मिथिलांचल से जुड़े घरों में गूंज रहे ‘अयलै कातिक मास माइ हे सामा लेल अवतार… के बोल
कार्तिक पूर्णिमा को नदी-तालाबों में विसर्जन के साथ ही होगा पारंपरिक लोकपर्व का समापन
पूर्णिया. लोक आस्था का महापर्व छठ के समापन के साथ मिथिलांचल का चर्चित लोकपर्व बीते शुक्रवार की शाम से शुरू हो गया है. मिथिलांचल से जुड़े शहर व गांव के घरों में लोकपर्व सामा-चकेवा के पारंपरिक गीतों के बोल गूंजने लगे हैं. छठ के पारन के बाद से कार्तिक पूर्णिमा तक प्रत्येक दिन शाम ढ़लते ही घरों की महिलाएं सामा चकेवा की गीत गाती हैं… अयलै कातिक मास माइ हे सामा लेल अवतार…! दरअसल, रक्षाबंधन और भैया दूज की तरह सामा चकेवा भी भाई बहन के पवित्र प्रेम का प्रतीक पर्व है. इस पर्व को लेकर बहनों कु खुशी छलक रही है. रात का पहला पहल शुरू होते ही अपने-अपने घर से डाला लेकर बहनों की टोली निकल पड़ती है. डाला में भगवती साम एवं चकेवा की प्रतिमा के साथ विभिन्न तरह के मिट्टी से बनी पक्षी और साथ में वृंदावन और चुगला आदि सजा रहता है. छोटी-छोटी बच्चियों के साथ ही उम्रदराज महिला साथ-साथ इसे उल्लास से मनाती हैं. इस पर्व की खास बात यह है कि जहां बहनें अपने भाई के दीर्घायु की कामना करती हैं वहीं इसके गीत पर्यावरण संरक्षण का संदेश दे जाते हैं.
भाई के खुशहाल जीवन की करती हैं मंगलकामना
इस पर्व के दौरान बहनें अपने भाईयों पर किसी भी विपत्ति से बचाव के लिए सखियों के साथ समूह में गीत गाती हैं. इस दौरान सात दिनों तक बहनें भाई के खुशहाल जीवन के लिए मंगल कामना करती हैं. इसके लिए वे पारंपरिक गीत के जरिये सामा-चकेवा व चुगला की कथा प्रस्तुत करती हैं. आखिरी दिन कार्तिक पूर्णिमा को सामा-चकेवा को टोकरी में सजा-धजा कर बहनें नदी तालाबों के घाटों तक पहुंचती हैं और पारंपरिक गीतों के साथ सामा चकेवा का विसर्जन हो जाता है.
फोटो-9 पूर्णिया 1- सामा चकेवा का गीत गाती बहनेंडिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है