भारत सरकार ने बुधवार को 74वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर पद्म पुरस्कारों का ऐलान कर दिया है. मधुबनी जिले की सलेमपुर गांव की रहने वाली सुभद्रा देवी ने बचपन में दूसरों की देखा देखी पेपरमेसी की कला सीखी थीं. उन्हें तनिक भी आभास नहीं था कि उनकी कला को इतनी शोहरत मिलेगी. 82 वर्ष की हो चुकीं सुभद्रा देवी को पेपरमेसी की कला में महारत हासिल है. उन्हीं की बदौलत अब इस कला को देश ही नहीं, विदेशों में भी अलग पहचान मिल चुकी है.
प्रभात खबर को सुभद्रा देवी ने बताया कि कश्मीर की तरह मिथिलांचल में भी पेपरमेसी शिल्प की समृद्ध और उन्नत परंपरा रही है. यहां की संस्कृति में पेपरमेसी शिल्प का निर्माण प्राचीन काल से ही होता आ रहा है. उस समय यहां के लोग अपने आसपास उपलब्ध संसाधनों में कल्पनाशक्ति और कलात्मकता का उपयोग कर उन्हें उपयोगी बनाते थे. बदले हुए स्वरूप में यह आज भी विद्यमान है.
सुभद्रा देवी के मायके दरभंगा जिले के मनीगाछी में परंपरागत रूप से पेपरमेसी का निर्माण होता था. बचपन में वह भी चुल्हा, गुड़िया और अन्य कलाकृतियां बनाया करती थीं. इस दौरान वह दर्द मैदा के पेड़ की छाल छील कर उसे सुखातीं, फिर कूट कर पाउडर बनातीं. इसके बाद उस पाउडर से वह कलाकृतियां बनाती थीं. बाद में मेथी से भी उन्होंने कलाकृतियां बनायीं. आजकल कागज या गत्ते के छोटे-छोटे टूकड़ों को पानी में भीगो कर उसकी लुगदी तैयार करती हैं. फिर उसमें फेवीकोल, गोंद और मुल्तानी मिट्टी मिला कर आंटे की तरह उसे साना जाता है. इसके बाद उसे आकार देकर धूप में सुखाया जाता है और फिर रंग चढ़ाया जाता हैं.
Also Read: बिहार की 3 हस्तियों को पद्मश्री, सुपर 30 के आनंद कुमार, नालंदा के कपिलदेव और मधुबनी की सुभद्रा होंगी सम्मानित
इस साल 106 हस्तियों के लिए इस पद्म पुरस्कारों की घोषणा की गयी है, जिसमें 6 लोगों को पद्म विभूषण, 9 पद्म भूषण और 91 लोगों को पद्मश्री दिये जायेंगे. ओआरएस (ओरल रिहाइड्रेशन सॉल्यूशन) के जनक दिलीप महालनाबिस को मरणोपरांत पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया है जो कि भारत का दूसरा सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार है. बिहार के तीन हस्तियों को पद्मश्री सम्मान मिला है. कला के क्षेत्र में नालंदा जिले के कपिलदेव प्रसाद व मधुबनी की सुभद्रा देवी और भाषा और शिक्षा के क्षेत्र में गणितज्ञ आनंद कुमार को पद्मश्री सम्मान दिया गया है.