पटना. राजद सोमवार को अपना 25 वां स्थापना दिवस मना रही है। राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद ने स्थापना दिवस कार्यक्रम का उद्घाटन करते हुए लोजपा के दिवंगत नेता राम विलास पासवान को श्रद्धांजलि दी. इसके बाद उन्होंने रामविलास के साथ संघर्ष के दिनों को याद करते हुए कहा कि हम दोनों एक साथ काफी काम किये है. रामविलास पासवान हमारे साथ मंत्री भी रहे हैं.
उनके नहीं रहने से मैं आहत हुं. मैं उनके प्रति गहरी संवेदना व्यक्त करते हैं. राजद के स्थापना दिवस पर रामविलास पासवान को याद करने के अपने राजनीतिक मायने हैं. लालू प्रसाद बिहार में एक नया राजनीतिक समीकरण बनाना चाहते हैं. इसके लिए वे चिराग को अपने पक्ष में करना चाहते हैं.
यह कवायद लोजपा में टूट के बाद से ही चल रही है. लालू प्रसाद इसे अपने माई समीकरण की तर्ज पर माई + पी (मुस्लिम + यादव + पासवान) बनाने की कवायद में लगे है. महागठबंधन अपने इस नए समीकरण से एनडीए के उस गणित का करारा जवाब देना चाहती हैं जिसको लेकर लोजपा में टूट हुई और एनडीए उत्साहित है. महागठबंधन अगर यह गेम बदलने में सफल हो गई तो एनडीए का पूरा गेम प्लान बदल जाएगा. क्योंकि राजद और मुसलमान महागठबंधन के साथ हैं. बिहार में यादवों का 16 % वोट राजद की परंपरागत वोट है. इसमें किसी ने अभी तक सेंघमारी नहीं कर पाया है. वहीं, मुसलमान राजद और कांग्रेस को छोड़कर दूसरे को बहुत कम ही वोट देते हैं. बिहार में मुसलमान 17 प्रतिशत वोट है.
यदि, महागठबंधन को चिराग पासवान का 6 प्रतिशत वोट मिल जाता है तो अगले चुनाव में महागठबंधन अपनी सरकार बनाने की स्थिति में होगी. सभी पार्टियों का वोट प्रतिशत मिला लिया जाए तो 16+17+6= 39 फीसदी वोट हो जाते हैं. वहीं, लेफ्ट और कांग्रेस के अलग कैडर हैं, जो हर हाल में कांग्रेस और लेफ्ट को ही वोट देते हैं. ऐसे में चिराग ने यदि पलटी मारी तो एनडीएका पूरा समीकरण ध्वस्त हो जाएगा.
रामविलास के नाम पर मिले थे पासवानों के वोट
अलग-अलग जाति से आने वाले सांसद लोजपा का वोट बैंक तोड़ने में कामयाब होंगे इसपर कई तरह के कयास हैं. पासवान जाति से आने वाले पशुपति पारस और प्रिंस राज की पहचान रामविलास पासवान की वजह से थी, न कि वो पासवान जाति के नेता से है. ऐसे में भूमिहार समाज से आने वाले चंदन सिंह की जीत उनके भाई सूरजभान सिंह की वजह से हुई थी लेकिन, यह सब कुछ तब संभव हुआ था जब उन्हें पासवान जाति ने रामविलास की वजह से सपोर्ट कर दिया था.
इसी प्रकार वीणा देवी राजपूत समुदाय से आती हैं. वैशाली जैसे क्षेत्र में राजपूत का बोलबाला है और उन्हें जब पासवानों का सपोर्ट मिला तो वे जीत गई. खगडिया से जीते चौधरी महबूब अली कैसर मुसलमान समुदाय से आते तो जरूर हैं, लेकिन नरेंद्र मोदी की लहर ने इन्हें जीत दिलाई थी, हिन्दूओं ने जमकर वोट किया था. गत कुछ वर्षों के इतिहास को अगर देखा जाए तो बिहार की राजनीति भूमिहार वर्सेस अन्य जातियों के बीच चली आ रही है। इसी कारण हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) पार्टी में जब महाचंद्र प्रसाद सिंह और अजीत कुमार जैसे भूमिहार नेताओं ने रोटी सेंक बैतरणी पार करना चाहा तो राज्य की जनता ने हम पार्टी को सिरे से खारिज कर दिया और हाशिए पर डाल दिया था. वर्तमान में लोजपा की टूट में भूमिहार नेताओं का हाथ सामने आ रहा है. ऐसे में आने वाले चुनाव में अगर चिराग की लोजपा राजद के साथ अपना समीकरण बैठाती है तो पारस गुट लोजपा का हाशिए पर जाना तय है.