राकेश वर्मा, बेरमो : बेरमो विधानसभा क्षेत्र में शुरू से संसदीय राजनीति के साथ-साथ श्रमिक राजनीति होती रही है. इंटक नेता स्व बिंदेश्वरी दुबे चार बार और स्व राजेंद्र प्रसाद सिंह छह बार यहां से विधायक रहे.एचएमएस नेता मिथिलेश सिन्हा ने एक बार जनता पार्टी से जीत दर्ज की. एचएमएस नेता रामदास सिंह गिरिडीह से दो बार सांसद तथा एक बार बेरमो विस से भाजपा के टिकट पर जीत दर्ज की थी. बेरमो विधानसभा क्षेत्र में ट्रेड यूनियन के कई बड़े नेता व जेबीसीसीआइ सदस्य श्रमिक राजनीति में सक्रिय रहे हैं. ऐसे कोयला उद्योग में देखा जाता है कि भारतीय मजदूर संघ व एचएमएस को छोड़ कर शेष चार अन्य सेंट्रल ट्रेड यूनियन क्रमशः इंटक, एटक, एक्टू व सीटू का अलग राजनीतिक प्लेटफॉर्म रहता है. कई चुनावों में बीएमएस का संबद्ध भाजपा के साथ तो इंटक, एटक व सीटू का संबद्ध भाजपा के खिलाफ खड़ी राजनीतिक पार्टियों से रहता है. इसके अलावा अन्य क्षेत्रीय यूनियनों की भूमिका भी काफी महत्वपूर्ण होती है. इसमें झाकोश्रयू, झाकोमयू, झाकोकायू, अखिल झारखंड श्रमिक संघ, एचएमकेपी आदि शामिल हैं. इस बार बेरमो विधानसभा क्षेत्र से इंडिया महागठबंधन की ओर से खड़े कांग्रेस प्रत्याशी कुमार जयमंगल सिंह और एनडीए की ओर से खड़े भाजपा प्रत्याशी रवींद्र कुमार पांडेय के समक्ष भी ट्रेड यूनियनों के माध्यम से कोयला मजदूरों का समर्थन प्राप्त करना एक बड़ी चुनौती होगी. प्रत्याशियों के पक्ष में कोयला मजदूरों के बीच यूनियनें अपनी-अपनी बातों को रख रही हैं. बेरमो कोयला क्षेत्र के मजदूर आज भी बुनियादी सुविधाओं के लिए जूझ रहे हैं. अधिकतर मजदूरों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध नहीं है. कहीं दस दिनों पर तो कहीं 5-6 दिनों में जलापूर्ति होती है. मजदूर धौड़ा व आवासीय क्वार्टरों में रहने वाले मजदूरों का एक तबका आज भी पानी के लिए नदी, नाला, जोरिया तथा सीसीएल की पानी से भरी बंद खदानों पर आश्रित हैं. कई आवासों की छत जर्जर है. असंगठित मजदूरों को हाई पावर कमेटी की अनुशंसा के अनुसार वेतन बढ़ोतरी सहित अन्य सुविधाओं का लाभ नहीं मिलता है. कोयला का लोकल सेल भी प्रभावित होने से हजारों लोगों के समक्ष रोजी-रोटी की समस्या उत्पन्न हो गयी है. प्रदूषण, विस्थापन व पलायन की समस्या भी है.
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