बोकारो, सुनील तिवारी. विश्व रंगमंच दिवस पर बोकारो के सेक्टर 4 स्थित संगीत कला अकादमी में ‘प्रभात खबर संवाद’ का कार्यक्रम हुआ, जहां रंगमंच और उससे जुड़े कलाकारों की स्थिति पर चर्चा हुई. कार्यक्रम में बोकारो में रंगमंच से जुड़े कलाकारों का दर्द छलका.
बोकारो में रंगमंच से जुड़े कलाकारों ने कहा कि रंगमंच से रंग गायब है और मंच खाली पड़ा है. रंगमंच मनोरंजन का सबसे पुराना माध्यम है, जो आज उपेक्षा का शिकार है. उन्होंने कहा इसे बढ़ावा देने की जरूरत है. इसके लिए खासकर, बच्चों व युवाओं को जागरूक करना होगा.
बता दें कि समाज और लोगों को रंगमंच की संस्कृति के विषय में बताने, रंगमंच के विचारों के महत्व को समझाने, रंगमंच संस्कृति के प्रति लोगों में दिलचस्पी पैदा करने, रंगमंच से जुड़े लोगों को सम्मानित करने, दुनिया भर में रंगमंच को बढ़ावा देने, लोगों को रंगमंच की जरूरतों और महत्व से अवगत कराने जैसे उद्देश्यों को पूरा करने के लिए ही हर साल पूरे विश्व में 27 मार्च को विश्व रंगमंच दिवस मनाया जाता है.
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साल 1961 से हर वर्ष 27 मार्च को दुनिया भर में वर्ल्ड थिएटर डे यानी विश्व रंगमंच दिवस मनाया जाता है. इस दिन रंगमंच की दशा, दुर्दशा, उम्मीदों, संभावनाओं को लेकर बातें होती हैं, चिंताएं जताई जाती हैं. इस्पात नगरी बोकारो में भी विश्व रंगमंच दिवस के मौके कई कार्यक्रमों का आयोजन किया गया है. इन्हीं कार्यक्रमों में एक रहा प्रभात खबर संवाद कार्यक्रम, जहां रंगमंच से जुड़े बोकारो के कुछ कलाकारों के विचार सामने आए. कलाकारों ने आयोजन के लिए ‘प्रभात खबर’ का आभार जताया.
प्रभात खबर संवाद में रंगमंच से जुड़े बोकारो के कलाकारों ने कहा कि नाटक कला का एक सजीव माध्यम है. इसमें दर्शक भी सजीव होते हैं और कलाकार भी, लेकिन हिन्दी का रंगमंच अपने कलाकारों के लिए जीविका चलाने का इकलौता साधन नहीं बन पाया है. जिस दिन यह हो जायेगा, उस दिन हमारे यहां भी विश्वस्तरीय रंगमंच होगा. रंगमंच को सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में हमेशा से चुनौतियों का सामना करना पड़ता रहा है.
कलाकारों का कहना है कि रंगमंच को आगे बढ़ाने के लिए आम लोगों के साथ-साथ सरकारों, संस्थाओं, कंपनियों को भी आगे आना चाहिये, ताकि यह एक मरती हुई कला न बन कर रह जाये. रंगमंच से बड़ा अभिनय का स्कूल कोई दूसरा नहीं है. अगर आपने इस स्कूल की पढ़ाई सही तरीके से कर ली तो फिर आप कहीं मात नहीं खा सकते. सिर्फ रंगमंच करना थोड़ा जोखिम भरा जरूर है. लेकिन, रंगमंच के कलाकारों को काम, नाम और दाम की कमी नहीं रहती.
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रंगमंच से जुड़े कलाकारों का कहना है कि रंगमंच कलाकारों को ट्रांस्फोर्मेशन सिखाता है. किसी किरदार में कैसे ढलना है, कैसे खुद को भुला कर उस किरदार की आत्मा में प्रवेश करना है, यह रंगमंच से बेहतर और कोई नहीं सिखा सकता. किसी भी कलाकार को अभिनय की बारीकियां सीखनी हो या उसमें गहराई तक गोता लगाना हो तो रंगमंच से बेहतर माध्यम कोई दूसरा नहीं हो सकता.
