Saharsa News : सिमरी बख्तियारपुर . घर, ऑफिस व दुकान सहित अन्य जगहों पर आज के समय में अधिकांश जिलेवासी अपनी प्यास बुझाने के लिए जार या बोतल बंद पानी का ही इस्तेमाल कर रहे हैं. एक अनुमान के मुताबिक, जिले के लोग हर दिन लाखों रुपये का जार व बोतलबंद पानी गटक रहे हैं. हर जगह इसका बडे पैमाने पर कारोबार हो रहा है. जगह जगह इसके प्लांट लगाये गये हैं. वहीं इसके आर में बडे पैमाने पर मिनरल वाटर की जगह जेनरल वाटर तक की सप्लाई हो रही है. कहीं पानी में छोटे मेढक तो कहीं पानी से कचड़ा भी निकल रहा है. जिसे देखने वाला कोई नहीं है.
जार हो गया जरूरी
सहरसा जिले के लोग हर दिन बड़े पैमाने पर जार व बोतलबंद पानी गटक रहे हैं. इनमें शॉपिंग कॉम्पलेक्स, दुकान, शोरूम, घरों के अलावा हाउसिंग सोसायटी भी शामिल हैं. वेडिंग सीजन में तो शहरी ही नहीं ग्रामीण इलाकों में भी जार बंद पानी एवं छोटे-छोटे पैक्ड वाटर बोतल मेहमानों को पिलाने का चलन बढ़ा है. जिले में आयरन युक्त पानी चापाकल के माध्यम से आने से दिन पर दिन जार वाले पानी की मांग बढ़ती जा रही है.
जिले में बिना लाइसेंस चल रहे कई प्लांट
जिले के बाजार में पैकेज्ड ड्रिंकिंग वाटर ग्लास व पाउच से लेकर 20 लीटर के जार तक में उपलब्ध हैं. हालांकि इसके पानी की गुणवत्ता की कोई गारंटी नहीं है. दुकानदारों का कहना है कि ब्रांडेड कंपनी के एक लीटर पानी में महज तीन से चार रुपए की बचत होती है, जबकि लोकल पानी में एक बोतल पर 10 से 12 रुपए तक की बचत हो जाती है. जबकि पैकेज्ड वाटर कंपनी को आइएसआइ लाइसेंस लेना भी अनिवार्य है. लेकिन सहरसा जिले में नाममात्र के कारोबारियों के पास ही लाइसेंस है.बांकि बिना भारतीय मानक ब्यूरो से लाइसेंस लिए ही चल रहे हैं.
क्या है मानक, नियम व कानून
भारतीय मानक ब्यूरो के जानकार बताते हैं कि पानी के प्लांट लगाने के लिए निगम से लाइसेंस लेना अनिवार्य है. वहीं ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्स ने ड्रिंकिंग वाटर एवं पैकेज्ड ड्रिंकिंग वाटर के लिए मानक तय किया है. वाटर प्लांट लगाने के लिए लगभग 15 सौ वर्गफीट का प्लांट होना चाहिए. प्लांट में सफाई होने के साथ यूवी ट्रीटमेंट, माइक्रोन, गारनेट फिल्टर व ओजोनाइजेशन होना चाहिए. प्लांट में कर्मचारी साफ कपड़ों के साथ हाथों मे ग्लब्स, सिर पर कवर कैप, पैर में प्लास्टिक का जूता पहने होना चाहिए. कार्रवाई के तहत कम से कम दो लाख रुपये दंड या एक साल जेल की सजा का प्रावधान है.
मानकों का नहीं रखा जाता ख्याल
लोकल पैकेज्ड ड्रिंकिंग वाटर में पाये जाने वाले अवयवों के लिए तय मानकों का ख्याल नहीं रखा जाता. 10 से 20 रुपये में मिलने वाले पानी से प्यास तो बुझ जाती है. लेकिन यह स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा कर रहा है. शहर के डॉक्टरों एवं हेल्थ से जुड़े एक्सपर्ट का कहना है कि पीने के पानी में पीपीएम 100 से 200 के बीच होनी चाहिए. लेकिन यहां 1500 से 1800 के बीच रहता है. ज्यादा पीपीएम से पानी की कठोरता बढ़ जाती है. पानी की लवणता मानक के अनुसार नहीं होने पर लंबे समय तक सेवन करने से स्वास्थ्य पर खराब असर पड़ता है.