Purnia News: पूर्णिया में रविवार की शाम नृत्य और संगीत के नाम रही. कलाभवन के मुक्ताकाश मंच पर विलुप्त होती लोक एवं जनजातीय कला का रंग निखर उठा. इस मंच पर एक साथ हासिये पर रहे जनजाति समाज की संस्कृति और लोक कला की झलक मिली. अलग-अलग संस्थानों के कलाकारों ने गीत व नृत्य की अपनी जीवंत प्रस्तुति से जहां लोगों का मनोरंजन कराया वहीं अपसंस्कृति के खिलाफ अपनी लोक संस्कृति स्थापित करने का वे संदेश भी दे गए. पूर्वी क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र कोलकाता, संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार के सहयोग से कला भवन नाट्य विभाग पूर्णिया द्वारा आयोजित एक दिवसीय विलुप्त लोक एवं जनजातीय कला उत्थान महोत्सव का उद्घाटन पूर्णिया सदर विधायक विजय खेमका, प्रसिद्ध चिकित्सक सह कला भवन के उपाध्यक्ष डॉ देवी राम ने दीप प्रज्ज्वलित कर किया.
जीवंत हुई लोक संस्कृति
गौरतलब है कि विलुप्त होती लोक एवं जनजातीय संस्कृति के उत्थान के लिए कला भवन नाट्य विभाग पिछले कई सालों से प्रयासरत है. यही वजह है कि रविवार को आयोजित इस महोत्सव में बिहुला बिषहरी, विदेशिया नृत्य, गीत, जट जटीन, झिझिया लोक नृत्य को खास तौर पर शामिल किया गया जो आज के दौर में विलुप्त हो रहे हैं. सभी कलाकारों ने अपने सधे अंदाज और रिहर्सल के बल पर पुरातन संस्कृति को कलाभवन के मंच पर बारी बारी से उपस्थित अतिथियों एवं दर्शकों के बीच प्रस्तुत किया. नाम के अनुरूप इस महोत्सव में बिहार की पारंपरिक लोक संस्कृति की झलक देखने को मिली.
रंग जमा गई बिहुला विषहरी की प्रस्तुति
लोकगाथा बिहुला विषहरी की प्रस्तुति में सूचित कुमार उर्फ रोहिताश्व पप्पू एवं कसम कसबा सांस्कृतिक मंच कसबा द्वारा जीवंत प्रदर्शन किया गया. इसमें कलाकार सुचित कुमार, सीताराम महाल्दार, निवास महलदार, राजेंद्र महलदार, राजा महलदार, यमुना महलदार, रामदेव महलदार, विक्रम कुमार, विजय महलदार, सतनारायण ठाकुर आदि ने पारंपरिक बिहुला विषहरी लोक गाथा को मंच पर इस कदर पेश किया मानो लोग गांवों में बैठकर इस लोक कला का आनंद ले रहे हों. दर्शकों ने इस प्रस्तुति को खूब सराहा. बिहुला विषहरी लोक गाथा बिहार के भागलपुर के चंपानगर से जुड़ी है. इसके तथ्य, पौराणिक मान्यताओं और अवशेषों में भी मिलते हैं.
आकर्षण का केन्द्र रहा नृत्य नाटिका
लोक कला महोत्सव में नृत्य नाटिका आकर्षण का केन्द्र रहा. बिहुला विषहरी नृत्य नाटिका की प्रस्तुति डॉक्टर जयदीप मुखर्जी एवं उनके दल के द्वारा की गई जिसमें मुख्य रूप से डॉ जयदीप मुखर्जी, स्नेहा झा, शांभवी, रिया देवनाथ श्रीयसी चटर्जी, रानू मुख़र्जी, दीपांकर राय, आयुष राय, राजदीप मुखर्जी, सूरज कुमार साहनी आदि कलाकार ने बिरला विषहरी लोक नाटिका की प्रस्तुति की. बिदेसिया, भोजपुरी भाषा में गाया जाने वाला एक लोकगीत है. यह बिहार और उत्तर प्रदेश में प्रचलित है. बिदेसिया गीतों में बिछोह और मिलन की अभिलाषा का चित्रण होता है. इन गीतों में लोकनायिका के मन की आतुरता का सहज चित्रण होता है. इसकी तानें सुनने वालों को बैचेन कर देती हैं. बिदेसिया लोकगीतों को लोकनायक भिखारी ठाकुर ने लोकप्रिय बनाया था.
