Saharsa news : कोसी नदी का नाम सुनते ही जेहन में बाढ़ की तस्वीर उभर आती है. साल दर साल यहां के लोग बाढ़ की विभीषिका झेलते आ रहे हैं. अब तो लोग इतने अभ्यस्त हो चुके हैं कि बाढ़ का मौसम आते ही खुद अपने बचाव में जुट जाते हैं. इसके बावजूद हर वर्ष जान-माल का बड़े पैमाने पर नुकसान होता है और बाढ़ प्रभावित लोगों के पास अपने सपनों को बिखरते हुए देखने के अलावा कोई रास्ता नहीं होता. हालांकि सरकार व जिला प्रशासन भी बाढ़ राहत बचाव कार्य करती है, लेकिन उसका लोगों को कितना लाभ मिलता है, ये भी किसी से छिपा नहीं है. सहरसा जिले के नवहट्टा प्रखंड क्षेत्र की सात पंचायतों के 28 राजस्व ग्रामों में कोसी नदी के बाढ़ से चार से पांच महीने तक जूझना अब तो लोगों की नियति बन चुकी है.
रामपुर छतवन गांव नदी में हो गया था विलीन
कोसी के घटते-बढ़ते जलस्तर से हर साल कटाव की समस्या उत्पन्न होती है. इस कारण उपजाऊ जमीन से लेकर लोगों की आवासीत जमीन व घर भी कटकर नदी में विलीन हो जाते हैं. ऐसे लोग तटबंध के किनारे व अपने रिश्तेदारों के यहां पलायन कर झुग्गी-झोपड़ी बनाकर जीने को विवश हैं. वर्ष 2016 में कैदली पंचायत के रामपुर छतवन गांव में दो सौ की आबादी वाला गांव कटकर कोसी नदी में विलीन हो गया. सैकड़ों परिवार आज भी प्रखंड मुख्यालय से सटे कोसी पूर्वी के तटबंध किनारे झुग्गी-झोपड़ी बनाकर जीने को विवश हैं, तो कुछ लोग अपने रिश्तेदारों के यहां उनके सहयोग से जीवन गुजार रहे हैं, जो सिर्फ चुनाव के समय मे वोट डालने ही आते हैं. इन बाढ़ पीड़ित परिवारों के लिए सरकार अब तक कोई पहल नहीं कर पायी है.
सरकारी राशि का नहीं मिलता पीड़ितों को लाभ
हालांकि सरकार की ओर से हर वर्ष सहयोग के रूप में अत्यधिक समस्या होने पर कुछ समय के लिए भोजन की व्यवस्था व आपदा राशि तो दी जाती है, लेकिन बाढ़ के बाद के हालात इनके लिए नरक के सामान हो जाते हैं. कितने लोगों की जान चली जाती है. करोड़ों की क्षति होती है. बाढ़ प्रभावित इलाके में रहने वाले लोग जो हर बार बाहर से पैसा कमा कर लाते हैं वह भी बाढ़ की भेंट चढ़ जाता है. फिर भी वह एक उम्मीद में अपने घर परिवार के लिए ढाल बनकर खड़े हो जाते हैं. पर, जिन परिवारों के कमाने वालों की जान चली जाती है, वह हताश हो जाते हैं. अगर बाढ़ के स्थायी समाधान पर काम किया जाये तो एक हद तक बाढ़ जैसी समस्याओं से राहत की उम्मीद की जा सकती है.
