Rajgir: पांच पहाड़ियों से घिरा राजगीर आज उम्मीदों के नए शिखर पर खड़ा है। ऐसा कहा जाता है कि पहले यहां सरस्वती नदी भी बहा करती थी। बिहार में प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर प्राचीन, पौराणिक और कई ऐतिहासिक स्थल हैं। बिहार का एक छोटा-सा शहर है राजगीर, जो कि नालंदा जिले में स्थित है।
इसके आसपास के ऐतिहासिक और पुरातात्विक स्थलों की बात करें तो सप्तपर्णि गुफा, मणियार मठ, जरासंध का अखाड़ा, बिम्बिसार की जेल, नौलखा मंदिर, जापानी मंदिर, रोपवे, विश्व शांति स्तूप, सोन भंडार गुफा, बाबा सिद्धनाथ का मंदिर, घोड़ाकटोरा डैम, तपोवन, जेठियन बुद्ध पथ, वेनुवन, वेनुवन विहार, सुरक्षा दीवार, प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय, जैन मंदिर, श्रीकृष्ण भगवान के रथ के चक्कों के निशान, सामस स्थित तालाब और तेल्हार आदि आप देख सकते हैं। राजगीर में सोन भंडार गुफा भी है जिसके बारे में यह कहा जाता है कि इसमें बेशकीमती खजाना छुपा हुआ है जिसे आज तक कोई नहीं खोज पाया है।
भगवान महावीर का पहला उपदेश विपुलगिरी पर्वत पर हुआ था
देवनगरी राजगीर को कई धर्मों की संगमस्थली कहा जाता है। यहां जैन, बौद्ध और हिन्दू धर्मावलंबियों का तीर्थ है। यहां की पांच पहाड़ियां मसलन विपुलगिरि, रत्नागिरि, उदयगिरि, सोनगिरि, वैभारगिरि हैं। इन पहाड़ियों पर जैन धर्म के मंदिर हैं। भगवान महावीर जब ज्ञान की प्राप्ति किए उसके बाद पहला उपदेश उनका विपुलगिरि पर्वत पर हुआ था। इसके अलावा राजगीर के आस-पास जितनी भी पहाड़ियां हैं उन सभी पर 26 जैन मंदिर बने हुए हैं, पर वहां पहुंचना आसान नहीं है, क्योंकि वहां पहुंचने का रास्ता कठिन है।
जापानी बुद्ध संघ द्वारा विश्व शांति स्तूप बनाया गया
भगवान बुद्ध गृद्धकूट पहाड़ी पर उपदेश देते थे जो रत्नागिरि पर्वत के ठीक बगल में स्थित था। बुद्ध के निर्वाण पश्चात बौद्ध धर्मावलंबियों का पहला सम्मेलन वैभारगिरि पहाड़ी की गुफा में हुआ। इस सम्मेलन में पालि साहित्य का उम्दा ग्रंथ ‘त्रिपिटक’ तैयार हुआ था। बोधगया से राजगीर भगवान बुद्ध जिस मार्ग से आए थे उसमें भी अनेक स्थल हैं। जापानी बुद्ध संघ द्वारा विश्व शांति स्तूप भी बनवाया गया है।
भीम और जरासंध के बीच यहीं हुआ था मल्लयुद्ध
महाभारत काल में विपुलगिरि पर्वत जरासंध की राजधानी थी। भीम और जरासंध के बीच 18 दिनों तक मल्लयुद्ध यहीं हुआ था। जिसमें जरासंध पराजित हुआ था। राजगीर में हर 3 साल के बाद मलमास मेला का आयोजन होता है। देश-दुनिया से श्रद्धालु यहां आते हैं और गर्म कुंडों में स्नान कर पाप से मुक्ति की कामना करते हैं।
भारतीय ग्रंथ ‘वायु पुराण’ के अनुसार मगध सम्राट बसु द्वारा राजगीर में ‘वाजपेय यज्ञ’ कराया गया था। उस यज्ञ में राजा बसु के पितामह ब्रह्मा सहित सभी देवी- देवता राजगीर पधारे थे। उस यज्ञ में कई पवित्र नदियों और तीर्थों के जल की जरूरत पड़ी थी। ब्रह्मा के आह्वान पर अग्निकुंड से विभिन्न तीर्थों का जल प्रकट हुआ था। उस यज्ञ का अग्निकुंड ही आज का ब्रह्मकुंड है।
अधिकमास में सभी देवी-देवताओं का यहीं होता है वास
ऐसा कहा जाता है कि भगवान ब्रह्मा से राजा हिरण्यकश्यप ने वरदान मांगा था कि रात-दिन, सुबह-शाम और उनके द्वारा बनाए गए 12 मास में से किसी भी मास में उसकी मौत न हो। इस वरदान को देने के बाद जब ब्रह्मा को अपनी भूल का एहसास हुआ था, तब वे भगवान विष्णु के पास गए थे। भगवान विष्णु ने बहुत सोच विचार कर हिरण्यकश्यप के अंत के लिए 13वें महीने का निर्माण किया। धार्मिक मान्यता के अनुसार इस अतिरिक्त 1 महीने को मलमास या अधिकमास कहा जाता है। वायु पुराण एवं अग्नि पुराण के अनुसार इस माह में सभी देवी-देवताओं का यहीं वास होता है।
इसी अधिकमास के दौरान राजगीर में प्रत्येक ढाई से तीन साल पर विराट मलमास मेला लगता है। यहां आने वाले लाखों श्रद्धालु पवित्र नदियों प्राची, सरस्वती और वैतरणी के अलावा गर्म जलकुंडों यथा ब्रह्मकुंड, सप्तधारा, न्यासकुंड, मार्कंडेय कुंड, गंगा-यमुना कुंड, काशीधारा कुंड, अनंत ऋषि कुंड, सूर्य कुंड, राम-लक्ष्मण कुंड, सीता कुंड, गौरी कुंड और नानक कुंड में स्नान कर भगवान लक्ष्मी नारायण मंदिर में पूजा अर्चना करते हैं।
कैसे पहुंचे राजगीर
सड़क मार्ग- सड़क परिवहन द्वारा राजगीर जाने के लिए पटना, गया, दिल्ली से बस सेवा उपलब्ध है। इसमें बिहार राज्य पर्यटन विकास निगम अपने पटना से नालंदा एवं राजगीर के लिए टूरिस्ट बस सेवा उपलब्ध कराता है। इसके जरिए आप आसानी से राजगीर पहुंच सकते हैं।
रेल मार्ग- रेलमार्ग के लिए पटना एवं दिल्ली से सीधी रेल सेवा यात्रियों के लिए उपलब्ध है, जहां आप आसानी से राजगीर पहुंच सकते हैं।
हवाई मार्ग- यहां पर वायुमार्ग से पहुंचने के लिए निकटतम हवाई अड्डा पटना है, जो करीब राजगीर से 107 किमी की दूरी पर है। यहां से आप बस एवं टैक्सी से राजगीर पहुँच सकते हैं।