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तीरबलुआ में बाढ़, सुखाड़ व प्राकृतिक आपदा होगा लोकसभा चुनाव का मुद्दा

सरयू नदी किनारे बसे तीरबलुआ गांव को हर साल कटाव, बाढ़, बारिश, सूखे का सामना करना पड़ता है. स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि व अन्य मूलभूत सुविधाओं का नहीं मिल पाता लोगों को कोई लाभ, लगभग 253 परिवार मछली पकड़ने पर आज भी है निर्भर.

गुठनी. आगामी लोकसभा चुनाव में तीरबलुआ गांव हर साल बाढ़ और प्राकृतिक आपदा से होने वाले नुकसान मुख्य मुद्दा है. सरयू नदी किनारे बसे इस गांव को हर साल कटाव, बाढ़, बारिश, सूखे का सामना करना पड़ता है. बावजूद यहां के लोगों को किसी भी तरह का सरकारी और आर्थिक सहायता नहीं मिल पाता है. वहीं कटाव से उन्हें फसलों, घरों, झोपड़ी, पशुओं, अनाज, जमीन, पेड़ पौधे का भी काफी नुकसान होता है. हालांकि कई बार शिकायत के बावजूद भी अधिकारी कोई कार्रवाई नहीं करते. सीओ विकास कुमार का कहना है कि मेरे आने के बाद इस तरह की कोई लिखित शिकायत नहीं मिली है. बावजूद मौके पर पहुंच कर मैं खुद जांच करूंगा.

मूलभत सुविधाओं से पूरी तरह वंचित है यह गांव :

बलुआ पंचायत के तीरबलुआ गांव आज भी मूलभूत सुविधाओं से पूरी तरह वंचित है. कई दशकों बाद गांव को जोड़ने वाली मुख्य सड़क का निर्माण किया गया. बिजली के खिलाफ आंदोलन के बाद 2017 में गांव में बिजली लगी. लेकिन तीन दशकों से बंद नलकूप को आज भी नहीं चालू किया गया. ग्रामीणों का कहना है कि गांव के अक्सर लोग गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले हैं. यहां के लोगों का मुख्य व्यवसाय मछली उत्पादन करना है. जो मुंम्बई, गुजरात, अंडमान, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश जाकर अपनी जीविका चलाते हैं.

प्राकृतिक आपदा से हर साल जूझता है तीरबलुआ :

तीरबलुआ गांव के लोगों के साथ करीब आधा दर्जन गांव के लोगों ने सरयू पर बांध बनाने को लेकर कई बार एमपी, एमएलए, डीएम, बीडीओ, एसडीओ को आवेदन दिया. लोगों की माने तो कभी बाढ़ तो कभी सूखे से हर साल हजारों रुपये की फसल नुकसान हो जाती है. तीरबलुआ के ग्रामीण खुर्शेद आलम, तनवीर अख्तर, परवेज आलम, मुन्ना साहनी, राहुल साहनी, श्रीचंद मल्लाह, राजेंद्र मल्लाह, कलिंद्र कुमार समेत दर्जनों ग्रामीणों ने मांग किया कि सरकार अगर नदी पर बांध बना दे और नलकूप लगा दे तो हर मौसम में अच्छी फसलों का पैदा कर सकते हैं.

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