सुनील कुमार सिन्हा, चाईबासा : करीब 150 साल पुराने एसपीजी मिशन बालक मध्य विद्यालय के अहाते में पूरे भारत का नक्शा मौजूद है. इस नक्शे में जहां सियाचिन व कारगिल की पहाड़ी को स्पष्ट देखा जा सकता है, वहीं कश्मीर से लेकर कन्या कुमारी तक की हर एक नदियों व पहाड़ियों को भी आसानी से देखा और समझा जा सकता है. यह नक्शा बताता है कि यहां भूगोल की कभी बेहतर पढ़ाई होती थी, जो पिछले करीब तीन दशक से रखरखाव के अभाव जीर्ण-शीर्ण अवस्था में आ गया था. लिहाजा अब विद्यालय प्रबंधन ने इस नक्शे को पुनर्जीवित कर संजो कर रखने का कार्य शुरू कर दिया है.
जल्दी ही स्कूल परिसर में स्पष्ट दिखने वाला भारत का नक्शा फिर से पुराने रूप में नजर आने लगेगा. हालांकि विद्यालय के प्रभारी प्राचार्य यह नहीं बता पाये कि इस नक्शे का निर्माण किसने और कब कराया. उन्होंने अनुमान लगाया है कि विद्यालय परिसर की जमीन पर बना यह नक्शा करीब सौ साल पुराना हो सकता है, लेकिन अब तक इसका कोई प्रमाण नहीं मिल पाया है.
उन्होंने बताया कि इस नक्शे को सुरक्षित व व्यवस्थित रखने के लिए ही जीर्णोद्धार कराया जा रहा है. विद्यालय के एक पूर्ववर्ती छात्र ताराचंद शर्मा ने बताया कि यहां भूगोल की बेहतर पढ़ाई होती थी. उन्होंने बताया कि यहां पढ़ने वाले छात्र नासा में वैज्ञानिक रूप में काम कर चुके हैं. उक्त छात्र ने सन 169 से 1970 7वीं की परीक्षा भी यहीं से दी थी. इसके अलावा हॉकी के गोल्ड मेडलिस्ट, डॉक्टर, इंजीनियर, अखबार के संपादक व जिले के बेस्ट फुटबॉलर आदि भी इस स्कूल के छात्र रह चुके हैं. इस स्कूल को देखने के लिए यहां राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी पहुंच चुके हैं. उन्होंने बताया कि जमीन पर बने भारत के मानचित्र के माध्यम से छात्रों को भूगोल की बेहतर शिक्षा दी जा सकती है.
विद्यालय का इतिहास : एसपीजी मिशन बालक मध्य विद्यालय की स्थापना सन 1869 में नीमडीह मोहल्ले में मात्र 11 विद्यार्थियों के साथ की क्रूगर साहब ने एंग्लिकन मिशन विद्यालय के नाम से की थी. कालांतर में इसे एसपीजी मिशन बालक मध्य विद्यालय के नाम से जाना जाने लगा और यह शहर का एक प्रमुख विद्यालयों में से एक है. सन 1888 तक इस वि्द्यालय का संचालन निम्न प्राथमिक (एलपी) के रूप में होता रहा. वहीं 24 अगस्त-1888 को 10 छात्र-छात्राओं को लेकर उच्च प्राथमिक विद्यालय के रूप में शुरू किया गया. इसके बाद अगस्त 1889 में इसे उच्च प्राथमिक विद्यालय के रूप में सरकार से स्वीकृति मिली.
वहीं 1894 में 13 जनवरी को एंग्लिंकन मिशन मिडिल स्कूल के रूप में शुरू किया गया. इसके बाद 1896 में नंवबर माह में बिहार एवं छोटनागपुर प्रमंडल की राधिका प्रसन्न मुखी के निरीक्षण के बाद इस विद्यालय का नाम एसपीजी मिशन एमइ स्कूल पड़ा. वहीं 13 जनवरी 1902 को छोटानागपुर प्रमंडल के विद्यालय निरीक्षक आरनेस्ट जेरी ने इसका निरीक्षण किया व सरकार द्वारा एसपीजी मिशन एमइ सकूल के संचालन की स्वीकृति दी.
इसके बाद 20 अगस्त 1904 में दो बड़ व चार छोटे कमरे का विद्यालय का नया भवन तैयार किया गया. इस भवन में 21 साल तक उच्च विद्यालय की कक्षाएं चलती रही. वहीं 15 जनवरी सन 1916 से दिसंबर 1925 तक इस विद्यालय में शिक्षकों की संख्या क्रमश : 14, 15 व 16 थी. इसी बीच राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने 15 दिसंबर 1925 को इस विद्यालय को देखने पहुंचे व इस विद्यालय को शिक्षा के क्षेत्र में विकास का आर्शीवाद दिया. फलत: यह विद्यालय निरंतर शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ता रहा.
विद्यायलय परिसर में मौजूद भारत के नक्शे का जीर्णोद्धार कराया जा रहा है. मैं भी इसी विद्यालय में पढ़ा हूं. यहां के छात्र नासा के वैज्ञानिक तक बन चुके हैं, लेकिन सुरक्षा कारणों से नाम नहीं बताया जा सकता है. इस स्कूल का प्रबंधन काफी बेहतर है. शिक्षक व छात्र भी अनुशासित हैं.
धीरेंद्र प्रसाद, सचिव, विद्यालय प्रबंधन समिति
मैंने अपनी शिक्षा इसी स्कूल से ग्रहण की. अब में यहां का प्रभारी प्रधानाचार्य हूं. जिस जगह पर भारत के मानचित्र का जीर्णोद्धार कराया जा रहा है, वहीं पर पास ही में एसआर रूंगटा ग्रुप द्वारा प्याऊ का निर्माण भी कराया जा रहा है. इस विद्यालय में तत्कालीन प्रधानाध्यापक कुशलमय प्रसाद मेरे प्रेरणाश्रोत रहे हैं. उनके आदर्शों पर चलकर मैं यहां तक पहुंचा हूं. नक्शे के ऊपर शेड का भी बनाया गया है. ताकि इसे कोई नुकसान न पहुंचे. निकट भविष्य में इस विद्यालय का 150वीं वर्षगांठ मनायी जायेगी. इसकी तैयारी शुरू हो चुकी है.
राजकिशोर साहू, प्रभारी प्रधानाचार्य