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मनरेगा मजदूरों को नहीं मिलता है साल में 100 दिन काम

गुठनी. महात्मा गांधी ग्राम रोजगार गारंटी योजना में पंजीकृत मजदूर को साल भर में सौ दिन काम देना है. लेकिन प्रखंड के ग्रामीण इलाकों में काफी दिनों से मनरेगा मजदूरों को कोई काम नहीं मिल रहा है. साथ ही समय पर मजदूरी का भी भुगतान नहीं होता है इससे पंजीकृत मजदूरों को काम नहीं मिलने से आर्थिक तंगी से परेशान रहते हैं.

प्रतिनिधि, गुठनी. महात्मा गांधी ग्राम रोजगार गारंटी योजना में पंजीकृत मजदूर को साल भर में सौ दिन काम देना है. लेकिन प्रखंड के ग्रामीण इलाकों में काफी दिनों से मनरेगा मजदूरों को कोई काम नहीं मिल रहा है. साथ ही समय पर मजदूरी का भी भुगतान नहीं होता है इससे पंजीकृत मजदूरों को काम नहीं मिलने से आर्थिक तंगी से परेशान रहते हैं. प्रखंड में10 ग्राम पंचायतें हैं. इसमें 14 हजार 451 मजदूरों ने मनरेगा में अपने जॉब कार्ड बनवा रखा है. इन मजदूरों को मनरेगा से नियमित रूप से काम नहीं मिल पाता है. कई ऐसे कार्य जो मजदूरों के माध्यम से कराये जाने चाहिए, उन्हें मुखिया और रोजगार सेवक मशीनों को लगवाकर पूरा करा लेते हैं. मैरीटार गांव के नरेंद्र, बृजमोहन, आदि मजदूरों ने बताया कि वे लोग पिछले दो साल से बेकार बैठे हुए हैं. उन्हें विभाग द्वारा न तो कोई काम दिया जाता है और न ही कोई खोज- खबर ली जा रही है. विभाग से कोई भी कर्मी काम के लिए पूछने तक नहीं आते हैं. दूसरे के खेतों में मजदूरी कर जीवन बसर कर रहे हैं. कुछ मजदूरों ने बताया कि अब मनरेगा के ज्यादातर काम जेसीबी से लिये जाते हैं. जिसके कारण भी वे लोग बेकार हो चुके हैं. कई मजदूरों ने बताया कि मनरेगा के द्वारा एक ही जगह के परमानेंट मजदूरों से काम लिया जाता है. इसलिए बाकी मजदूर बेकार बैठे रहते हैं. कोई योजना चालू होने पर उसमें ठेकेदार अथवा बिचौलिए के द्वारा स्थानीय मजदूरों की उपेक्षा कर बाहरी मजदूरों से काम कराया जाता है. बताया कि एक तो मनरेगा में काम का टोटा रहता है. ऊपर से दिहाड़ी भी कम दी जाती है जिससे परिवार का पेट नहीं चलता है. आखिर कब तक मनरेगा के भरोसे बैठे रहते. बेरोजगारी एवं परिवार की चिंता ने घर से कोसों दूर परदेस जानें पर मजबूर कर दिया. लेकिन वहां भी मन के मुताबिक काम नहीं मिल पाता है. ओवरटाइम काम करना पड़ता है. तभी कुछ कमाई हो पाती है. कम और देर से मजदूरी मिलने के कारण घटी दिलचस्पी मनरेगा मजदूरों को पिछले साल दिसंबर माह से मजदूरी नहीं मिली है. राज्य में मनरेगा मजदूरी इस साल 245 रुपये की गयी है. बीते चार वर्षों में 57 रुपये ही बढ़ाये गये हैं. मनरेगा मजदूर राम अवधेश प्रसाद ने बताया कि मनरेगा में मजदूरी काफी कम है. काम करने के बाद भी पैसे के लिए राह देखनी पड़ती है. बताया कि मनरेगा में मजदूरी कम होने की वजह से उन्होंने काम करना छोड़ दिया. विभागीय जानकारी के अनुसार वित्तीय वर्ष 23- 24 में 83 हजार 7 सौ 59 और वित्तीय वर्ष 24 – 25 फरवरी माह तक 1 लाख 10 हजार 90 श्रमिकों का मानव दिवस सृजित है. वहीं वित्तीय वर्ष 23-24 में 1 करोड़ 76 लाख 96 हजार रुपए सामग्री पर खर्च हुआ है और 1 करोड़ 89 लाख रुपए श्रमिकों को मजदूरी का भुगतान किया गया है. वहीं वित्तीय वर्ष 24-25 फरवरी माह तक 1 करोड़ 76 हजार रुपए का सामग्री और 2 करोड़ 27 लाख 61 हजार रुपए मजदूरी पर खर्च किए गए हैं. तीन महीने से मजदूरी नहीं मिलने का आरोप प्रखंड के सभी दस पंचायतों के मजदूरों ने नाम नहीं छापने के शर्त पर बताया कि उन्हें तीन महीने से मजदूरी नहीं मिली है, जिसके कारण वे भुखमरी का सामना कर रहे हैं. मजदूरी की राशि उनके खातों में अब तक नहीं पहुंची है. उन्होंने ने बताया कि मनरेगा में पिछले वर्ष कार्य किया था लेकिन उसका पैसा अभी तक नहीं मिला है. जब भी रोजगार सेवक या मुखिया से कहते हैं तो देख लेंगे, आ जायेगा, यह कह कर टाल देते हैं और अधिकारियों से पूछे जाने पर कोई संतोषजनक जवाब भी नहीं मिल पा रहा है. क्या कहते है मनरेगा पीओ प्रखंड में 14 हजार 4 सौ इक्यावन के करीब मजदूर हैं. जिसमें 5 हजार 60 के करीब सक्रिय मजदूर हैं. सक्रिय मजदूरों को समय समय पर काम पर लगाया जाता है. उन्हें पौधरोपण, पोखर, आवास योजना आदि कार्य में काम दिया जाता है. रंजन रत्नाकर, पीओ मनरेगा

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