Saharsa News : विनय कुमार मिश्र, सहरसा. राज्य सरकार की महत्वाकांक्षी योजना जल जीवन हरियाली के तहत आहर, पाईन, पोखर, तालाब, झील, कुआं के जीर्णोद्धार का कार्य किया जा रहा है. लेकिन इस योजना का सही लाभ लोगों तक आज भी नहीं पहुंचा है. खानापूर्ति के अलावे धरातल पर कुछ अधिक नहीं दिख रहा है. आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में जीर्ण-शीर्ण अवस्था में कुएं पड़े हैं, जिन्हें उद्धारक की जरूरत है.
पहले कुआं माना जाता था स्टेटस सिंबल
वर्षों पूर्व कुआं निर्माण सामाजिक स्टेटस समझा जाता था. आमलोगों व राहगीरों के प्यास बुझाने के लिए मुख्य आवाजाही वाले जगहों पर कुआं का निर्माण बड़े-बड़े समाजसेवी कराया करते थे. इससे समाज में उन्हें बड़ा आदर दिया जाता था. धीरे-धीरे कुएं के प्रति लोगों का झुकाव कम हुआ व ट्यूबवेल पर निर्भरता बढ़ गयी. समय के साथ लगभग घरों में ट्यूबवेल लग गये. आज हालत यह है कि ट्यूबवेल भी उपेक्षित हो रहे हैं. नल का जल ने इस स्थान पर अपनी जगह बना ली. हालत यह है कि कुआं पूर्ण रूप से उपेक्षित हो गया. मंदिरों में भी कुआं पूरी तरह उपेक्षित हो गया. लोगों की आधुनिक जीवनशैली के कारण जो कुछ कुआं बच भी गये वे मृतप्राय बन चुके है.सहरसा जिले में भी पारंपरिक जलस्रोत का अस्तित्व अब मिटने लगा है. शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने के लिए पूर्व में निजी स्तर से अपने अपने दरवाजे के सामने बनाया गया कुआं पूरी तरह से सूख चुका है. जलस्रोत की कमी के कारण तालाब भी अब काम का नहीं रह गया है. हालांकि जल संरक्षण को लेकर सरकारी निर्देश पर मनरेगा योजना के तहत मृतप्राय पोखरों का अमृत सरोवर योजना के तहत जीर्णोद्धार कार्य कहीं-कहीं शुरू किया गया है. ताकि धरोहरों को जिंदा रखा जा सके.
स्वच्छ माना जाता है कुएं का पानी
पहले लोग खाना बनाने से लेकर पानी भी कुएं से पीते थे. कुएं के पानी में आयरन की मात्रा नहीं के बराबर रहती थी. लेकिन बदलते परिवेश में उचित जल संरक्षण एवं रखरखाव के अभाव में अधिकांश कुआं बेकार बनकर रह गया है. वहीं बचे कुछ कुआं को मिट्टी से भरकर लोग उसपर मकान बनाना शुरू कर दिया है. जबकि पर्यावरणविदों के अनुसार तालाब एवं कुआं का अस्तित्व समाप्त होने की वजह से भूमिगत जल संरक्षण में भी भारी कमी आयी है. जो आने वाली पीढ़ी के लिए शुभ संकेत नहीं होगा. भूमिगत जलस्तर के लगातार गिरावट एवं लोगों द्वारा की जा रही लगातार अनदेखी से भविष्य के यह धरोहर सिर्फ किताबों के पन्नों में पढ़ने को शायद मिले. जबकि कुएं को धार्मिक आस्था का केंद्र भी माना जाता है.
नल का जल बना गया स्टेटस
आधुनिक दौर में अनेक जलस्रोत उपलब्ध होने के कारण कुएं के धार्मिक महत्व को लोग भूल रहे हैं. गांवों में पहले जब नवविवाहिता का गृह प्रवेश होता था, तो सबसे पहले कुआं पूजन का आयोजन होता था. शादी विवाह की रस्में भी वर्तमान समय में मात्र कोरम पूरा करना भर रह गयी हैं. अभी भी गांव के किसी कुएं के पास गौर से देखा जाय तो बेजोड़ वास्तुकला देखने को मिलेगी. पुराने दौर में बुजुर्गों एवं राजा महाराजाओं द्वारा कुआं या पोखरों को खुदवाना पुण्य के साथ शान समझा जाता था. आज घरों पर लगी प्लास्टिक की टंकी सामाजिक स्टेटस बन गयी है. लोग बोतल बंद पानी पीना शान समझते हैं.
कुएं का जल होता है मीठा व निरोग
कुआं का उल्लेख वेदों व पुराणों में भी किया गया है. बुजुर्गों का कहना है कि कुएं का जल मीठा एवं निरोग माना जाता है. ठंड के मौसम में गर्म तथा गर्मी के मौसम में बिल्कुल ठंडा होता है. प्राचीनकाल में भी आधुनिक जीवनशैली से कोसों दूर रहकर लोग कुएं का जल पीकर बिल्कुल स्वस्थ रहा करते थे. बुजुर्गों का कहना है कि गांव की महिलाएं समूह में कुएं के पास इकठ्ठी होकर समूह में गीत गाकर अपने अपने सिर पर पानी भरकर घर जाती थी. लेकिन बदलते परिवेश के कारण सब धीरे-धीरे बदलता चला गया. सरकार को चाहिए की पुराने एवं जर्जर कुएं की अविलंब मरम्मत कराकर इनको फिर से पेयजल योजना के तौर पर विकसित करे. ताकि कम लागत पर शुद्ध पेयजल आपूर्ति हो सके. साथ ही साथ प्राचीन धरोहर को बचाया जा सके. पुरानी परंपरा व रीति-रिवाज भी जिंदा रह सके.