सासाराम ऑफिस. जिले में करीब 2100 प्रारंभिक स्कूल हैं. इनमें से कई स्कूल किसी दूसरे सरकारी भवनों या फिर निजी मकानों में चल रहे हैं. हालांकि ऐसे भवनहीन स्कूलों को अपना भवन देने के लिए सरकार ने जमीन ढूंढने की जिम्मेवारी जिला प्रशासन को दी थी, लेकिन काफी दिनों के बाद भी जब जमीन नहीं मिली, तो सरकार ने ऐसे स्कूलों को बंद करने का निर्णय लिया. इस निर्णय के आलोक में जिला शिक्षा विभाग ने भवनहीन स्कूलों को समीप के किसी दूसरे स्कूल में विलय करना शुरू कर दिया. प्रथम चरण में करीब 15 भवनहीन स्कूलों को दूसरे स्कूलों में विलय किया गया था. इस बार फिर 10 से अधिक स्कूलों की सूची तैयार हो गयी है. जमीन उपलब्ध नहीं होने के कारण अब इन स्कूलों के वजूद पर खतरा मंडराने लगा है. इसका असर इन स्कूलों के छात्रों सहित शिक्षकों पर भी पड़ेगा. गौरतलब है कि विगत वर्ष 2023 के नवंबर माह में ऐसे ही भवनहीन जिले के 15 सरकारी स्कूलों का अस्तित्व खत्म कर दिया गया था, जिसमें प्राथमिक विद्यालय भारतीगंज, उर्दू प्राथमिक विद्यालय भटियारा टोला, उर्दू प्राथमिक विद्यालय घोसी टोला, प्राथमिक विद्यालय करन सराय (बालक), कन्या प्राथमिक विद्यालय करन सराय, उर्दू प्राथमिक विद्यालय आदमखानी, उत्क्रमित प्राथमिक विद्यालय स्टेशन रोड, उर्दू प्राथमिक विद्यालय चौखंडी, स्पेशल मुस्लिम कन्या मध्य विद्यालय शेरगंज, प्राथमिक स्कूल छोटी लाइन, प्राथमिक स्कूल न्यू एरिया, उर्दू प्राथमिक स्कूल दुर्गा स्थान, प्राथमिक स्कूल तेंदुनी (बालक), उर्दू प्राथमिक विद्यालय तेंदुनी व नव सृजित प्राथमिक विद्यालय कड़जर को मर्ज कर दिया गया था. इस संदर्भ में अभिभावक व छात्रों में शामिल शशि रंजन, अमित, रोशन, प्रिंस, सुजीत आदि ने कहा कि शहरीकरण के कारण इन स्कूलों का अस्तित्व समाप्त हो गया. शहर में सरकारी जमीन का अभाव है. जो है उस पर अतिक्रमण है. ऐसे में बच्चों व अभिभावकों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है. टैग स्कूलों में कर दिया जा रहा है मर्ज भूमिहीन व भवनहीन स्कूलों को भवन बनाने के लिए जमीन नहीं मिलने के कारण इन स्कूलों को संविलियन (मर्ज) कर दिया जा रहा है. मर्ज होने के बाद इन स्कूलों को संबद्ध (टैग) किये गये मूल स्कूल के नाम से जाना जा रहा है. यही नहीं, इनमें पठन-पाठन करने वाले बच्चे व शिक्षक भी टैग वाले स्कूल के ही हो जा रहे हैं. इससे शिक्षकों के पदों की संख्या भी घट रही है, जो विचारणीय है. एक किलोमीटर पर होना चाहिए एक स्कूल विभाग की मानें तो शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत हर एक किलोमीटर पर एक प्राइमरी, तीन किलोमीटर पर मिडिल तो पांच किलोमीटर पर हाइस्कूल होना जरूरी है.
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