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बिहार का ऑक्सफोर्ड कहा जाता है ये शहर, इस जिले में रहते हैं सबसे ज्यादा पढ़ें लिखे लोग

Bihar : कई तरह के उतार चढ़ाव के बाद भी रोहतास के लोगों ने शिक्षा को अपने जीवन में महत्वपूर्ण स्थान दिया.

बिहार के नालंदा जिले में स्थित नालंदा विश्वविद्यालय की आज से हजार साल पहले दुनिया भर में तूती बोलती थी. दूसरे देश से छात्र और शिक्षाविद नालंदा में पढ़ने और पढ़ाने के लिए आते थे.  साल 1193 में तुर्क सेनापति बख्तियार खिलजी ने इस विश्वविद्यालय को जला कर राख कर दिया.  इस घटना के करीब 800 साल बाद भी बिहार में शिक्षा का महत्व कम नहीं हुआ. 

कई तरह के उतार चढ़ाव के बाद भी लोग यहां पढ़ाई को अपनी पहली प्राथमिकता देते हैं. इसलिए जब भी देश में किसी भी परीक्षा का रिजल्ट आता है तो उसमें बिहार के लोग या तो टॉप करते हैं या टॉप 10 में होते हैं. ऐसे में आज हम बात करेंगे बिहार के एक ऐसे जिले के बारे में जिसे राज्य का ऑक्सफोर्ड कहा जाता है और यहां के लोग पढ़ाई को अपने जीवन में प्रमुख स्थान पर रखते हैं. इतना ही नहीं बिहार के इस जिले की साक्षरता दर पूरे प्रदेश में सबसे ज्यादा है.

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इस जिले में रहते हैं बिहार के सबसे अधिक शिक्षित लोग

2011 की जनगणना के अनुसार रोहतास में सबसे अधिक साक्षरता दर 73.37% है, इसके बाद पटना (70.68%) और भोजपुर (72.79%) का स्थान है. वहीं, सूबे में सबसे कम   साक्षरता दर सीतामढ़ी में 51.08% है, उसके बाद पूर्णिया (51.18%) और कटिहार (52.24%) का स्थान है. बता दें कि रोहतास के लोगों शिक्षा के महत्व को अच्छे से जानते हैं, इसलिए कई बार लोगों को उच्च शिक्षा के लिए राजधानी और दिल्ली का रूख करना पड़ता है. 

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सिर्फ साक्षरता दर ही नहीं इसलिए भी फेमस है रोहतास 

बता दें कि रोहतास सूबे में सिर्फ अपनी साक्षरता दर के लिए ही नहीं बल्कि अपनी खूबसूरती के लिए भी जाना जाता है. शहर में स्थित रोहतासगढ़ किला कैमूर की पहाड़ियों पर बना है और राजा हरिश्चंद्र के पुत्र रोहिताश्व से जुड़ा है. इस किले में 83 दरवाज़े हैं, जिनमें से घोड़ाघाट, राजघाट, मेढ़ा घाट, और कठौतिया घाट प्रमुख हैं. किले के अंदर रंगमहल, शीशमहल, रानी का झरोखा, और पंचम जैसे दरबार हैं. 

यहीं से शुरु हुई थी डाक-तार व्यवस्था की शुरुआत

बता दें कि मुगल बादशाह शेरशाह सूरी का मकबरा भी इसी शहर में मौजूद है. ऐसा कहा जाता है कि शेरशाह सूरी ने ही वर्तमान डाक-तार व्यवस्था की शुरुआत की थी. इतना ही नहीं अंग्रेज़ों ने यहां एक धूप घड़ी भी बनाई थी और इसे 1871 में डेहरी के पास रोड पर स्थापित किया गया था. 

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