का अनुपम धरोहर है. इस आवासीय पहाड़ी को पूरी तरह प्रदूषण मुक्त कर इको टूरिज्म का प्रयास प्रगति पर है. इस पहाड़ी में एक तरफ जहां अपूर्व शांति और सात्विक वातावरण का प्रकाश है. वहीं दूसरी तरफ चेतन भूमि के ओज से चमकता देवी का यह निवास स्थल वर्तमान में पर्यटन के दृष्टि से सरकार सहित देश के विभिन्न कोने के लोगों का ध्यान अपनी ओर खींच रही है. यही नहीं पहाड़ी के गोद में बना आधुनिक सुविधाओं से युक्त चार एकड़ का इको पार्क और उसमें लगे पेड पौधे व फूल दर्शकों को तनाव से मुक्त कर एक अलग सुकून देते हैं.
दुर्गावती जलाशय
तीन पहाड़ो को बांध कर बनाया गया जिले की सबसे सिंचाई परियोजना दुर्गावती जलाशय का क्षेत्र भी पर्यटकों को आकर्षित करने में एक बड़ी भूमिका निभा रहा है. यह जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर दूर स्थित है. परियोजना के विशाल क्षेत्र में फैला जल संग्रहण क्षेत्र में अब सात समंदर पार कर आये मेहमान परिंदों के कलरव से गूंजने का सिलसिला भी शुरू हो चुका है. ये हजारों मिल की लंबी उड़ान तय करके एक नई दुनिया में अपने नये घरौंदों का सृजन करने परदेश से कैमूर आते हैं. दुर्गावती जलाशय परियोजना क्षेत्र को बर्ड सेंचुरी के रूप में विकसित करने की पहल भी वन प्रमंडल कैमूर द्वारा शुरू की जा चुकी है. जलाशय के पुल पर खड़े हो कर इसके विशाल जल क्षेत्र से आने वाली ठंडी हवाओं के झोंके लोगों को ताजगी से भर देते है.
तेलहाड़ कुंड
कैमूर के पहाड पर जिला मुख्यालय से 25 किलोमीटर दूर अधौरा प्रखंड का तेलहाड़ कुंड प्रकृति के अनुपम अवदानों की खूबसूरत कड़ी में एक है. जिले के हरे भरे और सघन वन के बीच बसा यह जगह जिले का यह महत्वपूर्ण पिकनिक स्पॉट भी हैं. जहां पहाड़ियों से सुवर्णा नदी के पानी को अपने लपेट में लेकर सैकड़ों फीट के गहराई में गोते लगाने वाला तेलहाड कुंड के धवल जल को देखना अपने आप में एक सुंदर एहसास है. यही नहीं जिले के हरे भरे और सघन वन के बीच रचा-बसा यह स्थल लोगों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करते हैं. यहां जाने वाले प्राकृतिक छटाओं का आनंद लेते हुये बरसात में पगंडडियों पर नृत्य में मशगूल मयूर युगलों के पंखों की फड़फड़ाहट भी देख सकते हैं. तेलहाड कुंड को भी पर्यटन के दृष्टि कोण से विकसित करने को लेकर इको पार्क आदि की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है.
बंशी खोह
अधौरा प्रखंड के पहाड़ी में झरनों का समूह बंशी खोह भी अब पर्यटन की लालिमा बिखरने लगा है. यह स्थल जिला मुख्यालय से 60 किलोमीटर दूर स्थित है. इस बंशी खोह की खासियत यह है कि पहाड़ी से नीचे इस खोह में कई झरने गिरते हैं. खुले आसमान से बादलों के बीच झांकता बंशी खोह का यह झरना बरसात के मौसम में गोवा के दूध सागर झरने की झलक दिखा जाता है. उमड़ते घुमड़ते बादलों के बीच दो पहाडों के बीच गीर रहे झरने के उपर सफेद कुहासे की परत इसकी सुंदरता को और भी बढा देती है. यहां पहुंचने वाले पर्यटक इस झरने की तुलना गोवा और मेघालय के झरनों से करते हैं. हालांकि अभी बंशी खोह तक पहुंचने का रास्ता अभी थोड़ा दुर्गम है. लेकिन सरकारी प्रयासों के बाद यह खोह पर्यटकों के लिये एक जन्नत से कम नहीं होगा.
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