Kalkaji Seat: दिल्ली विधानसभा चुनाव में इस बार कालकाजी सीट की चर्चा सबसे ज्यादा हो रही है. इस सीट पर तीन दिग्गज नेताओं के बीच सियासी लड़ाई देखने को मिल रही है. बीजेपी ने इस सीट से दिल्ली की सीएम आतिशी के खिलाफ रमेश विधूड़ी को मैदान में उतारा है। इस मुकाबले को दिलचस्प बनाया है कांग्रेस की प्रत्याशी अलका लांबा ने. आइए आज इस सीट के चुनावी इतिहास के बारे में चर्चा करते हैं.
1993 में बीजेपी ने दर्ज की पहली जीत
- 1993 में दिल्ली को केंद्र शासित प्रदेश घोषित किया गया, और फिर से चुनाव हुए. इस बार भाजपा ने पूर्णिमा सेठी के रूप में उम्मीदवार उतारा और उन्होंने कांग्रेस के सुभाष चोपड़ा को हराकर जीत दर्ज की. बाद में, पूर्णिमा सेठी ने भाजपा की केंद्रीय सरकारों में मंत्री के तौर पर कार्य किया.
- 1998 में सुभाष चोपड़ा ने कांग्रेस के लिए वापसी की और भाजपा की उम्मीदवार पूर्णिमा सेठी को हराया. 2003 और 2008 में भी सुभाष चोपड़ा ने कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में जीत हासिल की और कालकाजी में कांग्रेस की प्रभावी स्थिति कायम रखी.
- 2013 में, दिल्ली विधानसभा चुनावों में भाजपा और कांग्रेस के साथ-साथ आम आदमी पार्टी (AAP) भी मैदान में आई. इस चुनाव में भाजपा ने जीत तो हासिल की, लेकिन आम आदमी पार्टी ने कड़ी टक्कर दी. भाजपा के हरमीत सिंह ने आप के धर्मबीर सिंह को हराया, हालांकि दोनों पार्टियों के बीच वोटों का अंतर मामूली था.
- 2015 में दिल्ली विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी ने धमाकेदार वापसी की। अरविंद केजरीवाल की पार्टी ने 70 में से 67 सीटें जीतकर दिल्ली की सत्ता पर कब्जा कर लिया, और यह पार्टी की पहली बड़ी सफलता साबित हुई.
- इस प्रकार, कालकाजी सीट पर चुनावों का इतिहास कांग्रेस, भाजपा और आम आदमी पार्टी के बीच प्रतिस्पर्धा और राजनीति के बदलते समीकरणों का गवाह रहा है.
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