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नवादा शहर में सरे राह दम तोड़ दी एक नदी, नाले में तब्दील हुई ‘खुरी’ अब नहीं रही जीवनदायिनी

झारखंड के सीमावर्ती पहाड़ी इलाके से निकली खुरी नदी अब जीवनदायिनी नहीं रही. इसका विराट स्वरूप अब नाले की शक्ल अख्तियार कर चुका है. निकास के मुहाने पर डैम का निर्माण और मैदानी इलाके में जगह-जगह अतिक्रमण होने से खुरी नदी अस्तित्व बचाने के लिए जद्दोजहद कर रही है.

नवादा. नवादा शहर से गुजरनेवाली एक नदी सरे राह मार दी गयी. झारखंड के सीमावर्ती पहाड़ी इलाके से निकली खुरी नदी अब जीवनदायिनी नहीं रही. इसका विराट स्वरूप अब नाले की शक्ल अख्तियार कर चुका है. निकास के मुहाने पर डैम का निर्माण और मैदानी इलाके में जगह-जगह अतिक्रमण होने से खुरी नदी अस्तित्व बचाने के लिए जद्दोजहद कर रही है. अतिक्रमण तेजी से बढ़ता जा रहा है. नवादा शहर में तो नदी का अस्तित्व नाले से भी बदतर हो गया है.

हजारों एकड़ खेतों में होती थी सिंचाई

नवादा जिले में यह नदी रजौली, अकबरपुर, नवादा सदर प्रखंड से होते हुए नालंदा जिले की सीमा में प्रवेश कर जाती है. इस रास्ते में पड़ने वाले सैकड़ों गांवों के हजारों एकड़ खेतों में खरीफ फसल की खेती के दौरान इसका पानी सिंचाई के काम आता था. खेती-किसानी के लिए नदी किसी वरदान से कम नहीं थी. झारखंड के कोडरमा जिले के जंगलों से निकलने वाली खुरी नदी मुख्य रूप से बरसाती है. कई दशक पहले बरसात के मौसम में नदी अपने पूरे शबाब पर रहती थी. तब रजौली, अकबरपुर, नवादा व नालंदा जिले के गिरियक के दर्जनों गांवों के किसान पईन से पानी लाकर खरीफ फसल की खेती करते थे.

मिट्टी युक्त लाल पानी आने से खेतों की बढ़ती थी उर्वरा शक्ति

नदी में बाढ़ आने पर लाल पानी जब खेतों में फैलता था, तो मिट्टी की परत जमा हो जाती थी. इससे खेत में उर्वरा शक्ति बढ़ जाती थी और पैदावार ठीक होती थी. नदी के दोनों किनारे जल से लबालब होकर बहते थे, तो खरीफ फसल के साथ रबी फसल होने की भी संभावना बढ़ जाती थी. अकबरपुर प्रखंड के जाखे देवीपुर, अकबरपुर, मलिकपुर नेमदारगंज आदि गांवों में किसान माघ व फाल्गुन माह में भी नदी में बांध लगाकर उसी के पानी से फसल उगाते थे. नदी में रजौली प्रखंड अंतर्गत जब जलाशय बांध बांधकर डैम का निर्माण कर दिया गया, तब से पानी का प्रवाह कम हुआ और खरीफ फसल की पैदावार प्रभावित होने लगी. नदी की भूमि का अतिक्रमण कर दबंगों ने बना लिया घर बना लिया.

खुरी नदी में डंप किया जाता है कचरा

लगातार हो रही बारीश के बाद भी शहर के खुरी नदी में पानी के दर्शन नहीं हो रहा हैं. जिला के अन्य नदियों ने पानी की धार दिख रही है, जबकि खुरी नदी सूखी है. अतिक्रमणकारियों का अतिक्रमण चरम पर पहुंच गया है. खुरी नदी की भूमि का अतिक्रमण करने का खुली छूट मिली है. देखा गया कि नदी के कूड़े कचरे को नदी के किनारे डंप किया जाता है. इस डंपिंग को लेकर न नवादा जिला प्रशासन सख्त है और न ही नगर परिषद. यही हाल नवादा शहर का है. मिर्जापुर से लेकर बाईपास में पुल तक अतिक्रमणकारियों ने नदी को नाला बना रखा है. पिछले 5-6 वर्षो से बरसात कम होने के कारण नदी में पानी का स्तर घटता जा रहा था. फिलहाल स्थिति यह है कि नदी सूखी है. इसमें वर्ष पानी तो आया है, लेकिन नदी को देखने पर यह लगता है कि यह नदी अपना अस्तित्व खोकर नाले में तब्दील हो गयी है. प्रबुद्ध लोगों का कहना है कि स्थिति ऐसी ही कुछ वर्षो तक कायम रही तो खुरी नदी का अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा.

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पंचाने नदी में पानी आने के बाद भी नहरें सूखी, किसान परेशान

इधर, राजगीर में इस साल पहली बार पंचाने नदी में पानी आया है. इलाके में नहर भी है, लेकिन उसमें पानी नहीं आया है. धरहरा, नानंद, पावाडीह, बड़ाकर, करियन्ना, गोरमा समेत महाल के अनेकों पंचायतों के खेत पानी की आस लगा रहा है. इसका कारण नहरों में गाद होना बताया जाता है. अल्प वर्षा और पंचाने नदी में दर्जनों रिंग बोरिंग के कारण इस क्षेत्र का भूजल का स्तर पहले ही पाताल चला गया है. कुछ पहाड़ी चापाकल को छोड़कर सभी चापाकल फेल हो गये हैं. समरसेबुल छोड़ लगभग सभी बोरिंग फेल हैं. कुछ किसानों द्वारा समरसेबुल बोरिंग से धान की रोपनी की गयी है. बिंडीडीह के प्रो शिवेन्द्र नारायण सिंह, प्रो श्रीकांत सिंह, मुखिया प्रतिनिधि कृष्ण मुरारी सिंह बताते हैं कि चंडी मौ, मनियावां नहर का उद्गम गिरियक छिलका है. वही से पंचाने नदी के बायें कैनाल से पानी आता है. इसी नहर के किनारे से गंगा उद्भव योजना का पाइप मोतनाजे गया है. पाइप बिछाने के दौरान नहर में मिट्टी जमा हो गया है.

किसानों की पुकार को विभाग ने किया नजरअंदाज

नहर में जमा मिट्टी को साफ कराने के लिए इलाके के किसानों ने सिंचाई विभाग से अनुरोध किया है, लेकिन अधिकारियों ने किसानों की बात को गंभीरता से नहीं लिया. फलस्वरूप नदी में पानी आने के बाद भी महाल के नहर में पानी नहीं पहुंच रहा है. किसानों की चिंता है कि इस वर्ष नदी में पहली बार पानी आया है, परन्तु नहर में पानी नहीं आ रहा है. धान के साथ रब्बी फसलों की सिंचाई, जलस्रोतों और गांव जेबार के वाटर लेवल के लिए यह बहुत जरुरी है. पानी के अभाव में धान की फसल तो बर्बाद होगी ही रबी फसल नहीं हो सकेगी. भू जलस्तर का यही हाल रहा तो अगले वर्ष पीने के पानी की भीषण समस्या हो सकती है. उन्होंने कहा कि गिरियक – मनियावां नहर की उड़ाही कराने से ही इस नहर में पानी आ सकता है. इससे धान की फसल को तो लाभ होगा ही. इलाके में जल स्तर में वृद्धि भी होगी. रब्बी फसल के लिए भी उपयोगी होगी.

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