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Supaul news : कोसी के जय झा से पहले संजीव लहरा चुके हैं संगीत का परचम

Supaul news : आइए जानते हैं कि वृहत्तर मिथिला में कैसे संगीत की सरिता अनवरत बहती रही है...

Supaul news : अभी रियलिटी शो सारेगामापा में सहरसा के जय झा धमाल मचाये हुए हैं. एक गरीब घर में जन्मे जय ने लाखों युवाओं को बेहतर करने की प्रेरणा दी है, लेकिन क्या आपको पता है कि इससे पहले दिग्गज कलाकारों के बीच सुपौल के संजीव झा ने अपनी गायिकी से धूम मचा रखी थी. जी हां, हम बात कर रहे हैं सुपौल के संजीव की, जो एकाएक सोशल मीडिया पर चर्चित चेहरे के रूप में सामने आये हैं. आइए जानते हैं कि वृहत्तर मिथिला में कैसे संगीत की सरिता अनवरत बहती रही है…

मिथिला के कण-कण में संगीत का वास

पंडित रघु झा, मांगनि खबास, पंडित रामचतुर मल्लिक, विंध्यवासिनी देवी, शारदा सिन्हा, उदित नारायण, मैथिली ठाकुर, जय झा, संजीव झा, कुंज बिहारी सहित अन्य गायकों ने अपनी आवाज से मिथिला की एक नयी पहचान दिलायी है. यही कारण है कि अब आम जन भी कहने लगे हैं कि मिथिला के कण-कण में संगीत है. मिथिला से संगीत के क्षेत्र में अब तक तीन लोगों को ‘पदम श्री मिले हैं. इसमें विंध्यवासिनी देवी, शारदा सिन्हा व उदित नारायण शामिल हैं. मां सीता व कवि कोकिल विद्यापति की उर्वर भूमि न सिर्फ अपनी मधुर वाणी के लिए, बल्कि संगीत की धुन के लिए भी जानी जाती है. कोसी-कमला-वागमती की धारा ने सप्त स्वर, तीन ताल, 22 श्रुतियों से एक अलग रस, ताल और राग को जन्म दिया. मिथिला में विद्यापति समारोह में आये गांव के युवा को भी लोग तबले की धुन पर ताल देते देख सकते हैं. कटिहार के रविंद्र-महेंद्र की जोड़ी ने अपने समय में तहलका मचा दिया था. उन्होंने ममता गाबय गीत फिल्म में भी बेहतर संगीत दिया था. उनकी पौत्री आज सारेगामापा में जज की कुर्सी पर बैठी है. कभी सहरसा के मायानंद मिश्र की आवाज के हजारों दीवाने थे. दरअसल, देश में ऐसी कोई जगह नहीं, जहां आम आदमी संगीत इतने चाव से सुनता हो. यही कारण है कि यहां के युवा मिथिला को कभी बेसुरा नहीं होने देते.

गौरव के रूप में देखा जाता है मिथिला की संस्कृति को

लोक संस्कारों में देवी-देवताओं के स्तुतिगीतों के साथ, पूजा स्थलों, शुभ संस्कारों से संबंधित गीत से निकलती स्वर लहरियां आंचलिकता के रंग में रंगी हैं. संगीत की हर विधा और शैली को अपनाकर उसमें मिथिला का अलग रंग भरना मिथिला के संगीतकारों की विशेषता रही है. महाकवि विद्यापति लोक देश की विभिन्न भाषाओं के आदि रचनाकार हैं. महाकवि विद्यापति की रचना बाल विवाह व समाज में फैली कुरीतियों को दूर करने में सार्थक साबित हुई. विश्व में मिथिला की संस्कृति को गौरव के रूप में देखा जाता है. यही कारण है कि मिथिला में ठुमरी, कजरी, चैती, पूरबी, भैरवी, होली, झूमर, मलार, सोहर, समदाउन आदि ऐसे लोक गीत हैं, जो अपनी अलग शैली के लिए जाने जाते हैं. इसमें लोक तत्व के साथ ही शास्त्रीय संगीत की गरिमा भी समाहित है.

