Business News गयाजी पूरी दुनिया में न केवल पितरों की मोक्ष स्थली है, बल्कि यहां कई ऐसे उद्योग भी हैं जो राष्ट्रीय व राज्य स्तरीय पहचान दिलाते हैं. तिलकुट, केसरिया पेड़ा से जहां इस शहर की राष्ट्रीय पहचान है, वहीं पटवा टोली में बन रहे पितांबरी पूरे बिहार में अब तक इकलौता साबित हो रही है. यहां की पितांबरी बिहार के साथ-साथ झारखंड व बंगाल के लोगों की जीवन की अंतिम यात्रा में साथ निभाती आ रही है. यह एक ऐसा वस्त्र है, जो बुनता है, वह जीवित में इसे पहनता नहीं, जो पहनता है, वह खुद देखता नहीं.
200 से अधिक पावर लूम पर बनायी जा रही पितांबरी
गया के मानपुर स्थित पटवाटोली में राजा सवाई मानसिंह के नाम पर टिकारी के राजा धीर सिंह द्वारा बुनकरों को बसाया गया था. शुरुआती में हस्तकरघा उद्योग से वस्त्रों की बुनाई बुनकरों द्वारा शुरू की गयी थी. इसके बाद वर्ष 1957 में केंद्र की तत्कालीन सरकार द्वारा केवल 10 घरों में निःशुल्क पावरलूम मशीन दी गयी थी. लेकिन, यहां के लोगों ने अपने हुनर के दम पर एक बड़ा औद्योगिक माहौल तैयार कर दिया. वर्तमान में घनी आबादी होने से यहां तंग गलियों की भरमार है. इन तंग गलियों में करीब डेढ़ हजार घर हैं, जहां दिन रात 12 हजार से भी अधिक पावर रूम चल रहे हैं.
इनमें दो सौ से अधिक पावर लूम मशीन पर दशकों से केवल पितांबरी बनाने का काम हो रहा है. इन मशीनों पर प्रतिदिन प्रतिमाह औसतन डेढ़ लाख पीस पितांबरी बनायी जा रही है. यहां सूती, पॉलिएस्टर व खधड़िया क्वालिटी की पितांबर बनायी जा रही हैं. क्वालिटी व आकार के अनुसार इसकी कीमत थोक बाजार में पांच से 50 रुपये प्रति पीस है.
क्या कहना है लोगों का
बिहार प्रदेश बुनकर कल्याण संघ के अध्यक्ष गोपाल प्रसाद पटवा ने बताया कि यहां का पितांबरी उद्योग बिहार का इकलौता है. उन्होंने कहा कि पूरे बिहार में पितांबरी बनाने का काम केवल गयाजी के पटवाटोली में ही दशकों से हो रहा है. उन्होंने कहा कि यहां का पितांबरी बिहार के सभी जिलों के साथ-साथ झारखंड व बंगाल में भी सप्लाइ की जाती है. बिहार प्रदेश इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के महामंत्री प्रेम नारायण पटवा ने कहा कि इस उद्योग के विकास के लिए सर्विस सेंटर की पुनः वापसी, ट्रेनिंग सेंटर की स्थापना, बंद राजकीय रंगाई गृह को चालू करने, डीलक्स टेक्सटाइल्स पार्क की व्यवस्था करने, बुनकर हॉस्पिटल की व्यवस्था करने के साथ-साथ कॉमन फैसिलिटी सेंटर का होना बहुत जरूरी है.
बिहार प्रदेश बुनकर कल्याण संघ के सचिव दुखन पटवा ने कहा कि पटवा टोली में संचालित 12 हजार पावर लूम पर प्रतिदिन 10 हजार से अधिक कामगार काम कर रहे हैं. इनके अलावा रंगरेज, धागा छटाइकर्मी, कपड़ा पॉलिशकर्मी सहित अलग-अलग कैटेगरी से जुड़े करीब 10 हजार से अधिक कामगार भी इस उद्योग से जुड़े हैं. इस कारोबार से करीब 25 हजार से अधिक परिवार जुड़े हैं जिनका भरण-पोषण हो रहा है.
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