पटना. आसनसोल लोकसभा उपचुनाव में तृणमूल कांग्रेस से टिकट मिलने की घोषणा के बाद बिहारी बाबू यानी शत्रुघ्न सिन्हा एक बार फिर चर्चा में हैं. लगभग तीन दशकों तक भारतीय जनता पार्टी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले शत्रुघ्न सिन्हा ने वर्ष 2019 में भाजपा छोड़ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का दामन थाम लिया था. हालांकि, कांग्रेस में उनका सफर मात्र दो वर्षों का रहा. जुलाई 2021 में वे कांग्रेस छोड़ ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस के हो गये और अब लोकसभा के रास्ते राष्ट्रीय स्तर पर अपनी खामोशी तोड़ने की कोशिश में जुटे हैं.
भाजपा में 28 वर्षों के सफर के दौरान शत्रुघ्न सिन्हा दो बार राज्यसभा और दो बार लोकसभा से सांसद रहे. अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में उनको केंद्र में दो महत्वपूर्ण विभाग स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय तथा जहाजरानी मंत्रालय को संभालने का जिम्मा भी मिला. राजनीति में उनकी एंट्री 1992 में नयी दिल्ली लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव से हुई थी. इस चुनाव में भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे शत्रुघ्न सिन्हा को अभिनेता व कांग्रेस उम्मीदवार राजेश खन्ना ने करीब 27 हजार वोटों से हराया था.
कभी भाजपा के राष्ट्रीय स्तर पर कद्दावर नेताओं में गिने जाने वाले शत्रुघ्न सिन्हा और यशवंत सिन्हा अब तृणमूल कांग्रेस में पहुंच चुके हैं. यशवंत सिन्हा को तृणमूल ने राष्ट्रीय उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी दी है, जबकि शत्रुघ्न सिन्हा को आसनसोल के रास्ते लोकसभा भेज कर ममता बनर्जी वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा को घेरने की रणनीति पर काम कर रही हैं.
शत्रुघ्न सिन्हा को पहली बार बिहार से वर्ष 1996 में राज्यसभा सांसद बना कर भेजा गया. कार्यकाल खत्म होने पर उनको दोबारा राज्यसभा भेजा गया. इसके बाद वर्ष 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में उनको पटना साहिब संसदीय सीट से जीत मिली. वर्ष 2014 में दोबारा उनको इस सीट से चुना गया. लेकिन, केंद्र में पूर्ण बहुमत की भाजपा सरकार बनने के बावजूद मंत्री पद नहीं मिलने से उनकी पार्टी से नाराजगी रही, जो धीरे-धीरे बढ़ती चली गयी.
सोशल मीडिया के माध्यम से उनकी यह नाराजगी गाहे-बगाहे झलकती भी रही. इसका परिणाम यह हुआ कि वर्ष 2019 में पटना साहिब से भाजपा ने रविशंकर प्रसाद को उम्मीदवार चुना, तो शत्रुघ्न सिन्हा भाजपा से इस्तीफा देकर कांग्रेस पार्टी के टिकट पर मैदान में उतर गये. हालांकि उनको सफलता नहीं मिल सकी.