रंगमंच से तीस सालों से जुड़ा हूं. पचास से अधिक नाटक में अभिनय व निर्देशन कर चुका हूं. संगीत नाटक अकादमी-नई दिल्ली के साथ जुड़कर कई नाट्य कार्यशाला का आयोजन किया है. अंधेर नगरी, आला अफसर, जनता पागल हो गयी है, आधी रात के बाद सहित कई नाटक का निर्देशन किया. नाट्य क्षेत्र से जुड़े रंगकर्मियों को प्रोत्साहन नहीं मिलने के कारण नाट्य कला खत्म होने के कगार पर है. इस दिशा में सकारात्मक कदम उठाने की जरूरत है. – मो. मेहबूब आलम, एकजुट
तीस वर्ष से रंगमंच से जुड़ाव रहा है. तब कला केंद्र सेक्टर दो में नाटक का मंचन खूब होता था. कई बार तो हॉल में बैठने तक की जगह नहीं होती थी. बीएसएल की ओर से भी नाटकों के बीच प्रतियोगिता का आयोजन कराया जाता था, लेकिन अब सब बंद हो गया है. दो दशक से रंगमंच धूमिल हो गया है. इसे पुन: स्थापित करने की जरूरत है. इसमें बीएसएल की भूमिका अहम हो सकती है. कलाकारों को भी इसके लिये एकजुट होकर आगे आने की जरूरत है. – शिवहरि प्रसाद, चेतना नाट्य कला मंच
तीन-चार दशक से रंगमंच से जुड़ा हूं. भारतमाता, सुपना के सपना, एक बेचारा, चबूतरे का उद्घाटन, सरपंच आदि नाटकों में अभिनय कर चुका हूं. फिल्म में अभिनय के लिये रंगमंच नर्सरी है. 6 भोजपुरी व हिंदी फिल्म ग्रीन में काम कर चुका हूं. आज रंगमंच के प्रति उदासीनता साफ-साफ झलकती है. इसके लिये प्रबंधन व प्रशासन को पहल करने की जरूरत है. इधर, कलाकारों को भी एक साथ आगे आना होगा. रंगमंच के सकारात्मक पहल की जरूरत है. – धर्मेंद्र कुमार सोनी, युगसूत्र व इप्टा
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रंगमंच से जुड़े हुये चालीस साल हो गये. पिता रहमत उल्ला खान भी रंगमंच से जुड़े थे. पचास से अधिक नाटकों में अभिनय कर चुका हूं. इनमें दीपा, गिद्ध, बेचारा पति आदि चर्चित रहा. सुरक्षा से संबंधित कई नाटकों का मंचन बोकारो सहित राउरकेला, भिलाई, दुर्गापुर, डेहरी ऑन सोन आदि जगहों पर किया. बोकारो में दर्शक की कमी व बीएसएल की ओर से प्रोत्साहन की कमी के कारण रंगमंच की स्थिति दयनीय है. रंगमंच को जगह व आधारभूत संरचना मिले. – हमीद उल्ला खान, चेतना पाट्य कला मंच
सत्तर से लेकर नब्बे के दशक में बोकारो में नाट्य विधा पूर्ण रूप से जीवित थी. चेतना पाट्य कला मंच, रंगश्री, मिथिला सांस्कृतिक परिषद, उत्कल पथागार, छंदरूपा, युगसूत्र जैसी संस्था सक्रिय थी. बीएसएल की ओर से कई तरह की प्रतियोगिता करायी जाती थी. नाट्य कार्यशाला का आयोजन बीएसएल करता था, जिसमें अजय मलकानी जैसे लोग नाट्य विधा की बारीकियां सिखाते थे. बीएसएल की ओर से आर्थिक सहयोग भी नाट्य संस्थाओं को किया जाता था. – अरूण कुमार सिन्हा, चेतना पाट्य कला मंच
रंगमंच से तीस वर्ष से जुड़कर बोकारो सहित भिलाई, राउरकेला, इलाहाबाद, डालमियानगर, कोलकाता सहित कई स्थानों पर नाटक का मंचन किया है. अखिल भारतीय स्तर पर कई बार अभिनय व नाट्य लेखन के लिये सर्वश्रेष्ठ का पुरस्कार मिला. तब बोकारो में नाटक देखने के लिये लोगों की भीड़ उमड़ती थी. अब लोगों की रूचि कम हो गयी है. बीएसएल की ओर से कई तरह की मदद व प्रोत्साहन मिलता था, जो अब बंद है. युवाओं का रूझान कम हो गया है. – अर्पिता सिन्हा, चेतना पाट्य कला मंच
