Bihar Agriculture: बिहार के सासाराम जिले के किसानों की परेशानी बढ़ गई है. क्योंकि बारिश के कारण धान की फसल में शीथ ब्लाइट, शीथ रॉट रोग, तना छेदक व पत्र लपेटक रोगों का प्रकोप शुरू हो गया है. खेतों में पानी भरा होने के बाद भी अचानक सूख रहे पौधों के चलते किसानों में हड़कंप मच गया है. फसल को रोग से बचाने के लिए कृषि विभाग के वैज्ञानिकों की टीम भी गांवों में भ्रमण कर किसानों को सलाह दे रही है, जिले के अंचल में करीब 2.9 लाख हेक्टेयर से अधिक जमीन पर धान की खेती हुई है. इस बार धान की फसल के बंपर उत्पादन की उम्मीद लग रही थी. लेकिन, अचानक मौसम बदलने से फसल में रोग लगना शुरू हो गया है.
शिथ ब्लाइट और बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट रोग का प्रकोप
वर्तमान में धान के पौधों में शिथ ब्लाइट और बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट रोग का प्रकोप दिखने लगा है, इससे धान के पौधे अचानक से सूखने लगे हैं. इससे किसानों की चिंता बढ़ने लगी है. कृषि विभाग के अधिकारियों के अनुसार, रोग के कारण 10 से 15 प्रतिशत तक उत्पादन प्रभावित होने की संभावना है. यदि रोग का सही समय पर नियंत्रण नहीं किया गया, तो उत्पादन पर ज्यादा असर पड़ सकता है. शीथ ब्लाइट फफूंद जनित रोग शीथ ब्लाइट रोग का बोटेनिकल नाम सरोक्लेजियम ओराइजी है. यह फफूंद जनक रोग है. इस रोग का वायरस धान की फसल में हवा, पानी के अलावा पिछले वर्ष की प्रभावित मृदा से भी हो सकता है. रोग का वायरस बासमती किस्म को अपना निशाना बनाता है.
किसान चिंतित
बीमारी का सबसे पहले प्रकोप धान के पौधे के तने पर होता है. उस पर कालिमा लिये लंबे धब्बे पड़ने शुरू हो जाते हैं, जो पौधे के एक-एक पत्ते को सूखा कर बाली में दूध लेकर जाने वाली पाइप गांठों को गला देते हैं. इससे पौधा मर जाता है. खेत की डोल या मेड़ से बीमारी फैलती है. जिन खेतों में लगातार अधिक पानी भरा हुआ है, वहां शीथ ब्लाइट रोग का अधिक प्रकोप है. बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट में पत्तियां सूखने लगती हैं. ऊपर से नीचे की ओर सूखती चली जाती है. इससे धान के पौधे की ग्रोथ रुक जाती है. जिन खेतों में लगातार अधिक पानी भरा हुआ है, वहां पर यह रोग अधिक देखने को मिल रहा है.
ऐसे करें दवा का छिड़काव
पौधा संरक्षण विभाग के सहायक निदेशक इंद्रजीत कुमार ने बताया कि धान के खेत से पानी निकालकर सुखाना चाहिए. एक बार खेत को चटका लगाना चाहिए. फसल में थाई फ्लू जायाइड 24 प्रतिशत तथा पल्सर जाई माइन देवा 80 एमएल प्रति बीघा के हिसाब से स्प्रे करें. इसके अलावा टाइड ब्लर्स 100 से 125 एमएल प्रति बीघा के हिसाब से स्प्रे करें या आइसोप्रोमायोलेन 40 प्रतिशत 200 एमएल प्रति बीघा स्प्रे करें. इन दवाओं के साथ एंटीबायोटिक एक्स माइलिन या स्ट्रेप्टोसाइक्लिन मिलाना आवश्यक है.