Bahubali Ashok Samrat: साल 1993 में जब गुप्तेश्वर पांडेय बेगूसराय के पुलिस अधीक्षक (SP) यानी कप्तान बनकर गए तो सबसे पहले उनकी नजर ऑफिस में लगे बिहार के मैप पर गई. जिस जिले में उनकी पोस्टिंग हुई है उसे लाल रंग से चिन्हित किया गया है. बचपन से ही हम पढ़ते आ रहे हैं कि लाल रंग यानी खतरे का निशान. लेकिन बेगूसराय को जिस खतरे की वजह से चिन्हित किया गया था उसका नाम था अशोक सम्राट. इसे बिहार का पहला बाहुबली कहा गया. आज हम इसी अशोक शर्मा उर्फ अशोक सम्राट की कहानी जानेंगे जिन्होंने बिहार में सबसे पहले AK47 का इस्तेमाल किया था.
अशोक सम्राट का शुरुआती जीवन
बेगूसराय के एक बेहद पढ़े लिखे परिवार में अशोक शर्मा का जन्म हुआ था. अशोक बचपन से ही पढ़ने-लिखने में काफी तेज थे. उन्होंने संस्कृत समेत दो सब्जेक्ट से पोस्ट ग्रेजुएट किया. उस वक्त बिहार में डबल एमए वालों की समाज में काफी इज्जत होती थी. उनकी पर्सनालिटी किसी हॉलीवुड अभिनेता जैसी थी. अशोक सम्राट के गांव वालों के मुताबिक वो 6 फुट लंबे थे. उनका सिलेक्शन दारोगा के लिए भी हुआ था लेकिन अपने दोस्त की वजह से उन्होंने नौकरी छोड़ दी.
अशोक शर्मा से अशोक सम्राट बनने की कहानी की शुरुआत
अशोक सम्राट दारोगा की नौकरी के लिए दरभंगा गए थे. यहां सबकुछ ठीक चल रहा था. इस दौरान एक दिन उन्हें खबर मिली की उनके सबसे अजीज दोस्त रामविलास चौधरी उर्फ मुखिया ने जहर खा ली है. ये सुनते ही वह सबकुछ छोड़कर दोस्त को बचाने गांव पहुंच गए और खुद को यह कहकर गोली मार ली कि जब मुखिया ही नहीं रहेगा तो वह जिंदा रहकर क्या करेंगे. इस घटना में अशोक सम्राट और मुखिया दोनों की जान बच गई. अशोक सम्राट के परिवार का झुकाव वामपंथ की ओर था लेकिन अशोक कांग्रेस पार्टी की विचारधारा से प्रभावित थे. बाद में वामपंथ के खिलाफ लड़ाई में रामविलास चौधरी उर्फ मुखिया अशोक सम्राट का दुश्मन बन गया. यहीं से अशोक शर्मा के अशोक सम्राट बनने की कहानी शुरू हुई.
अशोक सम्राट बना खौफ का दूसरा नाम
बिहार की राजनीतिक पृष्ठभूमि के बारे समझना है तो पहले बाहुबलियों को समझना पड़ता है. अशोक सम्राट, सूरजभान सिंह, अनंत सिंह, आनंद मोहन, मुन्ना शुक्ला जैसे बाहुबलियों का प्रभाव बिहार की राजनीति में लंबे वक्त तक रहा. लेकिन इन सब में सबसे पहले बिहार को अपने बाहुबल से खौफजदा किया उनका नाम अशोक सम्राट था. इनकी तूती बिहार, यूपी से लेकर पश्चिम बंगाल तक बोलती थी. अशोक सम्राट अपने दुश्मनों के खिलाफ जैसे हथियारों का इस्तेमाल करते थे बिहार पुलिस के अफसरों ने उस वक्त देखा तक नहीं था. वर्चस्व की लड़ाई में अशोक का मुकाबला बाहुबली सूरजभान सिंह से हुआ करता था.
कैसे मिला AK47
अशोक सम्राट के पास AK47 कैसे पहुंचा इसे लेकर दो तरह की थ्योरी कही जाती है. पहली थ्योरी ये है कि यह रायफल अशोक सम्राट को खालिस्तानी आतंकियों ने बेगूसराय के रामदीरी गांव के मुन्ना सिंह के माध्यम से पहुंचाई और दूसरी थ्योरी ये है कि जिन आतंकियों को सेना ने पकड़ा था उनके पास वाला AK47 अशोक सम्राट के पास पहुंचा.