विदेशिया गायन पर भाव विभोर हुए लोग
कला भवन के मंच पर जब सुर और ताल के साथ विदेशिया का गायन शुरू हुआ तो दर्शक भाव विभोर हो गये. कलाकार चांदनी शुक्ला, श्रुति, बरनाली मुखर्जी, शिवानी कुमारी, कौशिकी कुमारी, सौम्या कुमारी, पायल कुमारी आदि ने विदेशिया गायन प्रस्तुत कर बिहार की सांस्कृतिक परंपरा से लोगों को अवगत कराया. जबकि विदेशिया नृत्य की प्रस्तुति पूर्णिया के प्रसिद्ध लोक कलाकार अमित कुमार द्वारा प्रस्तुत किया गया, भिखारी ठाकुर के विदेशिया लोक पारंपरिक नृत्य जो जो आज भी गांव में लौंडा नाच के नाम से प्रसिद्ध है उसे आगे बढ़ाने के लिए अमित कुमार लोक कलाकार द्वारा सफल प्रस्तुति दी गई.
झिझिया के नृत्य से मंत्र मुग्ध हो गये दर्शक
महोत्सव में कला भवन नाट्य विभाग पूर्णिया की ओर से बिहार की पारंपरिक लोक नृत्य झिझिया की प्रस्तुति से दर्शकों को मंत्र मुग्ध कर दिया. झिझिया प्रस्तुति में खुशी कुमारी, नेहा कुमारी, ट्विंकल कुमारी भूमि कुमारी, निशु कुमारी मेघा आदि कलाकारों ने झिझिया की जीवंत प्रस्तुति की. झिझिया गीत, बिहार के मिथिला क्षेत्र का एक पारंपरिक लोक नृत्य है. इसमें गाये जाने वाले गीतों में दो तरह के गीत होते हैं. देवी की स्तुति और चुड़ैलों और काले जादू से सुरक्षा के लिए गाया जाने वाला गीत है.
लोक नृत्य जट जटिन की सफल प्रस्तुति
मिथिला की लोक परम्परा एवं लोकनृत्य जट जटिन की प्रस्तुति मृत्युंजय कुमार एवं उनके दलों द्वारा सफल प्रस्तुति की गई जिसमें अंकिता कुमारी, दीपू कुमार, ज्योत्सना कुमारी ,अनमोल कुमार, अभिमन्यु कुमार ,नयन कुमार इत्यादि कलाकारों ने जाट जतिन की प्रस्तुति से पारंपरिक लोक कला को जीवंत करने का प्रयास किया. जट-जटिन बिहार राज्य का एक लोकप्रिय लोक नृत्य है. यह नृत्य जट और जटिन की प्रेम कहानी पर आधारित है, जो सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों के कारण अलग हो गए थे. यह नृत्य आमतौर पर मानसून के मौसम में चांदनी रातों में पुरुषों और महिलाओं की जोड़ी द्वारा किया जाता है. इस महोत्सव में सुभाष यादव एवं उनके समूह द्वारा देवी मानों गायन प्रस्तुत किया जिसमें सुभाष यादव, नागेंद्र ठाकुर भूप नारायण रजक इत्यादि कलाकार शामिल रहे.
आयोजन में रही इनकीअहम भूमिका
महोत्सव के सफल आयोजन में पूर्व क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र ,संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार के निदेशक आशीष गिरि एवं सहायक निदेशक डॉक्टर तापस सामंत्र्य ने इस आयोजन के लिए सभी दर्शकों को बधाई दी. आयोजन को सफल बनाने में संयोजक विश्वजीत कुमार सिंह, नाट्य विभाग के निर्देशक कुंदन कुमार सिंह, वरिष्ठ रंगकर्मी अंजनी श्रीवास्तव, रंगकर्मी चंदन कुमार, रोशन कुमार, बादल कुमार, राज श्रीवास्तव, आशुतोष रजनीश, आरजू कुमारी, गरिमा कुमारी के साथ-साथ रेणु रंगमंच के सचिव अजीत कुमार सिंह बप्पा सहित कला विशेषज्ञ डॉक्टर अखिलेश कुमार जायसवाल आदि का भरपुर सहयोग रहा.
किलकारी ने लगायी सिक्की कला की प्रदर्शनी
किलकारी बिहार बाल भवन की ओर से एक दिवसीय मिथिलांचल की पारंपरिक पौराणिक सिक्की कला पर रविवार को कार्यशाला का आयोजन किया गया. इस कार्यशाला में मुख्य के रूप से राजेश कुमार स्टेट अवार्डी सीनियर रिसर्च फेलोशिप संस्कृति मंत्रालय एवं उज्जवल कुमार कर्ण स्टेट अवार्डी जूनियर रिसर्च फेलोशिप संस्कृति मंत्रालय आमंत्रित थे. विलुप्त होती सिक्की से बने सुंदर – सुंदर टोकरी, डलिया, सिक्की पेंटिंग, सिक्की से बनी चूड़ी, इयर रिंग आदि की प्रदर्शनी लगाई गयी थी.