1990 से रंगमंच से जुड़ा हूं. औरत, सुपना का सपना, समझदार लोग सहित कई नाटकों में अभिनय किया. आंखि के लोर, हम है सूर्यवंशम, गंगा-दामोदर आदि फिल्म में भी अभिनय किया. बोकारो से कला व कलाकार दोनों रंगमंच से गायब हो गये. कारण, प्रशासन व प्रबंधन की कला के प्रति उदासीनता. कलाकारों को रंगमंच मिल रहा है. कलाकार अपने को उपेक्षित महसूस कर रहे है. यदि कलाकारों को प्रोत्साहित नहीं किया गया तो साहित्य की यह विधा बोकारो से गायब हो जायेगी. – अशोक कुमार शशि, रितुडीह
बीस वर्ष से रंगमंच से जुड़ा हूं. बोकारो सहित दर्जनों स्थानों पर नाटक का मंचन किया. रंगमंच हमेशा से था और हमेशा रहेगा. लेकिन, इसके लिये प्रशासन व प्रबंधन के साथ-साथ कलाकार व कला प्रेमियों को आगे आना होगा. तभी रंगमंच का कायाकल्प हो सकता है. बोकारो में नाटक पसंद किये जाते रहे हैं, लेकिन इधर कुछ दशक से इसके दर्शकों में कमी आयी है. टीवी-इंटरनेट आदि का भी प्रभाव पड़ा है, लेकिन नाटक में जो बात है, वह और कहां मिलेगा. – मो. रफत उल्लाह, चेतना नाट्य कला मंच
रंगमंच से 1989 में बाल कलाकार के रूप में जुड़ा. तब नाटक के प्रति लोगों का काफी रूझान हुआ करता था. बीएसएल की ओर से कई तरह के प्रयास लगातार किये जाते रहते थे. अब लोगों का रूझान भी कम हो गया है और बीएसएल प्रबंधन की ओर से भी सभी तरह की गतिविधि बंद कर दी गयी है. प्रबंधन की ओर से नाटक के मंचन के लिये एक स्थान कलाकारों को उपलब्ध कराने की जरूरत है. साथ ही, पहले की तरह बीएसएल प्रबंधन भी रंगमंच को प्रोत्साहन दे. – शशि शेखर केसरी, सेक्टर तीन
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विश्व रंगमंच दिवस पर कुछ कहने का अवसर प्रभात खबर के माध्यम से मिला, इसे सौभाग्य मानता हूं. वरना, भूल गये थे कि कभी रंगमंच कलाकार हुआ करता था. तब बीएसएल द्वारा नाट्य समारोह आयोजित किया जाता था. रंगमंच धीरे-धीरे विलुप्त हो रहा है. दर्शकों का अभाव है. आज के युवा पीढ़ी को जानकारी भी नहीं होगी कि नाटक क्या है. आज जरूरत है युवा पीढ़ी को नाटक के प्रति जगरूक करने की. स्कूल में संगीत, स्पोर्ट की तरह नाटक विषय भी जोड़ा जाय. – विमल सहाय, युगसूत्र
बोकारो में एक समय नाटक का मेला लगता था. लेकिन, आज वह दौर चला गया है. कुछ स्कूलों में नुक्कड़ नाटक हो रहा है. लेकिन, मंच नाटक नहीं हो रहा है. घुनपोका साहित्य पत्रिका बीस सालों से अंतरराष्ट्रीय नाट्य उत्सव मनाते आ रहा है. उसी कड़ी में सोमवार को कालीबाड़ी के प्रांगण में संध्या सात बजे से नाटक का मंचन होगा. पहला नाटक देबीपुर कालीतला नाट्यदीप प्रायोजित ‘ग्रेट बंगाल सर्कस’ व द्वितीय नाटक सृजन चंदननगर प्रायोजित ‘स्वप्नों थेके फेरा’ का मंचन होगा. – दिलीप बैराग्य, घुनपोका साहित्य पत्रिका