संवाददाता,सीवान. मंगलवार को देशभर में जयंती पर प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद को लोग याद कर रहे हैं.इस दिन को अधिवक्ता दिवस के रूप में भी याद किया जाता है.राजेंद्र वाबू का पैतृक गांव जीरादेई को आज भी राष्ट्रीय क्षितिज पर पहचान मिलने का इंतजार है.दशकों से यह गांव विकास के इंतजार में है. देश की सांस्कृतिक विरासत के सरंक्षण व पुरातात्विक शोध के लिहाज से निवास स्थल भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के नियंत्रण में है.इसके अलावा सरकारी फाइलों में यह पर्यटन केंद्र भी घोषित है.इसके बावजूद यहां विकास के मुख्य धारा में शामिल कर देश में राजेंद्र बाबू की माटी को पहचान नहीं मिल पा रही है. आजादी के 75 साल गुजर जाने के बाद भी इस गांव की दशा और दिशा में कोई भी खास परिवर्तन नहीं हुआ है.पुरातात्विक विभाग से नियंत्रित गणतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद का पैतृक आवास सरकारी उपेक्षा का शिकार है.आलम यह है कि देशरत्न यह आवास की आलीशान इमारते अपनी अतीत को याद कर आंसू बहा रहा है.इस इमारत की दीवारों पर अतीत की यादें चिपकी हुई है. देशरत्न की पहली सांसों का गवाह जीरादेई स्थित यह भवन विकास की रौशनी का बाट खोज रहा है. तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने प्रथम राष्ट्रपति के ध्वस्त हो रहे पैतृक आवास को बचाने के लिए केंद्रीय पुरातत्व विभाग के सुपुर्द किया था. इसके बाद से सरकारी संरक्षण में ही इसका रख रखाव किया जाता है.2010 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इसे पर्यटक स्थल बनाने की घोषणा की थी.बावजूद इसके इस आलीशान इमारत का कायाकल्प नहीं हो सका. हाइकोर्ट के संज्ञान पर हुआ आमूलचूल परिवर्तन जनहित याचिका पर हाइकोर्ट के संज्ञान लेने पर लोगों को विकास की धूमिल हो चुकी छवि पर आशा की किरण जगी है.कोर्ट के निर्देश पर तीन सदस्यी कमेटी का गठन हो चुका है.अब लोगों की उम्मीदें जग उठी है.शिक्षक कृष्ण कुमार सिंह कहते है कि अक्टूबर में हाईकोर्ट के मुख्य न्यायधीश संजय करोल निजी यात्रा पर देशरत्न के पैतृक जन्मस्थली को नमन करने आये थे भवन के कुव्यवस्था को देखकर काफी चिंता व दुःख व्यक्त किया था.पटना हाईकोर्ट ने केंद्र व राज्य सरकार से जवाब तलब किया और फिर केंद्र ने 17.50 लाख का फंड आवंटन किया.इस रकम से बाबू के पैतृक आवास की चहारदीवारी व पाथवे का निर्माण किया गया. बाबू के लिए देश सेवा सर्वोपरि देशरत्न देश सेवा को सर्वोपरि मानते थे. राजेन्द्र प्रसाद के जीवन काल का एक दिलचस्प किस्सा ये भी रहा कि 25 जनवरी 1950 के दिन उनकी बहन भगवती देवी का निधन हुआ. और अगले ही दिन देश का यानी आजाद भारत का संविधान लागू होने जा रहा था. ऐसे में भला वो कैसे अपनी बहन के अंतिम संस्कार में शामिल हो पाते. इन परिस्थितियों को देखते हुए डॉ प्रसाद ने संविधान की स्थापना की रस्म पूरी होने के बाद ही दाह संस्कार में भाग लिया. पधार चुकी है महान विभूतियां आवास में दर्ज शिलालेख से यह ज्ञात होता है.यह स्थान देश के महान विभूतियों के आगमन का गवाह रहा है.स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान इस भवन में महात्मा गांधी,विनोबा भावे, सरदार वल्लभ भाई पटेल,सरोजनी नायडू, लोकनायक जयप्रकाश नारायण आदि अनेक विभूतियां पधारी थी.बरामदे में रखी चारपाई उनके विश्राम के काम आती थी.यही पर इन लोगों ने स्वतंत्रता आंदोलन के अनेक सपने देखे गए थे.देश आजाद हो गया.लेकिन यह स्थल आज भी वह स्थान प्राप्त नहीं कर सका जिसका वाजिब हक दार है . एक दशक पूर्व बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ,राज्यपाल देवानन्द कुंवर भी इस भवन का अवलोकन कर चुके है .बावजूद इसके भवन की उदासी व अव्यवस्था में कोई सुधार नहीं हुआ . भारतीय पुरातत्व विभाग के अधीन आने पर भी भवन में चमक नहीं आ पाई. यह विभाग के उदासीनता के परिचायक प्रतीत होता है .देशरत्न के पैतृक संपत्ति के प्रबंधक रामेश्वर सिंह ने बताया कि बाबू का आवास रात भर अंधेरे में रहता है.
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