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भट्टा दुर्गाबाड़ी में इस दफा होंगे बंगाल के कालीघाट मंदिर के दर्शन

भट्टा दुर्गाबाड़ी

बंग संस्कृति को अक्षुण्ण बनाये रखने का माध्यम है दुर्गाबाड़ी का पूजनोत्सव पूर्णिया. कहते हैं, आध्यात्मिक अनुष्ठान, पूजा-अर्चना और परम्पराओं को जीवंत रखने की प्रक्रिया ही संस्कार और संस्कृति को समृद्ध करने का एक सशक्त माध्यम है और आज यह गौरव का विषय है कि भट्ठा दुर्गाबाड़ी पूर्णिया में बंग संस्कृति को अक्षुण्ण बनाए रखने का जरिया बना है. यहां सौ सालों से भी अधिक समय से पीढ़ी दर पीढ़ी पूजनोत्सव का आयोजन होता आ रहा है. पूर्णिया के न केवल बंग भाषी बल्कि अंग व मिथिला भाषी भी 1916 की वह तारीख नहीं भूलते जब भट्ठा दुर्गाबाड़ी में पूजनोत्सव की नींव डाली गई थी. उस समय हेम चौधरी, विश्वनाथ मुखर्जी, प्रभातचंद तरफदार जैसी शख्सियत ने मिलकर समिति गठित की थी और पहली दफे आकर्षक प्रतिमा का निर्माण कर देवी दुर्गा की पूजा बंग पद्धति से शुरू की थी. वैसे दुर्गा पूजा का प्रचलन बंगाल के कोलकाता से ही बाहर निकला है और यही वजह है कि इस पूजा में हर जगह बंग का रंग निखर आता है. बुजुर्गों की मानें तो शहर के भट्ठा दुर्गाबाड़ी में 1916 से पहले इसी मुहल्ले के राय बहादुर ज्योतिषचन्द्र भटटाचार्य ने अपने दरवाजे पर पूजा शुरु की थी. लगभग दस वर्ष करने के बाद उन्होंने इसे भट्टा दुर्गाबाड़ी को सौंप दिया. समिति ने वर्ष 1916 में मंदिर का शेड बनाकर पूजन की शुरुआत की. इसी समय से यह परम्परा शुरु हुई जिसका आज वृहत स्वरुप दिख रहा है. वर्ष 2004 में यहां भव्य मंदिर का निर्माण हुआ. इसके बाद से मंदिर के सामने बड़ा पंडाल बनाया जाता है. इसी पंडाल के ठीक सामने स्थित मंदिर कमेटी की ओर से बनाई गई कम्युनिटी हॉल परिसर में पूजन अवसर पर सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं. हालांकि यहां बांग्ला पद्धति से पूजन अनुष्ठान किया जाता है पर शहर के बीचों बीच होने और सबसे पूराने पूजन संस्थान होने के कारण सभी संस्कृति से जुड़े लोगों की भीड़ देवी दर्शन के लिए जुटती है. यहां देवी दुर्गा का महाप्रसाद लेने के लिए होड़ मचती है. समिति के सदस्य बताते हैं कि सांस्कृतिक कार्यक्रमों के जरिये एक तरफ जहां बांग्ला संस्कृति को समृद्ध किया जाता है वहीं दूसरी ओर पूर्णिया और आस पास की लोक कला एवं अन्य भारतीय सांस्कृतिक कलाओं को भी जीवंत रुप देने की पहल की जाती है. इस तरह के कार्यक्रमों में खास तौर पर कला में रुचि रखने वाले बच्चों का मनोबल बढ़ाया जाता है. इस बार पंडाल को कोलकाता के कालीघाट का रूप दिया जाएगा. मूर्तिकार सुजीत पाल जी द्वारा प्रतिमा का निर्माण किया जा रहा है. इस बार अष्टमी एवं नवमी एक ही साथ पड़ जाने से भोग का कूपन सिस्टम नहीं किया जा रहा है बल्कि सामान्य तौर पर ही भोग वितरण किया जाएगा और नारायण सेवा की भी व्यवस्था रहेगी. हमेशा इस बात का ध्यान रखा जाता है कि पूजा में सम्पूर्ण भक्ति भाव का माहौल बना रहे. प्रदीप्त भट्टाचार्य, सचिव पूजा समिति भट्ठा दुर्गाबाडी जिले में कल्चरल हब माना जाता है. हर दिन यहां अलग अलग तरह के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है. पिछले 8 सितम्बर से ही प्रत्येक रविवार को सभी विधाओं के लिए प्रतियोगिता शुरू हो गयी. जिसमें पेंटिंग, गाना संगीत, नृत्य, वाद्य यंत्र, क्विज, डिबेट, क्राफ्ट प्रतियोगिता का आयोजन किया गया. पंचमी पूजा को विशेष कोलकाता के कलाकार परफॉर्म करेंगे. तापोती बनर्जी, अध्यक्ष पूजा समिति फोटो. 2 पूर्णिया 1- भट्ठा दुर्गाबाड़ी दुर्गा मंदिर

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