Uttrakhand Tunnel Rescue: उत्तराखंड सुरंग हादसे में बिहार के भी पांच मजदूर फंसे हुए थे. उत्तरकाशी सुरंग में फंसे बिहार के पांचों मजदूरों के परिजनों को जब यह सूचना मिली कि मंगलवार की शाम से फंसे सभी मजदूर बाहर निकल गये, तो सबके मुर्झाये चेहरे फिर से खिल उठे. परिजनों की आंखें खुशी से छलक गये. कई मजदूरों के परिजन, तो पिछले कई दिनों से उत्तराखंड में हैं, तो कई अपने घर में ही टीवी स्क्रीन पर टकटकी लगाये बैठे रहे.
सुरंग में फंसे मजदूरों में सारण जिले के एकमा प्रखंड की देवपुरा पंचायत के खजूआन गांव निवासी सवलिया साह का बेटे सोनू साह के सुरंग से सुरक्षित बाहर निकल गया. सोनू के पिता सवलिया साह ने कहा कि मेरा बेटा सुरक्षित निकल गया, इससे काफी खुशी है. लेकिन अब बेटे को उसे कभी वहां काम नहीं करने दूंगा. परजिनों ने बताया कि 14 दिनों तक हमलोगों की जान अटकी थी. उत्तराखंड सरकार ने टनल में फंसे मजदूरों को निकालने के लिए काफी प्रयास किया. इसके लिए हम धन्यवाद देते हैं.
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सारण जिले के एकमा प्रखंड की देवपुरा पंचायत अंतर्गत खजूआन गांव निवासी सवलिया साह का पुत्र सोनू साह के पिता सवलिया साह ने कहा कि अब मैं अपने से मिल लूं. उन्होंने कहा कि अब कभी काम करने के लिए वहां नहीं भेजूगां. सुरंग से सोनू के सुरक्षित बाहर निकलने के बाद माता-पिता समेत अन्य परिजनों ने खुशी जतायी. सभी को सोनू के घर आने का इंतजार है.
भोजपुर जिले के सहार प्रखंड क्षेत्र के पेऊर निवासी मिस्बाह अहमद के बेटे शबाह अहमद उर्फ सैफ भी टनल में फंसे थे. सैफ वहां सेफ्टी सुपरवाइजर के रूप में काम करते थे. कई दिनों से टनल में सैफ के फंसे रहने के कारण परिजन निराश हो गये थे. मंगलवार को जब उन्हें सूचना मिली कि वह टनल से निकाल लिया जायेगा, तो परिवार में खुशियां छा गयी.
मुजफ्फरपुर जिले के सैरया के गिजास मठ ठोला निवासी दीपक मंगलवार की रात जैसे ही सुरंग से बाहर निकले उनके मामा निर्भय कुमार सिंह ने उसे गले लगा लिया. मामा और भांजा दोनों की आंखों में आंसू थे, लेकिन यह खुशी के आंसू थे. पिछले 17 दिनों के इंतजार के बाद मौत के मुंह से दीपक वापस आये थे. निर्भय कुमार सिंह ने दीपक के पिता शत्रुघ्न पटेल को वीडियो कॉल कर दीपक से बात करायी. दीपक को देख पिता रो पड़े. दीपक ने उन्हें चुप कराया. दीपक के साथ मामा निर्भय सिंह एंबुलेंस से कुछ दूर स्थित मताली के अस्पताल में गये, जहां दीपक को भर्ती कराया गया.
उत्तरकाशी सुरंग से मंगलवार को बाहर आये मुजफ्फरपुर के दीपक ने मोबाइल फोन के माध्यम से प्रभात खबर से बातचीत में कहा कि 12 नवंबर को सुबह साढ़े चार बजे हमलोगों का शिफ्ट खत्म हो गया था. जब हमलोग बाहर निकलने लगे, तो पता चला कि फंस गये हैं. इसके बाद से हम लोगों को समझ में नहीं आया कि क्या करें. बाहर से फोन आया कि घबराएं नहीं, सब कुछ ठीक किया जा रहा है, आप लोगों को निकाल लिया जायेगा. पता नहीं चल रहा था कि क्या होगा. इस बीच हमलोगों तक खाना और पानी पहुंचाने की व्यवस्था की गयी. तीन-चार दिनों के बाद भरोसा कमजोर पड़ने लगा और हर पल यह महसूस होने लगा कि मौत सामने खड़ी है. पता नहीं जिंदगी बचेगी या नहीं. हमलोग डरे हुए थे. फिर भी एक-दूसरे को विश्वास दिलाते थे कि सब कुछ ठीक हो जायेगा. मोबाइल का चार्ज खत्म होने लगा, तो बाहर से चार्जर मंगवाया गया. घर से फोन भी आता था, तो ज्यादा बात नहीं करते थे. उन्हें बताते थे कि सब कुछ ठीक है, जल्दी हम घर आ जायेंगे. मामा निर्भय सिंह घटना के दूसरे दिन यहां पहुंच गये थे.उनसे अधिक बात होती थी. कभी-कभी लगता था कि अब शायद माता-पिता से भेंट नहीं हो पायेगी. बाहर आया हूं, तो लगता है कि नयी जिंदगी मिली है. ईश्वर ने सबके परिवारों की प्रार्थना सुन ली है. दीपक ने बताया कि उनके घर में खाना-पीना भी नहीं बन रहा था. छठ के दिन पिता से बात हुई. सब लोग मायूस थे.
सुरंग से बाहर निकलने के बाद प्रभात खबर से बातचीत के दौरान बांका जिले के कटोरिया की लकरामा पंचायत के तेतरिया गांव निवासी सह रिटायर्ड पंचायत सेवक मुन्नीलाल किस्कू व जीविका दीदी सुषमा हेंब्रम के छोटे पुत्र सह पोकलेन ड्राइवर वीरेंद्र किस्कू ने बताया कि पिछले 17 दिनों के दौरान वह जरा भी नहीं घबराया. उसने बताया कि सुरंग में फंसने के 12 घंटे बाद से ही अंदर में पानी, भोजन, ऑक्सीजन आदि मिलना प्रारंभ हो गया था. पोकलेन चालक वीरेंद्र ने बताया कि सुरंग के भीतर भी वह रोजाना मलवा हटाने आदि का कार्य करता रहा. वह कभी घबराया नहीं.