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चार दशक बाद फिर लौटा मोटे अनाज का दौर, मडुआ की हुई खेती

चार दशक बाद रोहतास जिले के रोहतास प्रखंड क्षेत्र स्थित रसूलपुर पंचायत के नावाडीह गांव के किसान भोला कुशवाहा ने अपने खेत में मोटे अनाज की उपज शुरू कर दी.

रजी अहमद खान, अकबरपुर. रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक घातक दवाओं का उपयोग कर उपजे अनाजों से बढ़ती बीमारियों ने सरकार का ध्यान मोटे अनाजों के उत्पादन की ओर आकृष्ट किया है. सरकार ने जब ध्यान देना शुरू किया, तो फिर किसान कहां रुकने वाले हैं. चार दशक बाद रोहतास जिले के रोहतास प्रखंड क्षेत्र स्थित रसूलपुर पंचायत के नावाडीह गांव के किसान भोला कुशवाहा ने अपने खेत में मोटे अनाज की उपज शुरू कर दी. इस वर्ष एक बीघा जमीन में मडुआ (रागी) की खेती कर मोटे अनाज की उपज करने वालों की सूची में अपने जिले, राज्य, गांव का नाम ला दिया. राज्य के कृषि विभाग ने अपनी वेबसाइट पर भोला कुशवाहा की इस पहल का जिक्र करते हुए बधाई दी है. वहीं, भोला कुशवाहा ने बताया कि गत दिनों ट्रेनरों ने मुझे बुलाकर मोटे अनाज के बारे जानकारी दी. इसका लाभ और खेती करने के उपाय बताये. मैं काफी प्रभावित हुआ. इसके बाद मुझे ट्रेनिंग के लिए पटना भेजा गया, जहां मुझे तीन दिन तक मडुआ की रोटी और मडुआ का ही भात खाने को मिला. मुझे भोजन बहुत आनंददायक लगा. मैंने इसकी खेती करने की ठान ली. भविष्य में मुझे खाने के अलावा अगर उपज का सही मूल्य मिलेगा, तो खेती का विस्तार करूंगा.

मोटे अनाज की खेती के लिए किसानों को किया जा रहा प्रोत्साहित

प्रखंड कृषि पदाधिकारी राजेश कुमार श्रीवास्तव व कृषि समन्वयक जितेंद्र कुमार सिंह ने कहा कि मोटे अनाज के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए प्रखंड में चार क्लस्टर बनाये गये हैं. पहले जमुआ, दूसरे दियाडीह में मडुआ, तीसरे तेलकप में बाजरा और चौथे नावाडीह में ज्वार की खेती के लिए किसानों को जागरूक किया जा रहा है. एक क्लस्टर में 25 किसान हैं. कुल मिलाकर सौ किसान हैं. किसानों को बीज के अलावा एक एकड़ जमीन पर खेती करने के लिए दो हजार रुपये का अनुदान भी दिया जा रहा है.

50 एकड़ में की जा रही है मडुआ की खेती

संझौली डब्ल्यूएचओ व कृषि वैज्ञानिकों के परामर्श पर सरकार देशवासियों को स्वस्थ व सुंदर रहने के लिए मोटा अनाज खाने के लिए जागरूक कर रही है. इसी कड़ी में कृषि विज्ञान केंद्र रोहतास (बिक्रमगंज) की केंद्र प्रभारी वरीय वैज्ञानिक डॉ शोभा रानी ने बताया कि मृदा वैज्ञानिक रामाकांत सिंह, वनस्पति वैज्ञानिक डॉ रतन कुमार, वरीय वैज्ञानिक आरके जलज के सहयोग से मक्का व मड़ुआ की खेती करने के लिए किसानों को मुफ्त बीज दिया जा रहा है. डॉ शोभा रानी ने बताया कि इस वर्ष 40 से 50 एकड़ में मडुआ की खेती सासाराम प्रखंड के धवदाड, सिकरिया, रंगपुर सहित आधे दर्जन गांवों में की जा रही है. उन्होंने बताया कि पिछले साल तिलौथू प्रखंड के अमरा गांव के किसानों से मडुआ की खेती डेढ़ एकड़ में करायी गयी थी.

कैसे करें मडुआ की खेती

डॉ शोभा रानी व वरीय कृषि मृदा वैज्ञानिक डॉ रमाकांत सिंह ने बताया कि मडुआ की खेती के लिए प्रति एकड़ दो किलो बीज लगता है. इस वर्ष जिले के किसानों को 100 किलो मडुआ का बीज मुफ्त में दिया गया है. मडुआ की खेती के लिए मात्र दो बार सिंचाई (पटवन) करनी पड़ती है. 21 दिनों में बिचड़ा तैयार हो जाता है. सरकार से किट और दवा मुफ्त में दी जा रही है. इसके अलावा दो हजार रुपये प्रोत्साहन राशि भी दी जा रही है.

मडुआ (रागी) का परिचय व गुण

मडुआ की खेती से मुर्गी चारा, हरा चारा व साइलेज बनाकर पशुओं को खिलाया जाता है. औषधीय गुणों से परिपूर्ण मडुआ पोषक तत्व और रेशा से परिपूर्ण होता है. इसे लोग रोटी और चावल के रूप में उपयोग करते हैं. इससे केक, पुडिंग और मिठाइयां बनती हैं. सबसे बड़ी बात है कि इसको भोजन में इस्तेमाल से कोलेस्ट्रॉल स्तर को नियंत्रित करने, हड्डियों को मजबूत बनाने और मधुमेह रोग में काफी लाभ मिलता है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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