सीपी सिंह, बोकारो : मशरूम आज की तारीख में हर वेजिटेरियन के लिए सबसे पंसदीदा व्यंजन में से एक बन गया. आलम ये है कि मौजूदा वक्त में हर किचन और रेस्टोरेंट में अपनी जगह बना चुका है. इसकी वजह कि यह शाकाहारी लोगों के लिए स्वाद व पौष्टिकता की जरूरत पूरा करता है. बोकारो के जंगल में आठ तरह का देशी मशरूम बरसात के दिनों में लोगों को मिलता है. इनमें छह मुख्य रूप से शामिल हैं. देशी मशरूम को यहां के लोग खुखड़ी (Khukhadi) भी कहते हैं. सेहत के लिहाज से यह तमाम मशरूम फायदेमंद है. जानकारों की मानें तो पेटरवार, गोमिया समेत जिला में टेकनस, छाती, चिरको, कढानी, बड़का, मुरगा, कमार, फूटका प्राकृतिक रूप से जंगल में उत्पादित होता है. कहीं जमीन से तो कहीं पेड़ के सहारे उत्पादन होता है.
बोकारो में एक हजार किलो प्रतिदिन होती है मशरूम की खपत
वहीं, बोकारो जिले में अनुमानत: प्रतिदिन एक हजार किलो मशरूम की खपत होती है. खपत का ज्यादातर हिस्सा आयतित होता है. कारण यह है कि बोकारो में पूरे साल मशरूम की खेती नहीं होती है. रांची व अन्य जगहों से आयात किया जाता है. हालांकि, झारखंड स्टेट झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी (जेएसएलपीएस) के सहयोग से जिला में 112 के करीब महिला-पुरुष मशरूम का उत्पादन करते हैं. लेकिन, यह उत्पादन मौसम के अनुसार ही होता है. बोकारो जिला की पहचान औद्योगिक क्षेत्र के रूप में होती है. यहां की धरती कोयला व अन्य ऊर्जा स्त्रोत दुनिया को देती है. लेकिन, यहां की मिट्टी मशरूम के लिहाज से उर्वरा है.
फूटका का व्यवसायिक उत्पादन मुश्किल
जानकारों की माने तो हर जिला की मिट्टी में अंतर होता है. मिट्टी बदलने से देशी मशरूम का आकार बदलता है. कई मशरूम को खाया जाता है, कई मशरूम को खाना सेहत के लिए हानिकारक हो सकता है. हालांकि, स्थानीय ग्रामीणों को इसकी पहचान होती है. रुगड़ा का उत्पादन नेचरूली होता है.तीन-दिनों दिन में रुगड़ा खराब होने लगता है. ऐसे में प्रिजर्वेशन जरूरी है. बोकारो में फूटका नामक देशी मशरूम पेटरवार प्रखंड के क्षेत्र में पाया जाता है.
फूटका का व्यवसायिक खेती कर पाना बहुत ही मुश्किल है. कारण यह है कि यह दीमक के बनाये घर से बाहर ही उत्पादित होती है. ऐसा माहौल तैयार कर पाना किसानों के लिए चुनौती पूर्ण होता है. बारिश का मौसम जब खत्म होने के कगार पर रहता है तो फूटका मिलता है. वहीं बारिश के सीजन में रुगड़ा मशरूम जंगल में मिलता है. रुगड़ा के व्यवसायिक उत्पादन की दिशा में पहल की जा रही है.
गर्मी के मौसम में उत्पादन लगभग शून्य
बोकारो में मशरूम की खेती मौसम के स्तर पर होता है. मतलब, गर्मी के मौसम में उत्पादन शून्य हो जाता है. जिला में तीन तरह के मशरूम की खेती होती है. इसमें से प्रमुख ऑयस्टर, बटन व पैडी मशरूम की खेती होती है. अक्तूबर से फरवरी माह के दौरान ऑयस्टर व लगभग इसी माह में बटन मशरूम का उत्पादन होता है. वर्तमान में चंदनकियारी क्षेत्र में पैडी मशरूम उत्पादन का प्रोसेस शुरू किया गया है. 30-40 दिन में यह उत्पादित होने लगेगा. जेएसएलपीएस के डीपीएम प्रकाश रंजन की माने तो मशरूम प्रिजर्वेशन के क्षेत्र में काम चल रहा है. कई वेयर हाउस में काम चल रहा है. आने वाले दिनों में मशरूम का प्रिजर्वेशन होने लगेगा.
मशरूम खाने के फायदे
डायबिटीज में मददगार :
मशरूम को डायबिटीज मरीजों के लिए अच्छा माना जाता है. क्योंकि इसमें कार्बोहाइड्रेट्स के साथ शुगर लेवल को कंट्रोल करने का गुण पाया जाता है. डायबिटीज के मरीज इसे अपनी डाइट में शामिल कर सकते हैं.
इम्यूनिटी में मददगार :
कोरोना के खतरे को देखते हुए एक बार फिर से इम्यूनिटी को मजबूत रखने की जरूरत है. मशरूम में पाए जाने वाले एंटीऑक्सिडेंट व फाइटोकेमिकल्स इसे एंटीबैक्टीरियल व एंटीफंगल बनाते है, जो मौसमी संक्रमण से बचाने और इम्यूनिटी को मजबूत बनाने में मदद करता है.
पाचन में मददगार :
मशरूम को पाचन के लिए अच्छा माना जाता है. मशरूम में पॉलीसेकेराइड होते हैं, जो प्रोबायोटिक्स के रूप में काम करते हैं. मशरूम पेट की समस्याओं को दूर करने में मदद कर सकता है.
वजन घटाने में मददगार :
मोटापा कम करने के लिए डाइट में मशरूम को शामिल कर सकते हैं. मशरूम में कैलोरी व फैट की मात्रा कम होती है. जिससे वजन को कंट्रोल किया जा सकता है.
एनीमिया में मददगार :
शरीर में खून की कमी है, तो मशरूम का सेवन करें. क्योंकि मशरूम में फॉलिक एसिड व आयरन अच्छी मात्रा में पाया जाता है, इससे हीमोग्लोबिन के लेवल को बढ़ाने में मदद मिलती है.
स्किन में मददगार :
स्किन को हेल्दी रखने के लिए मशरूम का सेवन किया जा सकता है. मशरूम में एंटीबैक्टीरियल व एंटीमाइक्रोबियल गुण होते हैं, जो त्वचा पर मुंहासों का कारण बनने वाले बैक्टीरिया को पनपने से रोकने में मददगार होता है.