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झारखंड के 50 से ज्यादा गांवों में लंगूरों का आतंक, खौफ इतना कि लोगों ने खेती करना किया बंद

बोकारो के दो प्रखंड चास और चंदनकियारी के 50 से अधिक ऐसे गांव हैं जहां पिछले 15 साल से सब्जियों की खेती की जगह धान की खेती होती है. ऐसा लंगूरों के उत्पात के कारण है. लंगूर न केवल सब्जियों का खाता है, बल्कि पौधे तक को उखाड़ देता है. 70 हजार से अधिक की आबादी इससे परेशान है.

रांची, विवेक चंद्र/उत्तम महतो : बोकारा जिला अंतर्गत चास और चंदनकियारी प्रखंड में करीब 50 से ज्यादा गांव हैं, जहां सिंचाई के साधन और पर्याप्त उपजाऊ जमीन भी है. वर्ष 2000 तक हर गांव में बड़े पैमाने पर लोग सब्जी की खेती करते थे. वर्ष 2005 के आसपास इन गांवों में लंगूरों का आतंक शुरू हुआ, उसके बाद हालात बिल्कुल बदल गये. लोगों ने लंगूरों के डर से खेती करना छोड़ दिया है. इक्का-दुक्का किसान अपनी जिद पर सब्जी की खेती करते भी हैं, तो उन्हें 24 घंटे अपने खेतों की रखवाली करनी पड़ती है. क्योंकि, लंगूरों से सब्जियों की फसल को बचाना लगभग नामुमकिन हो गया है.

लंगूर न केवल सब्जियां खाते, बल्कि पौधे तक उखाड़ देते हैं

आमाडीह गांव के किसान मदन महतो बेहद निराश दिखे. कहा कि लंगूर केवल सब्जियां खाते, तो कोई बात नहीं थी, लेकिन वे पौधे भी उखाड़ देते हैं. इनके आतंक की वजह से ही डेढ़ दशक से यहां के किसान सब्जी की खेती नहीं कर रहे हैं. अब लोग खेती की नाम पर केवल धान उपजा पाते हैं.

लंगूरों के आंतक से 7000 से अधिक किसान हैं परेशान

चास और चंदनकियारी प्रखंड में एनएच-32 के किनारे बसे गांव के 7000 से अधिक किसान भी मदन महतो जैसी पीड़ा से गुजर रहे हैं. इलाके में लंगूरों का आतंक इस कदर बढ़ गया है कि खाना नहीं मिलने पर वे घरों में भी घुस जा रहे हैं. कई बार लंगूर हिंसक होकर लोगों पर हमला कर देते हैं. इलाके में सब्जियों की खेती बंद होने के बाद लंगूरों ने पेड़ों पर डेरा डाल लिया है. उत्पाती लंगूरों का झुंड एस्बेस्टस, खपरैल व फूस के मकानों को भी नुकसान पहुंचा रहे हैं. वहीं, गांवों में लगे सैकड़ों डीटीएच एंटीना तोड़ चुके हैं. लंगूरों के उत्पात से आजिज आ चुके लोग अब अपने घर के आसपास के पेड़ों को काट रहे हैं, ताकि लंगूर अपना रास्ता बदल लें. इधर, बीते एक दशक में स्थानीय लोग कई बार चास और चंदनककियारी के बीडीओ-सीओ के अलावा बोकारो के उपायुक्त तक से गुहार लगा चुके हैं. लेकिन, जिला प्रशासन ने लोगों को लंगूरों के आतंक से मुक्ति दिलाने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया है.

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इन गांवों में बंद हो गयी सब्जियों की खेती

चास और चंदनकियारी प्रखंड क्षेत्र के चाकुलिया, खीराबेड़ा, आमुरामू, ओलगाड़ा, कुड़मा, गोपालपुर, आमाडीह, खूंटाडीह, तेलमेटिया, सरदाहा, मर्धिा, जीवनडीह, बेलडीह, लुटियाबाद, शाखा, आद्रकुड़ी, ओबरा, जेरका, पोखरना, काशीटांड़, बारपोखर, कुम्हारदागा, कुरा, रामडीह, साबड़ा, पुंडरू, बरमसीया, जयताड़ा, लेखियाटांड़, सीधाटांड़, तियाड़ा, सोनाबाद, बहादुरपूर, नारायणपुर, जाला, घटियाली, टूपरा, डाबर, रानी चिड़का, कुम्हारडीह, झालबड़दा, केलियादाग, लंका, फुसरो, नावाडीह, खेदाडीह, तरीडीह, मोहदा, चापाटांड़, रांगामाटी, मानपुर, पलकरी, लालपुर, चंदनकियारी, गलगलटांड़, झाबरा, बारसाबाद, बारकामा, गौरीग्राम, लाघला, शिव बाबूडीह, भोजूडीह, आमलाबाद, मोहाल, तलगड़िया, सिलफोर, सहारजोड़ी, सियारजोड़ी, नौडीहा, बांसगोड़ा, आमाइनगर, बरियाडीह, सीलफोर, सूयाडीह, पड़ूवा व आसपास के कई गांव हैं, जहां सब्जियों की खेती बंद हो गयी है.

