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बोकारो के लुगूबुरु आये असम के पूर्व स्पीकर ने की सरना कोड की मांग, 8 नवंबर को आएंगे CM हेमंत सोरेन

संतालियों के तीर्थस्थल ललपनिया स्थित लुगूबुरु में अंतरराष्ट्रीय संताल सरना धर्म महासम्मेलन की शुरुआत सोमवार से हो गयी है. दो दिवसीय इस महासम्मेलन में देश-विदेश से श्रद्धालु यहां पहुंच रहे हैं. असम के पूर्व स्पीकर पृथ्वी मांझी ने सरना कोड की मांग की है. वहीं, सीएम हेमंत सोरेन मंगलवार का यहां आएंगे.

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दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संताल सरना धर्म महासम्मेलन शुरू

संतालियों के महान तीर्थस्थल ललपनिया स्थित लुगूबुरु घांटाबाड़ी धोरोमगाढ़ में सोमवार से दो दिवसीय 22वां अंतरराष्ट्रीय संताल सरना धर्म महासम्मेलन का भव्य आगाज हो गया. पूरे ललपनिया से लेकर तिलैया एवं तुलबूल तक श्रद्धालुओं के आवागमन से क्षेत्र गुलजार है. लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं का आगमन हो रहा है. देश के असम, मणिपुर, त्रिपुरा, छतीसगढ, बंगाल, बिहार राज्य के अलावा झारखंड के दुमका, जमशेदपुर, रांची, धनबाद, जामताड़ा, लिट्टीपाड़ा, गुमला, लातेहार, सिमडेगा आदि जिलों से श्रद्धालु पहुंच रहे हैं. जबकि, नेपाल, बांग्लादेश, भूटान, इंग्लैंड से भी श्रद्धालु पहुंच रहे हैं.

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श्रद्धालुओं के आवागमन से गुलजार है लुगूबुरु मार्ग

दोरबार चट्टानी स्थित लुगूबुरु मार्ग हजारों हजार श्रद्धालुओं के आवागमन से गुलजार है. अनवरत रूप से यहां लोग चढ़ रहे हैं और उतर रहे हैं. चढ़ाई शुरू करने से पूर्व यात्रा मंगलमय हो इसके लिए निहोर विनती कर रहे हैं. बच्चे, बूढ़े, जवान सभी में अपने आराध्य के दर्शन, बोंगा बुरु (पूजा अर्चना) को लेकर खासा उत्साह है.

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असम के पूर्व स्पीकर, पूर्व सांसद व मंत्री भी पहुंचे

समिति के आमंत्रण पर असम के पूर्व विधानसभा अध्यक्ष, पूर्व सांसद एवं पूर्व मंत्री पृथ्वी मांझी भी विशिष्ट अतिथि के रूप में महासम्मेलन में भाग लेने को पहुंचे हैं. उनकी पत्नी डॉ तोरोलुता मांझी भी आयी है. पृथ्वी मांझी ने प्रभात खबर से विशेष बातचीत में कहा कि लुगूबुरु हमारी गहरी आस्था का केंद्र और महान एवं सबसे बड़ा तीर्थस्थल है. यहां चार हजार साल पहले दोरबार चट्टानी में हमारे पुरखों ने 12 साल बैठक कर संताल के संविधान, संस्कृति एवं परंपरा का निर्माण किया था. तब से यह हमारा महान धर्म स्थान है. यहां वे 2016 में भी आ चुके हैं. उन्होंने कहा कि सरना धर्म के लिए सरना कोड सरकार दे. हम सरना धर्म के लोग हैं. हिंदू नहीं हैं. ब्रिटिश सरकार ने 1871 में सेंसस किया था, 1941 तक के सेंसस में हिंदू नहीं लिखा गया था. लेकिन, 1991 में हमें हिंदू क्यों लिखा गया यह समझ से परे है. हमारी रीति रिवाज, संस्कृति प्रकृति पूजक की है. सरना कोड के लिए प्रयास जारी है.

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सीएम के ससुर व अन्य परिजन भी पहुंचे, टेकेंगे मत्था

महासम्मेलन में भाग लेने और लुगूबुरु, लुगू आयो के समक्ष मत्था टेकने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के ससुर अनबा मुर्मू, सास, मामा, मामी, बहनोई सोमाए टुडू सहित कई परिजन पहुंचे हैं. श्यामली गेस्ट हाउस में समिति अध्यक्ष बबूली सोरेन ने सभी का स्वागत किया. सीएम के ससुर ने कहा कि वे वर्ष 2007 से यहां मत्था टेकने पहुंच रहे हैं. यहां उनकी श्रद्धा अटूट है. उन्होंने कहा कि पहले से काफी विकास यहां देखने को मिल रहा है. उन्होंने बताया कि वे 32 साल तक सेना में योगदान दे चुके हैं. श्रीलंका तक में काम कर चुके हैं.

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नेपाल से 121 श्रद्धालु पहुंचे, समिति ने किया स्वागत

नेपाल के प्रदेश वन के झापा और मोरंग जिले से कुल 121 श्रद्धालुओं का जत्था दो वोल्वो बसों से लुगूबुरु पहुंचे. संताली विकिपीडिया के एडिटर शिबू मुर्मू इनकी अगुवाई कर रहे हैं. सामुदायिक सांस्कृतिक विकास भवन में आयोजन समिति के अध्यक्ष बबूली सोरेन ने नेपाली श्रद्धालुओं को बुके भेंटकर स्वागत किया एवं उनके लॉजिंग तक लेकर गए. अगुवाई कर रहे शिबू मुर्मू ने बताया कि लुगूबुरु, लुगू आयो हमारे अराध्य हैं. अपने पुरखों की विरासत को देखने एवं मत्था टेकने आये हैं. यहां आकर मन धन्य हो गया.

रिपोर्ट : रामदुलार पंडा, महुआटांड़, बोकारो.

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