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मछली के बाद सूअर पालन में कदम बढ़ाने लगा रोहतास

कृषि क्षेत्र के साथ मछली व मांस उत्पादन में जिला लगातार वृद्धि कर रहा है. एक समय था, जब जिले के मछली बाजार पर आंध्र प्रदेश की मछलियों का दबदबा था. अब जिले के मछली उत्पादकों का दबदबा है और आंध्र प्रदेश की मछलियों का एक प्रतिशत बाजार रह गया है.

वीरेन्द्र कुमार, संझौली. कृषि क्षेत्र के साथ मछली व मांस उत्पादन में जिला लगातार वृद्धि कर रहा है. एक समय था, जब जिले के मछली बाजार पर आंध्र प्रदेश की मछलियों का दबदबा था. अब जिले के मछली उत्पादकों का दबदबा है और आंध्र प्रदेश की मछलियों का एक प्रतिशत बाजार रह गया है. मछली उत्पादन के बाद जिला अब सूअर पालन की ओर कदम बढ़ाने लगा है. आलम यह कि जिले से नेपाल और अन्य प्रदेशों के लिए सूअरों का निर्यात होने लगा है. जिले को सूअर निर्यात में अग्रणी बनाने के लिए बिक्रमगंज प्रखंड क्षेत्र के तुर्ती गांव निवासी गुलाब लाल सिंह तन-मन-धन से लगे हैं. गुलाब लाल सिंह ने बताया कि वर्ष 2001 में मैं सीमा सुरक्षा बल में भर्ती होने के लिए झारखंड जिले के हजारीबाग गया था. मुझे उसमें सफलता नहीं मिली. वापसी के दौरान एक सूअर फार्म पर मेरी नजर पड़ी. फार्म मालिक से संपर्क किया और कुछ मूलभूत जानकारी ली और घर लौट आया. सूअर पालन के विभिन्न आयामों को पढ़ा, समझा. गांव में सूअर पालन का फार्म बनाया. इसके बाद 27 फरवरी 2003 को हरियाणा से लैंड रेस व लार्ज व्हाइट सूअर के 20 बच्चे खरीद लाये. वर्तमान में मेरे फार्म में 70 प्रौढ़ व 50 बच्चे हैं.

नेपाल और असम में अधिक है डिमांड

उन्होंने बताया कि मेरे फार्म के सूअरों की नेपाल और असम में अधिक डिमांड है. वहां के व्यापारी मेरे पास आते हैं, जो एक से डेढ़ क्विंटल के सूअरों को खरीदकर ले जाते हैं. जनवरी, क्रिसमस और होली जैसे त्योहारों पर माल की पूर्ति करने में परेशानी होती है. आमदनी का कोई सीधा हिसाब नहीं है, पर सात से आठ लाख रुपये वार्षिक बचत हो जाती है. उन्होंने बताया कि एक सौ सूअर के पालन में लगभग 30 लाख रुपये सालाना खर्च आता है. उन्होंने बताया कि एक मादा सूअर साल में दो बार औसतन 20 से 30 बच्चे देती है. वर्तमान में सूअर पालन में सरकारी पशु चिकित्सक की कमी महसूस होती है. सूअरों के स्वास्थ्य की जांच के लिए निजी चिकित्सकों पर आश्रित रहना पड़ता है, जिन पर अधिक खर्च होता है.

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