बिहार में जातिगत सर्वे कराने के बिहार सरकार के निर्णय को सही ठहराने के हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. हालांकि यह सुनवाई अधूरी रही. अब इस मामले की सुनवाई सोमवार 21 अगस्त को होगी. दरअसल, पटना हाइकोर्ट ने राज्य सरकार को जाति गणना कराने पर लगी रोक हटा ली है. इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अलग-अलग कई याचिकाएं दायर की गयी हैं.
सुप्रीम कोर्ट इससे संबंधित सभी मामलों की सुनवाई एक साथ कर रही है. इससे पहले सात अगस्त को इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई थी. न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायाधीश एसवी भट्टी की पीठ के समक्ष याचिकाकर्ता यूथ फॉर इक्वेलिटी की ओर से पेश वरिष्ठ वकील सीएस वैद्यनाथन ने कहा कि लोगों को अपनी व्यक्तिगत जानकारी देने के लिए विवश नहीं किया जा सकता है. बिहार सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने कहा कि सर्वे का काम पूरा हो चुका है, लेकिन राज्य सरकार कोई डाटा प्रकाशित नहीं करने जा रही है. याचिकाकर्ता की ओर से सर्वे का डाटा जारी करने पर अंतरिम रोक लगाने की मांग की गयी. पीठ ने कहा कि पहले इसे बताना होगा कि सर्वे कराना प्रथम दृष्टया सही है या नहीं.
किसी को अपना लिंग, धर्म, जाति और आय की जानकारी देने के लिए कैसे बाध्य किया जा सकता है. सर्वे के फॉर्म में सिर्फ आधार नंबर देने को वैकल्पिक बनाया गया है. ऐसे में सवाल उठता है कि बिना कानून के सरकार लोगों को ऐसी जानकारी देने के लिए बाध्य कर सकती है. वैद्यनाथन ने पुट्टास्वामी मामले में संविधान पीठ के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि अदालत ने व्यक्ति की निजता को मौलिक अधिकार करार दिया था.
ऐसे में निजता का हनन विशेष परिस्थिति में तय कानून के आधार पर किया जा सकता है. बिहार सरकार को सर्वे की अधिसूचना जारी करने से पहले कानून बनाना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं किया गया. बिहार सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने कहा कि सर्वे का काम पूरा हो चुका है, लेकिन राज्य सरकार कोई डाटा प्रकाशित नहीं करने जा रही है. सरकार व्यक्तिगत नहीं सामूहिक आंकड़े सामने रखेगी. इसपर न्यायाधीश संजीव खन्ना ने याचिकाकर्ता के वकील से पूछा कि जब व्यक्तिगत जानकारी सार्वजनिक नहीं की जायेगी तो निजता का हनन कैसे होगा.
इसपर वैद्यनाथन ने कहा कि सर्वे कराने का अधिकार राज्य सरकार को है या नहीं यह पूक्ष दूसरे वकील रखेंगे. सुनवाई के दौरान न्यायाधीश ने कहा कि बिहार में पड़ोसी को एक-दूसरे की जाति का पता होता है. दिल्ली जैसे शहरों में ऐसा नहीं है, लेकिन बिहार में यह हकीकत है. याचिकाकर्ता की ओर से सर्वे का डाटा जारी करने पर अंतरिम रोक लगाने की मांग की गयी. पीठ ने कहा कि पहले इसे बताना होगा कि सर्वे कराना प्रथम दृष्टया सही है या नहीं. मामले की अगली सुनवाई 21 अगस्त को होगी.