संजीव की आवाज के कायल रहे हैं दिग्गज कलाकार

सुपौल जिले के राघोपुर प्रखंड अंतर्गत मोतीपुर गांव के संजीव झा 1996 में सा रे गा मा पा में अपनी गायन शैली के लिए क्वार्टर फाइनल तक का सफर तय किये थे. उस वक्त अनु मलिक, जतिन ललित, नदीम श्रवण व सोनू निगम जज हुआ करते थे. संजीव ने किशोर दा की आवाज में आपके अनुरोध पे मैं ये गीत सुनाता हूं गाकर जजों का दिल जीत लिया था. एक सुखी संपन्न परिवार के संजीव झा 1989 में अपना घर-परिवार छोड़ महानगरी की ओर महज डेढ़ सौ रुपये लेकर विदा हुए. प्रभात खबर से बातचीत में संजीव ने बताया कि जब वे मुंबई स्टेशन पहुंचे, तो वहां का दृश्य देख थोड़ी देर के लिए उनके कदम आगे बढ़ने से ठहर गये. पर दिल में कुछ करने की तमन्ना थी. इसके कारण वे पैदल ही वहां से निकल पड़े. अंजान शहर में उनके गांव के एक व्यक्ति पुलिस विभाग में नौकरी करते थे, जहां वह लोगों से पूछते-पूछते पहुंचे. उन्होंने खाना खिलाया और एक जगह रहने की व्यवस्था कर दी. उस जगह एक ही कमरे में कई मजदूर रहते थे. किसी तरह एक माह वहां रहे. इसके बाद वे वहां से निकल पड़े और गीत गुनगुनाते रहे. इसी दौरान उन्हें जतिन-ललित के ऑकेस्ट्रा में गाने का मौका मिला. जहां उन्होंने बेहतर प्रदर्शन किया. इसके बाद वे सा रे गा मा पा में ट्रायल करने लगे. कुछ दिनों के बाद उन्हें मौका मिला, तो वे अपनी गायन शैली से जज मुरीद बन गये.

उदित नारायण के गाने से मिली प्रेरणा

उदित नारायण के गाना पापा कहते हैं बड़ा नाम करेगा से उन्हें गाना गाने की प्रेरणा मिली. संजीव ने बताया कि अब तक वह पांच बार विदेश में भी अपना प्रदर्शन कर चुके हैं. उनकी बेटी श्रुति भी गायिका है. आज वे खुद का श्रुति-संजीव इंटरटेंमेंट ऑकेस्ट्रा चला रहे हैं. अब तो मुंबई में खुद का फ्लैट है. एक बेटी के पिता संजीव अपनी बेटी के गायन से काफी संतुष्ट हैं. कहते हैं कि कलाकार भले ही बूढ़ा हो जाये, लेकिन उसकी कला कभी बूढ़ी नहीं होती.

राज दरबारों का है बड़ा योगदान

राय बहादुर बाबू लक्ष्मी नारायण सिंह ऐसे घराना के संरक्षक व पोषक माने जाते हैं. इस घराना का मुख्य गायन शैली ख्याल एवं ठुमरी के साथ पखावज वादन था. इस घराना में दो विख्यात कलाकार हुए. इनमें मांगन खबास व द्वितीय रघु झा थे. इनके कई शिष्य हुए, जो मिथिला संगीत परंपरा का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं. मैथिली लोकगायिका विंध्यवासिनी देवी 1974 में पद्मश्री सम्मान, शारदा सिन्हा 1991 में पद्मश्री एवं 2018 में पद्म भूषण तथा उदित नारायण वर्ष 2009 में पद्मश्री, 2016 में पद्म भूषण से सम्मानित हो चुके हैं.

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