राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का बिहार से गहरा नाता रहा है. बापू सबसे पहले 1917 में बिहार आए थे. इसके बाद से गांधी जी का लगातार पटना आना जाना लगा रहता था. आजादी के दौर में पटना में बापू की मेजबानी अनुग्रह नारायण सिन्हा सामाजिक अध्ययन शोध संस्थान ने की थी. इस प्रांगण में गुलाबी और सफेद रंग की इमारत है जो की गांधी शिविर के नाम से प्रसिद्ध है. 1947 में वो यहां लगभग 40 दिन तक ठहरे थे.
गांधी जी पांच मार्च 1947 को अपने सहयोगियों निर्मल कुमार बोस, मनु गांधी, देव प्रकाश, नायर, सैयाद अहमद के साथ पटना पहुंचे थे. आठ मार्च 1947 को गांधी जी के बुलावे पर अब्दुल गफ्फार खां भी इसी भवन में उनके साथ ठहरने के लिए पहुंचे थे. महात्मा गांधी यहीं रह कर कार्यकर्ताओं से भेंट किया करते थे.
महात्मा गांधी 30 मार्च 1947 को वायसराय लार्ड माउंट बैटन के निमंत्रण पर उनसे मिलने दिल्ली गये और फिर 15 दिन बाद 14 अप्रैल 1947 को पटना वापस आने पर इसी भवन में ठहरे थे. 40 दिनों तक इस भवन में ठहरने और भड़के हिंसा को शान करने के बाद 24 मई 1947 को गांधी जी वापस लौट गये.
उस वक्त गांधी जी के सहयोगी प्यारे लाल और पोती मनु गांधी भी यहां उनके साथ रहीं. गांधी शिविर के नाम से प्रसिद्ध एक मंजिला एनेक्सी भवन में चार कमरे हैं. आगे-पीछे बरामदा और किचन है पीछे एक चबूतरा है, जिस पर बैठ कर गांधी जी पत्र लिखा करते थे. आज इसकी हालात काफी खराब है. यहां हमेशा ताला लटका रहता है.
1921 में गांधी जी पटना आये और गांधी जी ने अशोक राज पथ स्थित खुदा बख्श लाइब्रेरी देखने गये. जिसकी लालसा उन्हीं के शब्दों में बहुत पहले से थी. यहां से वो गोरखपुर रवाना हो गए थे. जहां से होते वो बिहारशरीफ़ होते हुए सदाकत आश्रम पहुंचे थे.
वर्ष 1942 में महात्मा गांधी ने बांकीपुर लौन (अब गांधी मैदान) में एक माह तक प्रतिदिन प्रार्थना सभा में यहीं प्रवचन किया करते थे. इससे पूर्व 1934 में बांकीपुर लौन में ही महात्मा गांधी का प्रवचन का आयोजन हुआ था. 20 मार्च 1934 को अस्पृश्यता निवारण आंदोलन के सिलसिले में महात्मा गांधी मंगल तालाब (पटना सिटी) पधारे थे और वहां एक सार्वजनिक सभा को संबोधित किया