बिहार में कब-कब बाढ़ से हुई तबाही
वर्ष 2016 में बिहार के लगभग 12 जिलों में बाढ़ से 23 लाख से ज्यादा लोग प्रभावित हुए. 2013 में बाढ़ से 50 लाख से ज्यादा लोग प्रभावित हुए. 2011 में बाढ़ ने तबाही मचाते हुए 25 जिलों को प्रभावित किया, जिससे 71.43 लाख लोगों के जनजीवन पर बुरा असर पड़ा. 2008 में बिहार के 50 लाख लोग बाढ़ से प्रभावित हुए थे. 2007 में 22 जिलाें में बाढ़ से 2.4 करोड़ से भी ज्यादा लोग प्रभावित हुए. 2004 में 20 जिलों में बाढ़ के कहर में दो करोड़ से ज्यादा लोग प्रभावित हुए. 2002 में बाढ़ का असर 25 जिलों पर पड़ा. 2000 में बाढ़ ने 33 जिलों को प्रभावित किया. 1984 में प्रखंड मुख्यालय स्थित नवहट्टा कोसी पूर्वी तटबंध के बलवा में टूट जाने से सैकड़ों परिवारों का आशियाना पानी विलीन हो गया था. पूर्वी कोसी तटबंध में दरार आ गयी थी. इस वजह से इस इलाके में भीषण बाढ़ आयी थी.
उपजाऊ जमीन नदी में कटकर हो रही विलीन
गुरुवार की सुबह के 10 बजे कोसी बराज से 01 लाख 37 हजार क्यूसेक पानी का डिस्चार्ज बढ़ते क्रम में बताया गया. घटते-बढ़ते जलस्तर से महुआ चाही, रामपुर, छतवन, बकुनिया वार्ड नंबर एक में व हाटी में कटाव की स्थिति से लोगों की उपजाऊ जमीन कट कर नदी में विलीन हो रही है. सरकारी कैलेंडर के अनुसार, तटबंध के अंदर सात पंचायतों के 28 राजस्व ग्राम में पक्की सड़क नहीं रहने के कारण बाढ़ की अवधि में लोगों को अपने ही घर में कैद रहना पड़ रहा है. यहां सरकारी स्तर से अब तक मेडिकल उपचार के लिए कोई बेहतर व्यवस्था नहीं की गयी है.
आवंटन बाढ़ पीड़ितों के लिए, लाभ मिला शहरी लोगों को
प्रखंड क्षेत्र के बाढ़ प्रभावित पंचायतों के लोगों ने कहा कि सरकार द्वारा बाढ़ आपदा राशि बाढ़ पीड़ित परिवारों के लिए आवंटन की जाती है, लेकिन अंचल कार्यालय में जमे बिचौलियों के कारण बाढ़ आपदा की राशि शहर के लोगों के खाते में भेज दी जाती है. पिछले वर्ष बाढ़ आपदा राशि में बड़े पैमाने पर फर्जीवाड़ा किया गया. बाढ़ पीड़ित प्रभावित क्षेत्र के लोग आपदा राशि से वंचित रह गये.
दो-दो नदियों को करना पड़ता है पार
सरकार के विभिन्न विकासात्मक दावे के बावजूद तटबंध के अंदर सात पंचायतों के 28 राजस्व ग्राम में पक्की सड़क का संपर्क पथ नहीं है. इसके कारण लोगों को आज भी दो-दो नदियों को पार कर प्रखंड मुख्यालय व जिला मुख्यालय आना-जाना होता है. इस कारण लोगों का आधा समय नाव पर ही बीत जाता है.
बाढ़ पीड़तों को हर संभव सहयोग
अंचल अधिकारी मोनी बहन ने बताया कि सरकारी का जो भी निर्देश होगा और जो व्यवस्थाएं होंगी, वह बाढ़ पीड़ित परिवारों के लिए हम 24 घंटे उपलब्ध रहकर मुहैया कराएंगे. मैं अपने एक माह के वेतन से बाढ़ पीड़ित परिवारों के लिए खाने-पीने की भी व्यवस्था करूंगी. यह मेरा व्यक्तिगत निर्णय है. वहीं चिकित्सा पदाधिकारी डॉ वीरेंद्र कुमार ने बताया कि तटबंध के अंदर बाढ़ अवधि में सभी गांवों में सप्ताह में एक दिन शिविर लगाकर लोगों का उपचार किया जायेगा. इमरजेंसी सेवाओं के लिए अंचल अधिकारी से नाव की मांग की गयी है. एंबुलेंस के रूप में इमरजेंसी नाव भेजकर विभिन्न स्थलों पर लोगों को स्वास्थ्य सुविधाएं दी जाएंगी.