Azadi Ka Amrit Mahotsav: गोमिया प्रखंड के करमाटांड़ निवासी होपन मांझी व उनके पुत्र लक्ष्मण मांझी महात्मा गांधी के सिद्धांतों व अहिंसावादी नीतियों से प्रेरित होकर आजादी की लड़ाई में शामिल हुए थे. 40 के दशक में रामगढ़ में कांग्रेस अधिवेशन में जाने से पहले महात्मा गांधी बेरमो अनुमंडल के गोमिया पहुंचे थे. होपन मांझी के नेतृत्व में हजारों लोगों का जत्था उन्हें बैलगाड़ी से जुलूस की शक्ल में करमाटांड़ गांव ले आया. बापू वहां होपन मांझी के टूटे-फूटे खपरैल घर में रुके. संताली बहुल करमाटांड़ गांव में पैर पुजाई व लोटा से पानी देकर गांधीजी का स्वागत किया गया. पुश्तैनी घर के आंगन में तुलसी पिंडा की बापू ने पूजा की थी. वह तुलसी पिंडा आज भी है. गोमिया के गोमीटांड़ में बापू की सभा हुई थी. उन्हें सुनने-देखने इसरी, डुमरी, बेरमो, हजारीबाग, रामगढ़ आदि जगहों से हजारों की संख्या में लोग पहुंचे थे.
बड़े-बुजुर्गों ने त्यागा मांस-मदिरा
होपन मांझी ने आजादी की लड़ाई में भाग लेने के लिए आदिवासियों को गोलंबद किया था. वह लोगों को देश की आजादी का मतलब समझाते थे. बापू के भाषण से प्रेरित होकर कई बड़े-बुजुर्गों ने मांस-मदिरा का त्याग कर दिया था. स्वदेशी अपनाने की मुहिम चल पड़ी थी. लोग खुद चरखा से वस्त्र बनाने लगे थे. होपन मांझी के घर में रात भर रुकने के बाद गांधीजी सुबह रामगढ़ कांग्रेस के अधिवेशन में हिस्सा लेने के लिए रवाना हो गये थे. हालांकि कुछ लोगों का कहना है कि रामगढ़ अधिवेशन से काफी पहले गांधी जी गोमिया आये थे.
1950 से 52 तक रहे एमएलसी
किसी मामले में होपन मांझी पर अंग्रेजी हुकूमत ने 2000 रुपये का जुर्माना लगाया था. जुर्माना नहीं देने पर उन्हें जेल जाना पड़ा. 27 जुलाई, 1930 से लेकर 31 मार्च, 2031 तक वह हजारीबाग केंद्रीय कारा में रखे गये थे. 26 जून, 1972 को हजारीबाग केंद्रीय कारा के जेलर ने उन्हें स्वतंत्रता सेनानी का प्रमाण पत्र दिया था. बिहार विधानसभा के गठन के बाद 1950 से 52 तक वह एमएलसी रहे. उनके पुत्र लक्ष्मण मांझी 1952 से 57 तक मनोनीत विधायक रहे. होपन मांझी को चार पुत्र लक्ष्मण मांझी, जवाहर मांझी, देशबंधु मांझी व चंद्रशेखर मांझी थे. लक्ष्मण मांझी का निधन वर्ष 1990 में हुआ था. लक्ष्मण के पुत्र भगवानदास की भी मौत हो चुकी है. होपन मांझी दो भाई थे. होपन मांझी के पोता का नाम गुना राम मांझी है.