विजय साह, बनमनखी. हिन्दुओं का महापर्व दीपावली को दीपोत्सव के रूप में मनाया जाता है. दीपावली के दिन हर घर में मिट्टी की दीये जलाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. इस बार भी दीपावली आते ही कुम्हारों के चेहरे खिल उठे हैं. मिट्टी का दीया बनाने वाले कुम्हार धीमा निवासी शंभू पंडित,उमेश पंडित,दरोगी पंडित, जनार्दन पंडित, विंदेश्वरी पंडित ने कहा कि वर्तमान समय के डिजिटल युग में इलेक्ट्रिक उपकरणों की चकाचौंध में भी पारंपरिक रीति रिवाज निभाने की भावना सभी के दिलों में कायम है. इसलिए मिट्टी के दीपक की चमक आज भी बरकरार है. दीपावली से पहले ही हमलोग मिट्टी इकट्ठी कर लेते हैं. दीपक बनाने का काम महीनों पूर्व ही शुरू कर देते हैं. दीपावली में लोग बड़ी मात्रा में दीपक की खरीदारी करते हैं. कुम्हारों ने कहा कि दीपावली के समय में घर के सभी सदस्य दीया बनाने और बेचने के कार्य में जुट जाते हैं. दीपावली निकट आने पर दो व्यक्ति घर में दीया बनाने का काम करते हैं और शेष सदस्य बेचने का काम करते हैं. मिट्टी का बर्तन , दीया आदि बनाना और बेचना ही हमलोगों का रोजगार है. आधुनिक युग में घरों को चाहे कितना भी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण से सजा ले. मगर मिट्टी के दीये का महत्व कभी कम नहीं हो सकता है. मिट्टी के दीप जलाने से मिलता परम सौभाग्य : पंडित विद्यानंद पंडित विद्यानंद झा ने बताया कि शास्त्रों में मिट्टी का दीया पांच तत्वों का प्रतीक माना गया है. संपूर्ण ब्रह्मांड की रचना पंचतत्वों से हुई है. जल, वायु, आकाश, अग्नि और भूमि. घरों में मिट्टी का दीया जलाने से घर में सुख-समृद्धि और शांति भी आती है. दीया में रूई की बाती देकर दीप प्रज्वलित करते हैं तो घर में शांति बनी रहती है. इससे जीवन में तरक्की, सुख और सौभाग्य की प्राप्ति होती है. फोटो परिचय:- 25 पूर्णिया 28- दीया बनाते कुम्हार 29- .बना हुआ कच्चा दीया सुखाते
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