छपरा. अवतारनगर थानांतर्गत झौंवा पंचायत के लगभग सभी घरों में आरता पत्ता बनाया जाता है. हालांकि इसे बनाने वाले ज्यादातर लोग सामान्य या गरीब वर्ग से ही आते हैं. लेकिन, छठ पूजा में आरता पत्ता के महत्त्व और डिमांड को देखते हुए अब पंचायत के लगभग सभी वर्ग के लोगों के घरों में आरता पत्ता बनाया जाता है. यहां से बने आरता के पत्ते बिहार के लगभग सभी जिलों के साथ-साथ विभिन्न राज्यों में भी जाते हैं. उचित फायदा नहीं मिलने के कारण आरता पत्ता बनाने वाले लोग आज भी तंगहाल जीवन व्यतीत करने को विवश हैं.
कई राज्यों में भी होती है सप्लाइ
झौंवा पंचायत के निवासी मो रफीक, रवि, पुष्पा देवी आदि ने बताया कि यहां बने आरता के पत्तों की सप्लाइ बिहार समेत अन्य प्रदेशों में भी होती है. सीमावर्ती उत्तर प्रदेश, झारखण्ड, बंगाल, राजधानी दिल्ली, महाराष्ट्र में भी छठ पूजा काफी लोकप्रिय है. इन प्रदेशों के ज्यादातर मंडियों में बेचे जाने वाले आरता पत्ता को साहूकारों द्वारा यहीं से खरीद कर ले जाया जाता है. पंचायत के बुजुर्गों की माने तो पुश्त दर पुश्त से ही यह काम होता चला आ रहा है. घर की महिलाएं, नौजवान या बुजुर्ग सभी इस काम में एक दूसरे की मदद किया करते हैं.बेहद कठिन है निर्माण की प्रक्रिया
जिस आरता के पत्ते को हम बहुत ही कम कीमत पर खरीद कर लाते हैं उसके निर्माण की प्रक्रिया बेहद कठिन है. लगभग 40 वर्षों से आरता पत्ता बना रहे रामजी महतो, भोला महतो, बिन्देश्वरी के परिवार के लोग बताते हैं कि आरता पत्ता बनाना बहुत मुश्किल है. मिट्टी के ढक्कन में बने सांचे में अकवन की रुई को पत्ते का आकर दिया जाता है, उसके बाद आरत पत्ते का थाक लगाकर उबलते रंगीन पानी में डाला जाता है. रंगे हुए पत्तों को पहले सुखाय जाता है फिर उसे एक-एक कर छांटा जाता है. सूखे रुई के पत्तों की पैकिंग कर फिर उसे थोक व्यवसायियों को बेच दिया जाता है.नहीं मिलता है उचित मुनाफा
गांव के लोग भले ही पूरे समर्पण के साथ आरता पत्ते का निर्माण करते हैं, पर इसके एवज में इन्हें अपने बनाये पत्तों का बाजार में सही मुनाफा नहीं मिल पाता है. थोक व्यवसायी बहुत ही कम फायदे पर इन लोगों से आरता पत्ता खरीदते हैं. गांव के लोगों का कहना है कि इस काम से जैसे तैसे उनका गुजरा चलता है पर छठ पूजा के प्रति इनलोगों की आस्था ही है जो आज भी इन्हें यह काम करने का साहस प्रदान करती है.
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