गुप्तेश्वर पांडेय अशोक सम्राट को कैसे याद करते हैं
एक निजी चैनल को दिए इंटरव्यू में जब बिहार के पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय से पूछा गया कि अशोक सम्राट को कैसे याद करते हैं. इसके जवाब में उन्होंने कहा, “जब 1993 में मैं बेगूसराय का कप्तान बना तो मेरे सामने सबसे बड़ी चुनौती अशोक सम्राट के खौफ को खत्म करने की थी. अब तो हर जिले में दो चार अपराधी हो गए हैं. लेकिन अशोक सम्राट का ऐसा जलवा था कि पूरे बिहार में अकेला अपराधी. उसकी तूती बोलती थी. उसकी सरकार चलती थी. बरौनी के सभी कारखानों पर, सभी ठेकेदारों पर, आसपास के सभी जिलों के रंगदारों पर उसका प्रभाव था. उसके एक इशारे पर सब उठ खड़ा हो जाते थे. सड़क बने, पुल बने या कोई भी काम हो, हर जगह उसका झंडा पताका लहराता रहता था. जो चाहेगा वही होगा, वही वहां का सरकार, वही वहां का प्रशासक, वही वहां का सीएम, वही वहां का डीएम, सब कुछ वही था. प्रशासन ने पूरी तरह सरेंडर कर दिया था.”
गुप्तेश्वर पांडेय के आवास के सामने मिला AK47
बेगूसराय के एसपी रह चुके गुप्तेश्वर पांडेय ने कई मौकों पर उस दौर को याद करते हुए कहा है, “अशोक सम्राट पूरे बिहार का सबसे बड़ा अपराधी था. वह कानून को कुछ नहीं समझता था. उसने अपने पीए मिनी नरेश की हत्या का बदला लेने के लिए मुजफ्फरपुर के छाता चौक पर दिनदहाड़े AK47 से बाहुबली चंद्रेश्वर सिंह को भून दिया था. एसपी रहते हुए मैंने सम्राट के खिलाफ बेगूसराय में 40 से ज्यादा छापेमारी की थी. जिसके बाद पुलिसिया दबिश से परेशान सम्राट के गुर्गे एक रात AK47 और 200 राउंड गोली एसपी आवास के आगे फेंक कर चले गए. साथ ही उसने एक चिट्ठी भी छोड़ी थी. जिसमें लिखा था आप इस हथियार के पीछे पड़े हैं ना. लीजिए में आपको ये खुद दे रहा हूं.”
कैसे हुआ अशोक सम्राट का एनकाउंटर
साल 1995 में सोनपुर में रेलवे का टेंडर निकला. पुलिस को सूचना मिली कि अशोक सम्राट हाजीपुर आने वाला है. तब यहां इंस्पेक्टर इंचार्ज के रूप में एनकाउंटर स्पेशलिस्ट शशिभूषण शर्मा पोस्टेड थे. उन्होंने कुछ पुलिसकर्मियों को ड्यूटी पर लगाया. पुलिस के सामने सबसे बड़ी परेशानी अशोक सम्राट को पहचानने की थी. क्योंकि किसी के पास उसकी कोई तस्वीर नहीं थी. अशोक सम्राट की ताक में बैठी पुलिस की नजर एक गाड़ी में राइफल लेकर बैठे शख्स पर गयी. पुलिस ने अपनी जीप उस गाड़ी के सामने लगा दी. तभी अचानक उस गाड़ी से कुछ लोग निकले और पुलिस पर फायरिंग कर दी. पुलिस ने भी जवाबी कार्रवाई की. दोनों तरफ से कई राउंड फायरिंग होने के बाद जब अपराधी भागने लगे तो गांव वालों ने भी अपराधियों को खदेड़ना शुरू किया. घंटों हुई गोलीबारी के बाद जब सब शांत हुआ तो पुलिस ने बाहुबली अशोक सम्राट के मौत की खबर दी. मौके से कई सौ राउंड गोलियां और AK-47 बरामद हुआ था. इस एनकाउंटर के बाद इंस्पेक्टर शशिभूषण शर्मा को प्रमोशन मिला और वो डीएसपी बनाये गए.
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