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चतरा के पथरा गांव में 74 वर्षों से मनाया जा रहा है दुर्गा पूजा, जानें कैसे हुई थी इसकी शुरुआत

गांव के बुजुर्गों के अनुसार, गांव के आसपास कहीं दुर्गा पूजा का आयोजन नहीं होता था. 10 किमी दूर सोकी गांव दुर्गा पूजा करने व मेला देखने जाना पड़ता था.

मयूरहंड : पथरा गांव में दुर्गा पूजा का इतिहास 74 वर्षों का है. वर्ष 1949 में गांव के सत्यनारायण प्रसाद भगत, बालदेव प्रसाद भगत, महावीर भगत (सभी अब स्वर्गीय) व गांव के अन्य लोगों ने पूजा की शुरुआत की थी. शुरुआती दौर में पूजा का स्वरूप छोटा था. खपरैल के छोटे कमरे में मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित कर पूजा की गयी थी.

वर्ष 1949 में चौपारण प्रखंड के ठूठी गांव निवासी जानकी प्रजापति ने मां दुर्गा समेत अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमा का निर्माण किया था. 20 वर्ष बाद गांव में भव्य मंदिर का निर्माण कराया गया, जहां माता दुर्गा की पूजा-अर्चना शुरू हुई, जो अब तक होती चली आ रही है. गांव के बुजुर्गों के अनुसार, गांव के आसपास कहीं दुर्गा पूजा का आयोजन नहीं होता था. 10 किमी दूर सोकी गांव दुर्गा पूजा करने व मेला देखने जाना पड़ता था.

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इसके बाद गांव के लोगों से यहां दुर्गा पूजा का आयोजन करने का निर्णय लिया. पूजा समिति के अध्यक्ष कैलाश प्रसाद भगत, सचिव आदित्य विश्वकर्मा व कोषाध्यक्ष संतोष प्रसाद भगत ने बताया कि दुर्गा पूजा को लेकर लोगों में काफी उत्साह है. यहां काफी संख्या में लोग पूजा-अर्चना करने आते हैं.

मुकुट चढ़ाने के लिए लगाया जाता है नंबर

पथरा गांव में मां दुर्गा को मुकुट व आभूषण का चढ़ावा चढ़ाने के लिए एक वर्ष पूर्व पूजा समिति की बैठक में नंबर लगाया जाता है. यहां गांव के अलावा अन्य गांव के लोग भी नंबर लगाते हैं. पिछले वर्ष नंबर लगाने वाले चौपारण के गणेश स्वर्णकार इस वर्ष मां दुर्गा को मुकुट व आभूषण चढ़ायेंगे. मुकुट चढ़ाने में लगभग 20 हजार रुपये का खर्च आता है. जिन श्रद्धालुओं की मनोकामना पूर्ण होती है, वे चांदी के जेवर का भी चढ़ावा चढ़ाते हैं.

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