राकेश वर्मा, बेरमो : 60 के दशक से राजनीति कैरियर शुरू करने वाले पुराने जनसंघी व भाजपा के कद्दावर नेता छत्रुराम महतो का निधन शनिवार को हो गया. वह पांच बार विधायक रहे थे. एक बार भारतीय जनसंघ से, एक बार जनता पार्टी से तथा तीन बार भाजपा से. 79-80 में एकीकृत बिहार में वित्त राज्य मंत्री बने. 80 के दशक में पार्टी के मुख्य सचेतक बनाये गये थे. एक समय था, जब एकीकृत बिहार राज्य के विधानसभा के पटल पर विधायक छत्रुराम महतो, समरेश सिंह व इंदर सिंह नामधारी सरीखे नेता झारखंड की जगह वनांचल की आवाज उठाते थे. छत्रुराम महतो 60 के दशक में विद्यार्थी जीवन से ही कुर्मी क्षत्रिय विकास संघ नामक सामाजिक संगठन बना कर गांव-गांव घूम कर बाल विवाह प्रथा पर रोक, शिक्षा के प्रति ग्रामीणों को जागृत करते थे. गरीब बेटियों का विवाह कराने सहित कई तरह के सामाजिक गतिविधियों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते थे. 1959 में छत्रुराम महतो ने संत कोलम्बस हजारीबाग से बीए की परीक्षा पास की. इसके बाद हायर सेकेंड्री स्कूल जोधाडीह चास के तत्कालीन प्रधानाध्यापक संतोष महतो के आग्रह पर इस स्कूल में शिक्षक के पद पर योगदान दिया. वह अर्थशास्त्र, हिंदी के साथ-साथ अंग्रेजी पढ़ाते थे. यहां वह 1967 तक शिक्षक पद पर रहे. 1967 में उस वक्त जरीडीह विधानसभा क्षेत्र से स्वतंत्र चुनाव लड़ा, लेकिन पदमा राजा कामख्या नारायण सिंह की माता राजमाता शशांक मंजरी देवी से पराजित हो गये. पुनः 1969 के चुनाव में भी पराजित हो गये. इसके बाद उस वक्त रामगढ़ के पूर्व विधायक विश्वनाथ चौधरी सहित मारवाड़ी समाज से जुड़े कई लोगों ने उनसे संपर्क किया तथा कहा कि आप स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ते हैं, इसलिए आपको वोट कम मिलता है. आप जनसंघ ज्वाइन करने के बाद चुनाव लड़े, जिससे वोट में भी इजाफा होगा तथा चुनाव में आर्थिक मदद भी मिलेगी. श्री महतो ने उन लोगों के आग्रह पर 1970 में जनसंघ में शामिल हुए. 1972 के विधानसभा चुनाव में जनसंघ के टिकट पर चुनाव लड़ा तथा मंजूर हसन को लगभग 15 सौ वोट से पराजित कर पहली बार विधायक बने. चुनाव जीतने के बाद जयप्रकाश नारायण के साथ आंदोलन में कूद पड़े. जेपी को सहयोग करने के लिए जनसंघ नेताओं के आग्रह पर उन्होंने विधायक पद से त्याग पत्र दे दिया. 74 में जेपी मूवमेंट के दौरान उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. 21 माह तक सेंट्रल जेल हजारीबाग में रहे. 77 में जेल से रिहा होने के बाद जनता पार्टी ने टिकट दिया तथा चुनाव जीत गये. 79-80 में वे एकीकृत बिहार सरकार में वित्त राज्य मंत्री बनाये गये. उस वक्त मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर थे. 80 में पुनः भाजपा के टिकट पर वह चुनाव जीते. लेकिन 85 के विधानसभा चुनाव में गोमिया सीट से निर्दलीय माधवलाल सिंह से हार गये. पुनः 95 के चुनाव में विधायक बने, लेकिन 2000 के चुनाव में पराजित हो गये. पुनः 2005 में विधानसभा चुनाव जीत गये. 2009 में हुए विस चुनाव के समय अचानक भाजपा ने उनका टिकट काट दिया. इससे नाराज होकर छत्रुराम महतो झामुमो में शामिल हो गये. झामुमो ने टिकट दिया, लेकिन चुनाव हार गये. राजनीति के शुरुआती दिनों में वह महतो पैदल या साइकिल से क्षेत्र में घूम कर चुनाव प्रचार किया करते थे. 1972 में उन्होंने पांच हजार रुपये में एक मोटरसाइकिल खरीदी. 77 में बेरमो के एक व्यक्ति से 14 हजार रुपये में पुरानी जीप खरीदी. 80 में जीप को बेच कर बोकारो से 21 हजार में एक कार खरीदी. 1972 का पहला चुनाव मात्र सात हजार रुपये खर्च कर जीता था.
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