15 साल पहले आये थे दो लंगूर, फिर झुंड बनता चला गया

आमाडीह गांव के रिटायर शिक्षक मोतीलाल महतो (83 वर्ष) ने बताया कि लगभग 15 साल पहले इलाके में दो लंगूर आये. ‘हनुमान’ समझ कर लोगों ने उनका ख्याल रखा. उन्हें खाना खिलाया. कुछ दिनों बाद लंगूरों का पूरा झुंड आ गया. उसके बाद वह खाने की तलाश में खेतों तक पहुंचने लगे. सब्जियां खाने के साथ लंगूरों का झुंड पूरे खेत को बर्बाद करने लगा. आज पूरे गांव में ही लंगूरों का डेरा है.

बंगाल की सब्जी पर आश्रित हो गये हैं इलाके लोग

कभी जिस क्षेत्र की सब्जी आसपास के बाजारों में बिकने के लिए जाती थी, आज लंगूरों के आतंक के कारण वहां के लोग पूरी तरह से बंगाल से आनेवाली सब्जी पर आश्रित हो गये हैं. सब्जी विक्रेता रोजाना सुबह चास मोड़ में लगनेवाली थोक मंडी में जाकर सब्जी खरीदते हैं. वहां से खरीदी गयी सब्जियां वे एनएच किनारे की सब्जी दुकानों में बेचते हैं.

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क्या कहते हैं किसान

ओलगाड़ा के किसान पुरन महतो ने कहा कि सब्जी की खेती करना अब खतरे से खाली नहीं है, क्योंकि लंगूर जब मन, तब खेत में घुस जाते हैं. खेत में अगर पुरुष रहे, तो ठीक, लेकिन अगर खेत की रखवाली महिला और बच्चे करे रहे होते हैं, तो लंगूर उन्हें मारकर भगा देते हैं. वहीं, काठूआरी के किसान शांतिराम महतो ने कहा कि सब्जी नहीं मिलने से लंगूर आक्रामक हो गये हैं. ये खाते कम, नुकसान ज्यादा करते हैं. इसलिए हमने तो खेती करनी ही छोड़ दी है. अगर सरकार ने इन लंगूरों का कुछ किया, तो भविष्य में सब्जी की खेती करने की सोचेंगे.

क्या कहते पंचायत जनप्रतिनधि

सोनाबाद पंचायत की मुखिया कुमारी किरण महतो ने कहा कि लंगूरों के आतंक से आजिज आ चुके यहां के किसानों ने सब्जी की खेती करना बंद कर दिया है. इसके बावजूद लंगूरों का उत्पात कम नहीं हो रहा है. लंगूरों का झुंड खपरैल व एस्बेस्टस भी तोड़ देता है. पूरा इलाका इनसे परेशान है. वहीं, सरदाहा पंचायत की मुखिया मंजू कुमारी कहती हैं कि सरदाहा पंचायत के पोदुडीह, पैदाडीह सहित आसपास के गांव के किसान अधिकतर सब्जी की खेती करते हैं. कई किसानों की जीविका का एकमात्र साधन सब्जी की खेती ही है. लेकिन, लंगूर सब्जी की खेती करने ही नहीं देते.

वन विभाग को सूचना देने के बाद भी समस्या जस की तस

कुमारदागा पंचायत के मुखिया पशुपति कुमार ने कहा कि लंगूर केवल सब्जी खाकर चले जाते, तो कोई बात नहीं थी. लेकिन वे तो पूरा खेत बर्बाद कर देते हैं. केवल आधे घंटे में ही वे पौधे और लत्तर उखाड़ कर पूरा खेत बर्बाद कर सकते हैं. उन्हें भगाने की हर कोशिश बेकार हो चुकी है. वहीं, बोकारो के जिला परिषद सदस्य राजेश महतो ने कहा कि लंगूरों के आंतक की जानकारी वन विभाग के अधिकारियों को है. कई बार बैठक में और मौखिक रूप से इसकी जानकारी दी गयी है. लेकिन, अब पानी सर के ऊपर से गुजर रहा है. ग्रामीण उग्र होकर कोई बड़ा कदम भी उठा सकते हैं.

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लंगूरों के उत्पात की नहीं है कोई जानकारी : डीसी

इस संबंध में बोकारो डीसी कुलदीप चौधरी ने कहा कि चास या चंदनकियारी प्रखंड में लंगूरों के उत्पात जैसी कोई सूचना जिला प्रशासन के पास नहीं है. किसी मुखिया या ग्रामीण ने कोई शिकायत नहीं की है. डीएफओ ने भी कोई जानकारी नहीं दी है. अगर लंगूरों की वजह से ग्रामीणों या किसानों को दिक्कत हो रही है, तो इस पर संज्ञान लेते हुए कार्रवाई जरूर की जायेगी.

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