सासाराम ऑफिस. शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2011 कहता है कि बिना प्रस्वीकृति के प्राइवेट (निजी) स्कूलों का संचालन नहीं हो सकेगा. लेकिन, जिले में नियम को ताक पर रख निजी स्कूल संचालित हो रहे है. शिक्षा विभाग के आंकड़ों के अनुसार, जिले में करीब 526 निजी स्कूल हैं. हालांकि निजी स्कूलों की संख्या 526 से कहीं ज्यादा है. बहरहाल, उक्त 526 स्कूलों में से विभाग से मात्र 294 स्कूलों को ही प्रस्वीकृति प्राप्त है और 44 स्कूलों ने प्रस्वीकृति प्राप्त करने के लिए आवेदन कर रखा है. वहीं, अब भी 188 स्कूल ऐसे हैं, जो बिना रजिस्ट्रेशन के संचालित हो रहे हैं. विभागीय पदाधिकारी भी कहते है कि बच्चों के नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा नियमावली 2011 नियम के तहत अब बिना प्रस्वीकृति (क्यूआर कोड) के निजी स्कूल संचालित नहीं होंगे. शिक्षा विभाग द्वारा विकसित इ-संबंधन पोर्टल पर आवेदन अनिवार्य है. पोर्टल पर निजी स्कूल द्वारा आवेदन नहीं किया जायेगा, तो विधि सम्मत कार्रवाई के साथ-साथ आर्थिक दंड का प्रावधान है. बावजूद इसके बिना प्रस्वीकृति के निजी स्कूल संचालित हो रहे हैं. ऐसे स्कूलों पर एक लाख रुपये तक का आर्थिक दंड किये जाने का प्रावधान है. दंड लगाये जाने के बावजूद निजी स्कूलों के संचालित होने पर विभागीय आदेश की अवहेलना मानते हुए प्रत्येक दिन 10 हजार रुपये जुर्माना किया जा सकता है.
कई स्कूल नहीं पूरा करते हैं मापदंड
पहले से प्रस्वीकृति प्राप्त प्राइवेट स्कूल धरातल पर चल रहे हैं या कागजों में सिमट कर रह गये हैं. उनके द्वारा विभागीय मापदंड के अनुसार प्रस्तुत किये गये कागजात ठीक है या नहीं. स्कूल की आधारभूत संरचना, शिक्षक व छात्रों की संख्या, पठन-पाठन से संबंधित संसाधनों की क्या स्थिति है. इसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है. सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार प्रस्वीकृति प्राप्त स्कूलों में कई ऐसे स्कूल हैं, जिनके स्कूल परिसर में खेल मैदान नहीं है. इसके साथ ही कई अन्य खामियां हैं. विभाग अगर सही तरीके से जांच कराये, तो कई स्कूलों की प्रस्वीकृति रद्द करनी पड़ सकती है. यही नहीं, अधिकतर स्कूल आठवीं की मान्यता की आड़ में हाइस्कूल व इंटरमीडिएट की कक्षाएं चला रहे हैं. शिक्षा विभाग मानकविहीन ऐसे स्कूलों पर शिकंजा कसने में अभी तक विफल हैं.
लूट रहे हैं प्राइवेट स्कूल
छात्र नेता यमीन कबीरी बताते हैं कि जिले में प्राइवेट शिक्षा का एक अलग ही बाजार बन गया है. जहां प्राइवेट स्कूल वाले अभिभावकों से किताब, पोशाक सहित अन्य चीजों के लिए भारी भरकम रकम वसूल कर रहे हैं, वहीं बच्चों को पूर्ण सुविधा भी नहीं दे रहे हैं. ऐसे में शिक्षा विभाग वैसे स्कूलों पर नकेल कसने में भी नाकामयाब है. छात्र नेता दिव्य प्रकाश ने कहा कि फेस्टिवल और सेलिब्रेशन के नाम पर हर स्कूल एक हजार रुपये तक नये सत्र की शुरुआत में लेते है, जबकि वार्षिकोत्सव और वार्षिक खेलकूद के नाम पर अलग से शुल्क लिये जाते हैं. लेकिन, बच्चों को उक्त एक्टिविटी में रखा ही नहीं जाता है. शिक्षा विभाग के सख्त आदेशों के बावजूद इस पर विराम नहीं लग पा रहा है. कई स्कूल संचालकों ने तो आठवीं की मान्यता होने के बाद भी 9वीं से 12वीं तक की कक्षाएं संचालित कर रखी हैं. एक कमेटी का गठन कर स्कूलों का निरीक्षण होना चाहिए. जो भी मानक पर नहीं उतर रहे हैं, उन्हें बंद कर देना चाहिए.क्या कहते हैं डीपीओ
इस संबंध में समग्र शिक्षा अभियान के डीपीओ राघवेंद्र प्रताप सिंह का कहना है कि सभी स्कूलों को मान्यता लेने से पहले इ-संबंधन पोर्टल पर पंजीयन करवाना होता है. इ-संबंधन पोर्टल पर पंजीयन करने के बाद विभागीय जांच के बाद ही निजी स्कूल को राज्य सरकार से एनओसी व मान्यता मिल पायेगी. इसके बाद ही कोई व्यक्ति या संस्थान क्षेत्र में निजी स्कूल खोल या संचालित कर सकते हैं. जिले में करीब 526 प्राइवेट स्कूल हैं, जिनमें से 294 ने आवेदन कर क्यूआर कोड प्राप्त कर लिया है. 44 स्कूल के आवेदन आये हुए हैं. जिन स्कूलों ने अब तक रजिस्ट्रेशन के लिए आवेदन नहीं किया है या रजिस्ट्रेशन नहीं कराना चाह रहे हैं, उन्हें एक सप्ताह का मौका दिया गया है. एक सप्ताह के बाद उक्त स्कूलों के संचालन पर रोक लगा दी जायेगी. रोक के बाद भी स्कूल का संचालन होता है, तो विधि सम्मत कार्रवाई की जायेगी.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है