बेरमो, महुआटांड़ (राकेश वर्मा, रामदुलार पंडा) : लाखों वर्ष पहले दरबार चट्टानी में लुगुबुरु की अध्यक्षता में 12 साल तक लगातार बैठक चली और उसके बाद संतालियों का संविधान अस्तित्व में आया. इस संविधान में संताली समाज के तमाम रीति-रिवाजों का वर्णन है. संताली समुदाय के जानकार बताते हैं कि इसी बैठक में संतालियों की गौरवशाली संस्कृति की रचना हुई.
इतने लंबे समय तक हुई बैठक के दौरान संतालियों ने इसी स्थान पर फसल उगायी और धान कूटने के लिए चट्टानों का प्रयोग किया. इसके चिह्न आज भी आधा दर्जन उखल के स्वरूप में यहां मौजूद हैं. इन लोगों ने बगल से बहने वाली पवित्र सीता नाला से पानी लाकर पेयजल के रूप में उसका इस्तेमाल किया. यह नाला जहां खत्म होता है, वहां करीब 40 फुट नीचे गिरता है. संताली समाज के लोग इसे सीता झरना कहते हैं.
सीता झरना को छरछरिया झरना के नाम से भी जाना जाता है. यूं कहें कि यह छरछरिया झरना के नाम से ज्यादा मशहूर है. इसके निकट एक गुफा है, जिसे संताली लुगुबाबा का छटका कहते हैं. मान्यता के अनुसार, लुगुबुरु यहीं स्नान करते थे और इसी गुफा के जरिये वे सात किमी ऊपर स्थित घिरी दोलान (गुफा) में आना-जाना करते थे. कहा जाता है कि लुगुबुरु के सच्चे भक्त इस गुफा के जरिये ऊपर गुफा तक पहुंच जाते थे.
संताली समाज के इतिहास और उनकी संस्कृति का अध्ययन करने वाले लोग बताते हैं कि चूंकि, इस स्थान पर लंबे समय तक बैठक हुई या लुगुबुरु का दरबार लगा. इसलिए यहां की चट्टानों को संतालियों ने दरबार चट्टानी कहा. दरबार चट्टानी स्थित पुनाय थान (मंदिर) में सबसे पहले मरांग बुरु और फिर लुगुबुरु, लुगु आयो, घांटाबाड़ी गो बाबा, कुड़ीकीन बुरु, कपसा बाबा, बीरा गोसाईं की पूजा की जाती है.
संतालियों के दशांय नृत्य (गुरु-चेला नृत्य) के दौरान गाये जाने वाले लोकगीत हों या विवाह, चाहे कोई भी छोटा-बड़ा अनुष्ठान ही क्यों न हो, हर अनुष्ठान में लुगुबुरु घांटा बाड़ी की अराधना व उपासना की जाती है. उनका बखान हर अवसर पर अनिवार्य रूप से किया जाता है.
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Posted By : Mithilesh Jha